शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

*याद करो कुर्बानी उनकी* ""''''''^^^^^*शंकर छंद*^^^^^""'"""

*याद करो कुर्बानी उनकी*
""''''''^^^^^*शंकर छंद*^^^^^""'"""
याद करो कुर्बानी उनकी,
                       नही जाना भूल।
हँसते हँसते आजादी को,
                       गए फंदे झूल।
मातृभूमि की रक्षा करने,
                       लगा बढ़ने हाथ।
सत्य अहिंसा बापू जी ने,
                       चला रखके साथ।।1
आन बान की लड़ी लड़ाई,
                       लगा तन को दाँव,
बाँध कफ़न सर आजादी की,
                       बढ़ा आगे पाँव।
झुकने नही दिया मरके भी,
                       तिरंगे की शान,
आजादी के परवाने थे,
                       खड़े सीना तान।
दे आजादी भारत माँ को,
                       भरा झोली फूल,
याद करो कुर्बानी उनकी,
                       नही जाना भूल,
हँसते हँसते आजादी को,
                       गए फंदे झूल।।2
इंकलाब जयकार लगाते,
                       खुदी शेखर बोस,
कतरा कतरा लहू बहाने,
                       भरे तन में जोश।
सोच फिरंगी थर थर काँपे,
                        चन्द्र शेखर नाम,
लाल बाल जी पाल खड़े थे,
                         साथ करने काम।
लक्ष्मी बाई हाथों दुश्मन,
                         चांट खाया धूल,
याद करो कुर्बानी उनकी,
                         नही जाना भूल,
हँसते हँसते आजादी को,
                          गए फंदे झूल।।3
रचना-इंजी.गजानंद*सत्यबोध*

सोमवार, 17 जुलाई 2017

छन्न पकैया(शौंचालय बनवाना)

*शौंचालय बनवाना*

छन्न पकैया छन्न पकैया,खुला शौंच ना जाना
दूर बिमारी घर से रखने,शौंचालय बनवाना।।1

छन्न पकैया छन्न पकैया,सुन लो बात हमारी।
बनवाओ घर में शौंचालय,घर की इज्जत नारी।।2

छन्न पकैया छन्न पकैया,स्वच्छ रखो जिनगानी।
साफ़ रखो तुम आसपास को,साफ़ रखो जी पानी।।3

छन्न पकैया छन्न पकैया,क्या है भारत उन्नति?
अस्वच्छता के कारण ही,भारत की ये दुर्गति।।4

छन्न पकैया छन्न पकैया,खोल आंकड़ा देखा।
दस देशों में सबसे आगे,अस्वच्छता की रेखा।।5

छन्न पकैया छन्न पकैया,स्वच्छ देश हो अपना।
आओ मिलके पूर्ण करें सब,बापू जी का सपना।।6

रचना- इंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

बुधवार, 12 जुलाई 2017

छन्न पकैया(सार छंद)


*छन्न पकैया(सार छंद)*

छन्न पकैया छन्न पकैया, नोहय बात लबारी।
छोड़ मोह दुनिया से जाना, हवे ओसरी पारी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, मुट्ठी बाँधे आना।
जीयत भरके मोर तहाँ ले, हाथ पसारे जाना।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, पथरा पड़ही छाती।
करम धरम सिरजाले भाई, जुग जुग बरही बाती।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, करम साथ बस जाथे।
परहित जिनगी जेहा जीथे, नाम जगत मा पाथे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, सुख दुख आना जाना।
मोल समय के नइ जाने ले, पड़थे जी पछताना।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, हरि के गुन ला गा ले।
चरदिनिया हे ये जिनगानी, मीठ मीठ गुठियाले।।

रचना - इंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
दिनांक- 12/07/2017

शनिवार, 8 जुलाई 2017

सरसी छंद-


*आ जाओ परदेशी बलमा*

तन है प्यासा मन है प्यासा, प्यासा है दिन रात।
नैन बदरिया बरसे जमकर, सावन की सौगात।।1

विरह - वेदना सजा मौत सी, पास खड़ी है रोज।
पलक झपकते उम्मीदों की, पास ख़ुशी को खोज।।2

साथ गूँजती है तन्हाई, बनकर चाँद चकोर।
तड़पाती हैं यादें उनकी, बनकर सूरज भोर।।3

सावन झूले लगे झूलने, फूल खिले हैं बाग़।
दहक रहा है शोला जैसे, बदन लगी जो आग।।4

राह ताकती नैना बैठी, पिया मिलन की आस।
आ जाओ परदेशी बलमा, अब ना करो उदास।।5

इंजी.गजानंद पात्रे *"सत्यबोध"*
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

लावणी छंद


सबका भूख मिटाने वाले,
              दुःखों में मर जाता है।।
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एक दर्द मेरे सीने में,
              रोज उभर कर आता है।
सबका भूख मिटाने वाले,
              दुःखों में मर जाता है।।
कभी मारता मौसम सूखे,
              कभी अल्प भारी वर्षा।
सदा माथ पे छाये चिंता,
              मन कभी नही है हर्षा।।
मजबूर सदा प्रकृति हाथों,
              देख खौफ डर जाता है।
सबका भूख मिटाने वाले,
               दुःखों में मर जाता है।।1।।
कभी मारता खाद नीति तो,
               कभी बीज कम पड़ता है।
कौन बतायें सच्ची बातें,
               बाहर मंडी में सड़ता है।।
पानी भाव धान है बिकता,
               अश्रु नयन भर आता है।।
सबका भूख मिटाने वाले,
               दुःखों में मर जाता है।।2।।
कभी मारता बोझ उधारी,
                हरदम कर्ज चुकाता है।
आक़ाओं के आगे पीछे,
                हक को माथ झुकाता है।।
देकर देखो मीठ प्रलोभन,
                सब बात बिसर जाता है।
सबका भूख मिटाने वाले,
                दुःखों में मर जाता है।।3।।
महसूस गर्व करता हूँ मैं,
                क्योंकि मैं कृषक पुत्र हूँ।
हाथ बढ़ाने आऊँ आगे,
                मैं सदा तुम्हारे मित्र हूँ।।
आज मिला है मान मुझे जो,
               कृषक पिता पर जाता है।
सबका भूख मिटाने वाले,
                दुःखों में मर जाता है।।4।।

रचना - इंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
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गुरुवार, 6 जुलाई 2017

लावणी छंद

 *गाँव की खुश्बू*

शहर ढूँढता गजानंद मैं, दो वक्त चैन पाने को।
आया छोड़ गाँव की खुश्बू, पैसा चंद कमाने को।।1

याद सुहानी तड़पाती है, दिल में बसे मुरादों की।
मिट्टी मिली ख़्वाब सारे, बलि चढ़ गई इरादों की।।2

सुई घड़ी सी सफर जिंदगी, घूम रहा है घेरे में।
चकाचौंध दिखता है बाहर, मन बैठा अंधेरे में।।3

तरस गए हैं कान सखा रे, कूक कोयली सुनने को।
आँखे भी निहारती है अब, पास देखने अपने को।।4

घूट घूट कर कब तक जीयें, कोलाहल के मेले में।
यहाँ गाँव सी कहाँ वादियाँ, साँसे बिकती ठेले में।।5

हाथ बटाते थे सुख दुख में, भाव रखे भाईचारा।
यहाँ तड़पते रह जाओगे, कोई भी नही सहारा।।6

लेकेे आना महक गाँव की, पूरा हो मेरे सपने।
रहे फर्क ना शहर गाँव में, लगने लगे सभी अपने।।7

रचना- इंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
*Copyright reserved*

मयूरशिखा छंद-

*मयूर शिखा (अर्ध सममात्रिक छंद)* नव प्रस्तारित आधार छंद है। *कुल मात्रा -- 54* *यति-- 14,13* *पदांत- IIS* *मापनी--- SSS-SSS-S, SSIS-SIIS* ( ...