रविवार, 21 अगस्त 2022

कुण्डलिया छंद

 बंदन

बंदन पहिली तोर हे, घासी सन्त महान।

कुण्डलियामय छंद मा, सत के करँव बखान।।

सत के करँव बखान, सुनव जी ध्यान लगा के।

दे दौ गुरु जी ज्ञान, भाव मन मोर जगा के।।

कलम बहय सत धार, लगे जस महके चंदन।

बनव सहारा मोर, करँव गुरु तोला बंदन।।


बानी सत रस घोर के, गुरु जी बाँटिस ज्ञान।

शीतल जल गुरुज्ञान के, पी लौ सन्त सुजान।।

पी लौ सन्त सुजान, कहे जी सतगुरु घासी।

मोह भरम अउ झूठ, अहम के काटय फाँसी।

पावव जग मा मान, बनौ मनखे सत दानी।

अमर रहय गुरु तोर, सदा जग मा गुरुबानी।।


जइसे सोना के परख, करय जौहरी ठोस।

परख करय गुरु वइसने, चेला के गुण दोष।।

चेला के गुण दोष, बतावय गुरु जी सच्चा।

गुरुवर रूप कुम्हार, घड़ा हम माटी कच्चा।।

गजानंद कर जोर, कहे जिनगी गुरु होना।

निर्मल करय विकार, जौहरी जइसे सोना।।


अरुण निगम गुरुदेव के, महिमा करँव बखान। 

ये दुनिया मा मोर बर, सउँहत वो भगवान।।

सउँहत वो भगवान, ज्ञान रुप मिलगे मोला।

पाये बर गुरु ज्ञान, रहिस भटकत जी चोला।।

जीवन उठे तरंग, बुढापा जस होय तरुण।

अइसे गुरु बन छाँव, मिले हे गुरुदेव अरुण।।


महिमा करौं बखान मैं, अरुण निगम गुरुदेव।

छत्तीसगढ़ पावन धरा, रखिस छंद के नेंव।।

रखिस छंद के नेंव, पाँव ला आगू रख के।

सँवरे हमरो भाग, छंद फल मीठा चख के।।

गजानन्द के आज, बढ़ाइस गुरु जी गरिमा।

अरुण निगम गुरुदेव, तोर मैं गावँव महिमा।।


अइसे गुरु के ज्ञान हे, जइसे चाक कुम्हार।

मानव मन कच्चा घड़ा, गुरु जी दै आकार।।

गुरु जी दै आकार, गढ़य मन के सुघराई।

जग में भरय प्रकाश, ज्ञान के जोत जलाई।।

गुरु गुण ज्ञान अथाह, थाह मैं पावँव कइसे

गजानंद सौभाग्य, मिले हें गुरुवर अइसे।।

महिमा अपरंपार गुरु, गुरु जी गुण के खान। तोर नाम से मोर गुरु, जग मा हे पहिचान।। जग मा हे पहिचान, मान सम्मान मिले हे। तोर धराये राह, सुमत के फूल खिले हे।। बन मैं सच्चा शिष्य, बढ़ावँव गुरु के गरिमा। तीन लोक मा जान, बड़े हे गुरु के महिमा।। ये तन माटी के घड़ा, गुरु जी चाक कुम्हार। अनपढ़ करे सुजान गुरु, ज्ञान जोत ला बार।। ज्ञान जोत ला बार, भगाये दुख अँधियारी। गुरु के पग मा मोर, हवय जिनगी बलिहारी।। गजानंद गुरु ज्ञान, बिना भटके मन बन-बन। कर ले गुरु गुनगान, साँस हे जब तक ये तन।। इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध' बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


अरजी घासीदास गुरु अरजी घासीदास गुरु, करँव टेक मँय माथ। बिगड़ी मोर बनाव गुरु, सुख-दुख मा दौ साथ।। सुख-दुख मा दौ साथ, हाथ आशिष के रख दौ। कृपा करव घनघोर, ज्ञान गुरु ज्ञानी लख दौ।। रहय सरल व्यवहार, बनँव झन मँय खुदगर्जी। गजानन्द कर जोर, खड़े हे सुन लौ अरजी।।


जप लौ जी सतनाम ला जप लौ जी सतनाम ला, अउ गुरु घासीदास। हटही मनोविकार हा, कटही दुख के फाँस।। कटही दुख के फाँस, जोत आशा के जलही। होही सुमत अँजोर, कुमत अँधियारी ढलही।। जिनगी होय निखार, सोन के जइसे तप लौ। पाये बर गुरु ज्ञान, नाम सतगुरु के जप लौ।।


कुण्डलिया विधान

दोहा के दू डाड़ अउ, रोला के जी चार।

कुण्डलिया मिलके बने, रहे बात सब सार।।

रहे बात सब सार, मुड़ी पूछी हो एक्के।

कर रोला शुरुआत, त्रिकल सम पद मा रख के।।

कुण्डलिया लय मीठ, सुधा रस जाथे बोहा।

मार कुण्डली सांप, लगे बइठे ये दोहा।।


सुग्घर लिखबो छंद

सुग्घर लिखबो छंद हम,रखके बढ़िया भाव।

गढ़बो नव इतिहास जी, होही जग मा नाँव।।

होही जग मा नाँव, धरोहर पीढ़ी गढ़ही।

भर दे नवा विचार, जगत मा आघू बढ़ही।।

रखके समता नींव, प्रेम के अक्षर सिखबो।

आवव मिलके आज,छंद हम सुग्घर लिखबो।


*छत्तीसगढ़ी गोठ*

छत्तीसगढ़ी गोठ मा, मधुरस सहीं मिठास।

दया मया झलके बहुत, मन मा भरे हुलास।।

मन मा भरे हुलास, ददरिया पंथी करमा।

सुवा बांस जसगीत, सुनावय जब घर घर मा।।

गजानंद धर ध्यान, मान भाखा के बढ़ही।

कर के जब अभिमान, बोलबो छत्तीसगढ़ी।।

14/05/2021


आरती

बंदन घासीदास गुरु, सोमवार शुभ वार।

जोत जले सतनाम के, आप बनौ करतार।।

आप बनौ करतार, कृपा मँय तोरे पावँव।

बन आशा बिस्वास, सदा गुरु पइँया लागँव।।

तोर चरण के धूल, लगावँव माथा चन्दन।

हे गुरु घासीदास, करौं मँय सत सत बंदन।।


मंगल दिन मंगल करौ, हे! गुरु घासीदास।

सफल करौ कारज सबो, बन आशा विश्वास।।

बन आशा विश्वास, खजाना सुख के भर दौ।

उगय सुमत के भोर, प्रेम जग रोशन कर दौ।।

गुरु के सुन गुनगान, दिखे झूमत बन जंगल।

तोर बनँव पग दास,करौ गुरु जी शुभ मंगल।।


करँव आरती तोर गुरु, आज दिवस बुधवार।

पाँव बढ़य सत राह मा, मानवता उपकार।।

मानवता उपकार, धरम हो सबके जग मा।

सत्य अहिंसा फूल, खिले सुमता पग पग मा।।

गुरु दौ आशीर्वाद, सदा सेवा राह  धरँव।

दीप जला गुरु ज्ञान, तोर मँय गुनगान करँव।।


अलख जगे सतनाम के, शुभ दिन हो गुरुवार।

हो उजास मन भीतरी, मिटे जगत अँधियार।।

मिटे जगत अँधियार, रहे ना द्वार अशिक्षा।

भूख गरीबी दूर, ज्ञान के दव गुरु  दीक्षा।।

सार नाम सतनाम, राग ना मन द्वेष पले।

आपस बाँधव प्रेम, द्वार जगमग जोत जले।।


बिनती बारम्बार हे, शुक्रवार को आप।

करहू जग कल्यान गुरु, हरहू जग संताप।।

हरहू जग संताप, शरण मा हँव मँय तोरे।

आशा अउ विश्वास, भरौ गुरु मन मा मोरे।।

तोर चरण के दास, मोर हो पहिली गिनती।

हावय ये अरदास, सुनौ सतगुरु जी बिनती।।


बंदन कर शनिवार के, दिव्य नाम सतनाम।

सत्य राह मा बढ़ चलौ, बनै हृदय सतधाम।।

बनै हृदय सतधाम, बसै घट घट गुरु घासी।

जग के चारों धाम, हमर सतगुरु अविनासी।।

गजानंद धर ध्यान, माथ मा चमकय चंदन।

बनौ सहारा आप, करत हँव गुरु जी बंदन।।


रवि बन गुरु रविवार के, मन मा करौ प्रकाश।

लोभ मोह अँधियार ला, जग से करौ बिनाश।।

जग से करौ बिनाश, बहे सुमता के धारा।

खिले सुमत के फूल, रहे जग भाईचारा।।

उन्नत देश समाज, साफ मन हो सुंदर छवि।

गजानंद कर जोर, कहे चमकय बन सब रवि।।


(सन्त गुरु घासीदास - 42 अमृतवाणियाँ)

घट घट मा सतनाम अउ, मन पट राखव आस।

भरव ज्ञान मन मा कहे, सत गुरु घासीदास।।

सत गुरु घासीदास, कहे सन्तन अव मोरे।

महिनत रोटी खाव, मिले ज्यादा या थोरे।।

करम रखव विस्वास, लोभ ले जाये मरघट।

ब्यर्थ मोह अउ क्रोध, बसावव झन अंतस पट।। 1


पीरा सबके ओतके, जतके हावय तोर।

सेवा दीन गरीब के, कर लौ संतन मोर।।

कर लौ संतन मोर, ददा दाई के सेवा।

असली ये भगवान, चढ़ा झन पथरा मेवा।।

गुरूमुखी धर ज्ञान, चीज पर के हे कीरा।

सबो जीव हे एक, समझ ले सबके पीरा।। 2


पीढ़ी ऊँचा साज के, बैरी ला दौ मान।

पर विरोध अन्याय बर, राहव सीना तान।।

राहव सीना तान, दूर रह निंदा चारी।

घर के इज्जत जान, भले हो पर के नारी।।

कहना मान सुजान, चढ़व सुमता के सीढ़ी।

दया मया जग सार, बतावव भावी पीढ़ी।। 3


जड़ ना झगरा के कभू, ओखी खोखी ताय।

आँच लगे ना सच कभू, बात सही ये आय।।

बात सही ये आय, उड़ावव बिरथा झन धन।

खरचा रखव लगाम, सुखी राखव घर तन मन।।

काँटा झन बगराव, पड़े झन कोनों गड़ना।

राखव सुंता बाँध, रहे झगरा के जड़ ना।। 4


पानी पीयव छान के, गुरू बनावव जान।

आसन तिलक लगाव जी, पहुना सन्तन मान।।

पहुना सन्तन मान, सगा हे बड़का बैरी।

सगा गला के फाँस, चना कस ये हा खैरी।।

खावव सब मिल बाँट, करौ झन खुद मनमानी।

करके बात सरेख, झोंक लौ अमरित पानी।। 5


दाई हा दाई हरय, गोद मया बरसाय।

दूध कभू निकराव झन, सुन मुरही जी गाय।।

सुन मुरही जी गाय, फँदाये झन ये नाँगर।

जुड़ा भैंस रख खांध, पेराये ना ये जाँगर।।

हो नारी सम्मान, सुनव बिधवा करलाई।

फिर से करय बिहाव, दरद सुन दुखिया दाई।। 6


पीतर के मनई लगे, मोला तो बइहाय।

जीयत मा दाई ददा, दूर रखे तरसाय।।

दूर रखे तरसाय, मोह माया मा पर के।

पिंडा ला परवाय, मरे मा तरजै कहिके।।

सुन मानुष नादन, रखव आदर मन भीतर।

कहिगे घासीदास, लगे बइहासी पीतर।। 7


खोवय सोवय तेन हा, जागय वो हा पाय।

धीरज फल मीठा लगे, धीर पुरुष हा खाय।।

धीर पुरुष हा खाय, छोड़ के रोष भरम ला।

लोभी मन पछताय, भुलाये अपन करम ला।।

सोये निंदिया जाग, देख अंतस झन रोवय।

खूब करव सिंगार, मान धरती झन खोवय।। 8


कारन ला जाने बिना, झन तुम न्याय सुनाव।

जिनगी के रद्दा कभू, फिर उरभट ना पाव।।

फिर उरभट ना पाव, ज्ञान जग मा तुम बाँटव।

मन के हारे हार, जीत के ढेरा आँटव।।

गीत सुमत के गाव, साथ हे सतगुरु तारन।

झन पावय निर्दोष, सजा जग मा बिन कारन।। 9


मानौं फोकट सुख करे, ये जिनगी ला राख।

महिनत के रोटी हवय, सुख जिनगी के साख।।

सुख जिनगी के साख, भरोसा खुद मा राखौ।

बोली अँगरा लूख, कभू झन अइसन भाखौ।।

नशा पान ला छोड़, बुराई बड़का जानौ।

बसे धुवाँ मा प्राण, बरोबर जिनगी मानौ।। 10


रइही मन वइसे सदा, जइसे खाहू अन्न।

मन मन्दिर भक्ति ले, रइहू सदा प्रसन्न।।

रइहू सदा प्रसन्न, मूर्ति पूजा ला छोड़व।

झन कर तन सिंगार, घड़ा लालच के फोड़व।।

पर हित बर तकलीफ, जेन दुनिया मा सइही।

बनके संत महान, अमर वो जुग जुग रइही।। 11


गुरुद्वारा मन्दिर बना, झन तँय हा बेकार।

का मस्जिद अउ चर्च से, होही जन उद्धार।।

होही जन उद्धार, पाठशाला तरिया से।

कुँआ बावली आन, छुड़ा कब्जा परिया से।।

करना हे सच दान,बहा ये मा धन सारा।

मानवता बरदान, नहीं मन्दिर गुरुद्वारा।। 12


बोले घासीदास गुरु, सुन लौ बारम्बार।

मोला बड़का झन कहू, ये लाठी कस मार।।

ये लाठी कस मार, प्रेम मन आदर चाहँव।

सत मा सूरज चाँद, खड़े हे धरती काहँव।।

जग मा सत्य महान, पवन पुरवाई डोले।

गजानंद रख ध्यान, सन्त गुरु घासी बोले।। 13

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कुण्डलिया छंद- दिव्य सात संदेश

सतगुरु घासीदास के, दिव्य सात संदेश। जग जन के कल्याण कर, बदले हे परिवेश।। बदले हे परिवेश, सत्य ला ईश्वर जाने। अउ ईश्वर ही सत्य, समाये घट घट माने।। बोझा ढोंग उतार, तभे लगही मन हा हरु। राखव उच्च विचार, कहे सुन घासी सतगुरु।।1 सत के कर गुनगान तँय, कहना घासीदास। सत मा हे धरती खड़े, चाँद सुरुज आकाश।। चाँद सुरुज आकाश, करे हे जग उजियारी। जप ले मन सतनाम, मिटे अंतस अँधियारी।। बनबे मनुज सुजान, जानबे सत ला जतके। गजानंद हम आप, बनिन अनुयायी सत के।।2 मनखे-मनखे एक हे, एक सबो हे जीव। सच मा मानव धर्म के, सत्य अहिंसा नींव। सत्य अहिंसा नींव, कहे हे सतगुरु घासी। घट मा चारो धाम, मान ले मथुरा काशी।। धरे अंधविश्वास, सत्य नइ पावव परखे। कोढ़ बरोबर ढोंग, रोग सँचरे मन- मनखे।।3 माँसाहारी झन बनव, नशापान दव त्याग। तन मन करे विनाश ये, दुरिहाथे सुख भाग। दुरिहाथे सुख भाग, घृणा जन-जन हा करथे। बनय खोखला देह, कई ठन रोग सँचरथे।। दूध दही खा घीव, हवय ये बड़ गुणकारी। नशापान दव त्याग, बनव झन माँसाहारी।।4 चोरी करना पाप हे, महिनत रोटी खाव। पर धन नजर गड़ाव झन, गुरु के मान सुझाव। गुरु के मान सुझाव, समझ पर नारी माता। नारी से संसार, सबो के भाग्य विधाता।। राखव प्रेम सुभाव, सुमत के बाँधव डोरी। कहना घासीदास, छोड़ दौ करना चोरी।।5 नाँगर झन जोतव कभू, खड़े मझनिया बेर। समय इही आराम के, रूक भला कुछ देर।। रूक भला कुछ देर, लकलकावत हे बइला। गुरु घासी के बात, सदा जन जन मा फइला।। सुख पाबे दुख बाद, पेर ले पहिली जाँगर। सब के सुख रख ध्यान, फाँद ले बइला नाँगर।।6 पथरा पूजा छोड़ दौ, देव असल माँ बाप। मन भीतर खुद झाँक लौ, हवय अकारथ जाप।। हवय अकारथ जाप, लगा झन बिरथा फेरा। रूढ़िवाद अउ ढोंग, लगे हे पग पग डेरा।। राखव मान सहेज, बचावव सुख के सथरा। कहना घासीदास, लुटवावव धन झन पथरा।।7 छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 22/06/2022

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 सतगुरु घासी मोर

चंदन सोहय माथ मा, पाँव खड़ाऊ तोर।

गल मा कंठी हे सजे, सतगुरु घासी मोर।।

सतगुरु घासी मोर, अहिंसा सत्य पुजारी।

माँ अमरौतिन कोंख, लिये गुरु तँय अवतारी।।

पिता महंगू दास, गिरौदपुरी ला वंदन।

चरण कमल के धूल, लगावँव मँय तो चंदन।।


सतगुरु नाम अनंत पाथे जीवन सार अउ, परम सुखद सतधाम।। हृदय धीर रख जे करे, नाम ध्यान सतनाम। नाम ध्यान सतनाम, चरण गुरु पावन मिलथे। महके मन के द्वार, फूल सुख जिनगी खिलथे।। सतगुरु नाम अनंत, जाप भव पार लगाथे। गजानंद सत ज्ञान, कृपा सतगुरु से पाथे।


सत संदेशिया

बन के सत संदेशिया, सत के करिस प्रचार। जग हित घासीदास गुरु, करिस समाज सुधार।। करिस समाज सुधार, सुमत के पाठ पढ़ा के। दिये मंत्र सतनाम, सबो ला पास बुला के।। मनखे-मनखे एक, गरब झन कर ये तन के। गजानंद सत राह, चलव अनुयायी बन के।।


हे गुरु घासीदास

हर साँसा मा हव बसे, हे गुरु घासीदास। मिटथे तोरे नाम से, जिनगी के दुख त्रास।। जिनगी के दुख त्रास, दूर कर सुख भर देहू। भटकौं झन सत राह, थाम गुरु मोला लेहू।। आप आस अरदास, बने हो मन विश्वासा। हे गुरु घासीदास, बसे रइहौ हर साँसा।।


अमरदास गुरु ज्ञान

गढ़ना हे जिनगी अगर, पाना हे सुख मान।

गाँठ बाँध रख लौ सदा, अमरदास गुरु ज्ञान।।

अमरदास गुरु ज्ञान, हवय जी सत्य अधारा।

एक शब्द जग सार, कहिस सतनाम सहारा।।

छोड़ असत के राह, सत्य के मारग बढ़ना।

मानवता पढ़ पाठ, सुमत समता ला गढ़ना।।


माह दिसम्बर गुरु पर्व

माह  दिसम्बर  पर्व  हे, गुरु  जी  घासीदास।

देखव मन मा  छाय हे, सुग्घर  जी उल्लास।

सुग्घर जी  उल्लास, बहय  सत  के पुरवाई।

सबके मन मा भाव, जगय  सुमता के भाई।

गूँजय जग सतनाम, दिखत हे सादा अम्बर।

लगगे  पावन  पर्व, नमन  हे  माह दिसम्बर।।


                          अर्जी घासीदास गुरु

अर्जी घासीदास गुरु, बनहू आप सहाय।

कोटि कोटि वंदन करौं, चरणों माथ नवाँय।।

चरणों माथ नवाँय, बना दौ बिगड़े काजा।

जग के तारनहार, सुनौ बिनती ला आ जा।।

मानवता दे पाठ, चलै ना मँय के मर्जी।

बँधै सुमत संसार, हवे बस अतके अर्जी।।


गुरु घासी संदेश

गुरु घासी संदेश ला, जग जन मा बगराव।

सत्य अहिंसा के डगर, निस दिन पाँव बढ़ाव।

निस दिन पाँव बढ़ाव, सुमत के थामे डोरी।

मिहनत रोटी खाव, करौ झन पर धन चोरी।

गजानंद सत बोल, करे दुख दूर उदासी।

मीठ मया रस घोल, कहे जी सतगुरु घासी।।


मनखे-मनखे एक

काँटा बन के जाति जब, रहिस गड़ावत शूल। मनखे-मनखे एक के, बात गइन सब भूल।। बात गइन सब भूल, प्रेम सुख भाईचारा। छुआछूत भ्रम भूत, शांति ला करे किनारा।। ऊँच नीच के नाम, रहिस होवत जग बाँटा। तब गुरु घासीदास, निकालिस पग से काँटा।।


मोर परिचय

बहथे पुरवाई मया, बर पीपर के छाँव।

नदी तीर मा हे बसे, मोर सेंदरी गाँव।।

मोर सेंदरी गाँव, जिला परथे मुंगेली।

डाक पता ये मोर, पोस्ट जी हवय जरेली।।

थाना अउ तहसील, पथरिया कस्बा परथे।

गजानन्द हे नाव, मया रचना मा बहथे।।


कइसे सकबो हम चुका, माता पिता उधार।

लैनदास जी हे पिता, माता स्वर्ग सिधार।।

माता स्वर्ग सिधार, छोड़ के चलदिस हम ला।

भाई  हम जी सात, देख रोवत हन अब ला।।

भाई मँय हा छोट, दुलरवा रहिथे जइसे।

बँधे सुमत के गाँठ, तोड़ही कोनो कइसे।।


जीवन के हे संगिनी, मया पिरित के छाँव।

सुख दुख मा जे साथ हे, उषा हवय जी नाव।।

उषा हवय जी नाव, मोर जिनगी महकाये।

बनके कली गुलाब, तीन ठा फूल खिलाये।।

वर्षा मेघा संग, हवय ऋतु तीनों सीजन।

रखँव मया ला जोर, सदा मैं हा ये जीवन।।


माँ

जग लागे अँधियार जी, माँ बिन मया दुलार।

जीव चराचर माँ बिना, बिरथा हे संसार।।

बिरथा हे संसार, सृष्टि के पालनहारी।

किस्मत वाला जान, हवे जेकर महतारी।।

गजानंद दुर्भाग, दुखी अँधियारी छागे।

छोड़ गइस माँ साथ, अधूरा ये जग लागे।।


ममतामयी मिनीमाता

ममता के सागर तहीं, तहीं दया के खान।

सुनौ मिनीमाता सुनौ, जननी जगत बिधान।

जननी जगत बिधान, बना दे सबके बिगड़ी।

दे अइसे बरदान, बँधे मुड़ सुमता पगड़ी।

गजानंद के दर्द, रहय सब के मन समता।

बेटा करय पुकार, रखे रहिबे माँ ममता।।


कुण्डलिया छंद - बेटी बेटी हे अनमोल धन, बेटी सुख के खान। रखे सँजो परिवार घर, बन के दू कुल शान।। बन के दू कुल शान, अपन सत धरम निभाथे। मइके अउ ससुराल, खुशी के भोर उगाथे।। बाँटय मया दुलार, भरय घर सुख धन पेटी। भागमनी माँ बाप, करम मा पाथे बेटी।। महकाथे घर द्वार ला, बेटी बनके फूल। सहि जाथे चुपचाप जी, दुख ला तको कबूल।। दुख ला तको कबूल, करे धर जिम्मेदारी। ममता के प्रतिरूप, जुलुम बर बने कटारी।। गीता ग्रंथ कुरान, बाइबिल गुन ला गाथे। बनके बेटी फूल, द्वार अँगना महकाथे।। करथे घर उजियार जी, बेटी बन कुल दीप। गहराई मन मा भरे, जस सागर मा सीप।। जस सागर मा सीप, बरोबर बेटी होथे। बाँधे अँचरा छोर, लाज दू कुल के ढोथे।। जे घर परथे पाँव, उँहा सुख कोठी भरथे। बेटी बन कुल दीप, सदा उजियारी करथे।। 🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 24/01/2024 बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


खाँटी बात

चलथन सीना तान के, करथन खाँटी बात।

सतनामी के सामने, काकर का औकात।।

काकर का औकात, हवन हम धधकत आगी।

सुनके हमर दहाड़, छुटे दुश्मन के पागी।।

सत्य हमर पहिचान, न्याय के खातिर लड़थन।

सत गुरु बालकदास, धरे बाना ला चलथन।।


सार जगत सतनाम

रखथे धरती पाँव सत ,चंदा सुरुज प्रकाश।

सार जगत सतनाम हे, कह गय घासीदास।।

कह गय घासीदास, बने पँच तत्व शरीरा।

हे धरती आकाश, आग जल संग समीरा।।

सत वचना सत काज, कहाँ आत्मा हा मरथे।

भटकत हंसा नाम, पाँव धरती मा रखथे।।


 जप लौ जी सतनाम

ये जिनगी हे चार दिन, जप लौ जी सतनाम।

नेक रखौ ब्यवहार ला, कर लौ बढ़िया काम।।

कर लौ बढ़िया काम, नाम दुनिया मा होही।

करौ भलाई दीन, दुखी के बनौ बटोही।।

बाँटव मया अँजोर, जले ना दुख के तिलगी।

गजानंद घनघोर, प्रेम रस बरसे जिनगी।।


*अलख जगे सतनाम*

छत्तीसगढ़ पावन धरा, गुरु गिरौदपुर धाम।

बाबा घासीदास ले, अलख जगे सतनाम।।

अलख जगे सतनाम, देश के कोना कोना।

बन के संत महान, मिटाइस जादू टोना।।

रूढ़िवाद पाखंड, रहिस जब बहुते चढ़ बढ़।

गुरु लिन अवतार, बनिस पावन छत्तीसगढ़।।

11/05/2021


महिमा घासीदास गुरु

महिमा घासीदास गुरु, जग मा संतो सार।

जपथे जे सतनाम ला, होथे भव ले पार।।

होथे भव ले पार, नाव चढ़ सत के प्राणी।

मिट जाथे सब क्लेश, धरे ले सतगुरु वाणी।।

पाथे जग मा मान, सदा ही बढ़थे गरिमा।

गजानंद गुरु नाम, जपे जा सत के महिमा।।

12/05/2021


*सार नाम सतनाम*

करथे जे मन बंदगी, सुबह शाम सतनाम।

दूर रहे बिपदा सबो, बनथे बिगड़े काम।।

बनथे बिगड़े काम, धाम वो सुख के पाथे।

गुरु चरन मा शीश, नवाँ जिनगी सँहराथे।।

सार नाम सतनाम, सबो के दुख ला हरथे।

मन मंदिर ला खोल, जपन जे गुरु के करथे।।

13/05/2021


*धुरी बने सतनाम*

कर दिस जग सतनाममय, सतगुरु घासीदास।

चाँद सुरुज पानी हवा, धरती अउ आकाश।।

धरती अउ आकाश, टिके सत महिमा धर के।

धुरी बने सतनाम, सबो के दुख ला हर के।।

मानवता दे पाठ, सुमत ला जन जन भर दिस।

बन के ज्ञान प्रकाश, धरा ला जगमग कर दिस।।

14/05/2021


*गुरु वाणी*

ब्यालिस अमरित वाणियाँ, सात सार संदेश।

गुरु वाणी ला धर चलव, मिट जाही सब क्लेश।।

मिट जाही सब क्लेश, कहे हे गुरु जी घासी।

मिले परम आनंद, मिटे मन सबो उदासी।।

गजानंद सुख धाम, उही मनखे हा पा लिस।

धरे सात जे सार, वाणियाँ अमरित ब्यालिस।।

15/05/2021


एक खून तन चाम

बाढ़े राहय घोर जब, शोषण अत्याचार।

जात-पात के नाम मा, बँटे रहिस संसार।।

बँटे रहिस संसार, रहिस मनखे ना मनखे।

सतगुरु घासीदास, सुमत तब बात सरेखे।

एक खून तन चाम, कहिस मानवता माढ़े।

बाँटिस सुग्घर ज्ञान, मया आपस मा बाढ़े।।

16/05/2021


सतगुरु सुनौ पुकार

वंदन घासीदास गुरु, बिनती हे कर जोर।

छाये हे दुख के घटा, कृपा करौ घनघोर।।

कृपा करौ घनघोर, सबो बिपदा ला हर दौ।

दे दौ सुख वरदान, खुशी झोली मा भर दौ।।

गजानंद दुखियार, सहे नइ पावत क्रन्दन।

सतगुरु सुनौ पुकार, करत हौं तोला वंदन।।

17/05/2021


अमर हे गुरु के गाथा

जगमग दियना हे जले, सतगुरु जी के द्वार।

गावव महिमा भक्त जन, करके जय जयकार।।

करके जय जयकार, नवाँ लौ सब झन माथा।

सार नाम सतनाम, अमर हे गुरु के गाथा।।

धरे चलौ गुरु नाम, खुशी तब मिलही पग पग।

गजानंद मन द्वार, हृदय हा होही जगमग।।

18/05/2021


झंडा सतगुरु नाम के

झंडा सतगुरु नाम के, फहर फहर फहराय।

गुरु घासी के बोल हा, सब ला गजब सुहाय।।

सब ला गजब सुहाय, गीत पंथी अउ चौका।

गुरु महिमा कर गान, मिले हे संतो मौका।।

जपव नाम सतनाम, भरे तब सुख के हंडा।

अपन हृदय मन द्वार, गड़ा ले सादा झंडा।।

19/05/2021


गुरु घासी हे नाँव

सादा चंदन माथ मा, सजे खड़ाऊ पाँव।

जपे नाम सतनाम ला, गुरु घासी हे नाँव।।

गुरु घासी हे नाँव, पुजारी जे हा सत के।

मानवता दे पाठ, हरिस तकलीफ भगत के।।

मानव जग कल्याण, रखिस गुरु नेक इरादा।

सत्य शांति पहिचान, बताइस झंडा सादा।।

20/05/2021


मनखे-मनखे एक

उजियारी सत के करिस, सतगुरु घासीदास।

पाठ पढ़ा इंसानियत, करिस कुमत के नाश।।

करिस कुमत के नाश, दिला हक सब ला समता।

मनखे-मनखे एक, कहिस गुरु राखव ममता।।

सुमता होय बिनाश, करे पर लिग़री-चारी।

तोड़ कपट के फाँस, करौ मन ला उजियारी।।

21/05/2021


 कहना घासीदास गुरु

कहना घासीदास गुरु, सब संतो अव मोर।

जाति-धरम ला छोड़ के, रइहू सुमता जोर।।

रइहू सुमता जोर, बढ़े जग भाईचारा।

सत्य अहिंसा प्रेम, बहे समरसता धारा।।

भेदभाव मन पाट, रखौ मानवता गहना।

मनखे मनखे एक, हवे गुरु घासी कहना।।

22/05/2021


 गुरु घासी के बोल हे

खानी बानी ले मिले, आदर अउ सत्कार।

गुरु घासी के बोल हे, धीर रखौ ब्यवहार।।

धीर रखौ व्यवहार, इही जग मान दिलाथे।

पर सेवा उपकार, असल मा दान कहाथे।।

गढ़ लौ नवा सुराज, धरे तुम बात सियानी।

मनखे के पहिचान, बनाथे खानी बानी।।

23/05/2021


मनुष जोनी ला पाके

रहिके मुँह गूँगा उही, जपे न जे सतनाम।

हाथ पाँव बिरथा घलो, करे न जे सतकाम।।

करे न जे सतकाम, मनुष जोनी ला पाके।

अँधरा वो इंसान, आँख रह सत नइ झाँके।।

गजानंद चुपचाप, रहत हें दुख ला सहिके।

सुने न जे गुरु बोल, कान दू ठन भी रहिके।।

24/05/2021


गुरु घासीदास जी के सात रावटी

1-

पहला सतगुरु रावटी, दूर सघन वन गाँव।

पावन चिरई डोंगरी, जुड़ पीपर के छाँव।।

जुड़ पीपर के छाँव, तरी गुरु ध्यान लगाये।

राहय रोग प्रकोप, गाँव के लोग दुखाये।।

करे निवारण रोग, मसीहा सुख के कहला।

मानव जग कल्याण, रावटी गुरु के पहला।।


2-

दूजा सतगुरु रावटी, बस्तर के कांकेर।

बर बिरवा के छाँव मा, गुरु जी तंबू घेर।।

गुरु जी तंबू घेर, सुनावय कीर्तन मंगल।

सत्तनाम के शोर, उड़त हे बीहड़ जंगल।।

दिये पुत्र वरदान, करिस जब बाँझन पूजा।

जन सेवा उपकार, रावटी गुरु के दूजा।।


3-

सतगुरु तीसर रावटी, डोंगरगढ़ के धाम।

पहुँचे घासीदास गुरु, नाम जपत सतनाम।।

नाम जपत सतनाम, करे जन अंध भलाई।

दे के सुख दू नैन, मिटाइस दुख करलाई।।

पशुबलि मंदिर द्वार, प्रथा राहय जोर शुरू।

बंद करिस पशुवद्ध, रावटी पावन सतगुरु।।


4-

चौंथा गुरु के रावटी, गाँव भवरदा नाम।

जिला कवर्धा हे पड़े, संत कबीरा धाम।।

संत कबीरा धाम, रावटी ला गुरु डारे।

कर सेवा उपचार, कुष्ठ रोगी ला तारे।।

कुष्ठ रोग अभिशाप, कहय कुंठित मनु पोथा।

दिये मिटा भ्रम अंध, रावटी गुरु के चौंथा।।


5-

पंचम गुरु के रावटी, पावन भोरमदेव।

साजे चंदन माथ मा, कंठी काँध जनेव।।

कंठी काँध जनेव, पदुम हे पाँव सुहावन।

शीतल सुख बर छाँव, रावटी गुरु मनभावन।।

पा गुरु आशीर्वाद, अपाहिज कूदे झमझम।।

मिटे कष्ट विकलांग, रावटी गुरु के पंचम।।


6-

छठवा गुरु जी रावटी, करिस रतनपुर धाम।

समरसता के नाम मा, दिये गड़ा सत खाम।।

दिये गड़ा सतखाम, सेत झंडा लहराये।

करे शुद्ध गुरु नीर, दुलहरा ताल कहाये।।

पाये रत्ना ज्ञान, रहिस मन जेखर कठवा।।

करे रतनपुर धन्य, रावटी गुरु के छठवा।।


7-

सप्तम गुरु के रावटी, दलहा ऊँच पहाड़।

सत के करे प्रचार गुरु, सेत खाम ला गाड़।

सेत खाम ला गाड़, प्रथम गुरु चौंका साजे।

गुरु घासी के संग, शिष्य रतिदास बिराजे।।

सूर्य कुंड निर्माण, करिस दलहा मा अनुपम।

गजानंद धर ध्यान, रावटी गुरु के सप्तम।।

25/05/2021


 हे गुरु घासीदास

साँसा मा रइहू बसे, हे गुरु घासीदास।

आप मोर विस्वास गुरु, आप मोर हौ आस।।

आप मोर हौ आस, दरस दे दौ गुरु मोला।

पाये बर गुरु ज्ञान, हवय भटकत ये चोला।

गजानंद भ्रम लोभ, कटे माया के फाँसा।

लेवत रइहूँ नाम, चले ये जब तक साँसा।।

29/07/2021


 दयानिधि सतगुरु घासी

पावन तोर चरण मिलय, मोर बनय सब काम।

सुबह शाम दिन रात गुरु, लेवँव मँय हा नाम।।

लेवँव मँय हा नाम, दयानिधि सतगुरु घासी।

भरव सुमत भंडार, हरव दुख ला अविनाशी।।

कर सुमिरन गुरु तोर, चरण मा माथ नवाँवन।

अरजी हे कर जोर, करव जिनगी ला पावन।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)31/07/2021


अजर नाम सतनाम

असली सत गुरु नाम हे, दुख के करे निदान।

जे ना समझे अर्थ ला, वो मानुष नादान।।

वो मानुष नादान, सदा जग मा हे भटके।

पाय बिना गुरु ज्ञान, अधर मा नइया अटके।।

अजर नाम सतनाम, बाकि हे सब तो नकली।

गजानंद धर ध्यान, ज्ञान सतगुरु के असली।।


क्षमता हे गुरु नाँव

समता हे सतनाम मा, क्षमता हे गुरु नाँव।

जाप करे गुरु नाम ले, मिलथे सत सुख छाँव।।

मिलथे सत सुख छाँव, हृदय हो जावय पावन।

खिले खुशी के फूल, लगे मन बड़ा सुहावन।।

महामंत्र सतनाम, भरे जग जन में ममता।

दया धरम उपकार, बसाये जन जन समता।।


जपव नाम सतनाम

दुख के बेरा झन उगय, कर ले अइसे काम।

कहना घासीदास गुरु, कमा जगत मा नाम।।

कमा जगत मा नाम, बाँट ले दुखिया पीरा।

जपव नाम सतनाम, इही हे असली हीरा।।

लगा सुमत के पेड़, मिले जग छइँहा सुख के।

जिनगी हो खुशहाल, कटे दिन बाढ़े दुख के।।


जप लौ गुरु के नाम

थामे गुरु  के  ज्ञान ला, बढ़े  चलौ  सत  राह।

नाव  चढ़ौ  सतनाम के, जिनगी  पाहू  थाह।।

जिनगी पाहू थाह, खुशी के  फुलही फुलवा।

बँधे सुमत के डोर, सबो मिल  झूलौ झुलवा।।

गजानंद धर  ध्यान, मया सुध जग  मा लामे।

जप लौ  गुरु के नाम, सदा सत  मारग थामे।।


घट गुरु घासीदास

साँसा मा विश्वास हे, घट गुरु घासीदास।

साँचा गुरु के नाम हे, जेन बँधावय आस।।

जेन बँधावय आस, भक्ति फल संतन पावय।

महा नाम सतनाम, धरे जन महिमा गावय।।

भवसागर ले पार, करे काटत दुख फाँसा।

गजानंद गुरु गान, करे जब तक हे साँसा।।


सत के साँचा

सत के साँचा मा ढले, मानव रूप शरीर।

जीव चराचर अउ धरा, आग हवा नभ नीर।।

आग हवा नभ नीर, नींव जग चाँद सुरुज हा।

सत्य छोड़ के झूठ, धरे हे आज मनुज हा।।

रहिबे भ्रम ले दूर, जानबे सच ला जतके।

गजानंद धर धीर, चले जा मारग सत के।।

20/06/2022


हृदय बसा सतनाम

जप ले पावन नाम तँय, हो जाबे भवपार।

दुनिया मा सतनाम हा, नाम हवय जी सार ।।

नाम हवय जी सार, समाहित जेमा समता।

बाँध रखे संसार, हवय अइसन जी क्षमता।।

गजानंद गुनगान, लगे सत के मनभावन।

हृदय बसा सतनाम, नाम ये सब ले पावन।।

20/06/2022


आंदोलन सतनाम के

आंदोलन सतनाम के, रहिस समाज सुधार।

सतगुरु घासीदास जी, सत के करिस प्रहार।।

सत के करिस प्रहार, ढोंग पांखण्ड मिटाये।

छुआछूत ला मेट, सुमत के पाठ पढ़ाये।।

धन्य धन्य गुरु आप, हमर उद्धारक बोलन।

करे जगत कल्याण, चलाये तँय आंदोलन।।

20/06/2022


सादा गमछा

गमछा सादा जान लौ, सतनामी पहिचान।

पागा बाँधव सेत के, देखत बनथे शान।।

देखत बनथे शान, मान सम्मान ह बढ़थे।

सादा धोती संग, धरम सतनामी गढ़थे।।

हे सतनामी मान, करम करथे जे अच्छा।

याद करव इतिहास, बबा घासी के गमछा।।


सुमता

डोरी सुमता बाँध लौ, जिनगी के आधार।

बिन सुमता के सुख कहाँ, सुन्ना हे संसार।।

सुन्ना हे संसार, मया बाँटत जग जावव।

बोलव मीठा बोल, मया बदला मा पावव।।

मया सुरुज अउ चाँद, रात पुन्नी अंजोरी।

सुन लौ बिनती मोर, बाँध लौ सुमता डोरी।।


सुमता रखौ सहेज के, ये समाज आधार।

लाये जिनगी मा खुशी, सुखी रखे परिवार।।

सुखी रखे परिवार, गढ़ै नित विकास सीढ़ी।

बढ़े चलै नव हाथ, युगों तक भावी पीढ़ी।।

गजानंद कर जोर, कहे उपजे ना कुमता।

उगा सुमत के पेड़, छाँव हो अँगना सुमता।।


राजा गुरु बालकदास

सादा पगड़ी माथ मा, हाथ धरे तलवार।

करय रावटी गाँव मा, हाथी होय सवार।।

हाथी होय सवार, संग सरहा जोधाई।

राजा बालकदास, करे सुमता अगुवाई।।

मिटगें बीर सपूत, कहे पर कर लौ वादा।

सतनामी के शान, बढ़ाहू झंडा सादा।।


सतनामी के आन जी, सतगुरु बालक दास।

सरहा जोधाई रहय, सुमता अउ बिस्वास।।

सुमता अउ बिस्वास, रहे गुरु के दू खांधा।

लड़े लड़ाई खूब, गाँव जी औराबांधा।।

लगे दाग ना माथ, कभू पीढ़ी बदनामी।

मिटगे वीर महान, रहिस अइसे सतनामी।।


औंरा  बाँधा  के धरा, सुन लौ  करत पुकार।

करजा  बालकदास गुरु, देवव आज उतार।।

देवव आज उतार, स्वार्थ हित पहिने माला।

सतनामी सच कोंन, कहौं काला रखवाला।

कर्ज  चुकाये  खून, मिला काँधा  से काँधा।

कदम  बढ़ावव आज, छुड़ाये औंरा  बाँधा।।

सतनामी के शान गुरु, राजा बालकदास। गैर फ़िरंगी से लड़िस, रचिस नवा इतिहास।। रचिस नवा इतिहास, अखाड़ा प्रथा चला के। रखिस सुमत के नींव, सबो ला मान दिला के।। गजानंद धर ध्यान, तहूँ बन गुरु अनुगामी। रख समाज के लाज, कहा खाँटी सतनामी।। ✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध' बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


उठा लौ गुरु के बीड़ा

बीड़ा बालकदास गुरु, चलना हे अब थाम।

सत के अलख जगाय बर, करना हे मिल काम।।

करना हे मिल काम, पूत हो के सतनामी।

कुछ परबुधिया लोग, करत पर धर्म गुलामी।।

कहरत आज समाज, समझ तो जावव पीड़ा।

स्वार्थ नाम ला छोड़, उठा लौ गुरु के बीड़ा।।


भाई भाई मिल रहव

भाई भाई मिल रहव, सुमता धर चुपचाप।

अलग अलग रद्दा धरे, होवय नही मिलाप।

होवय नही मिलाप, मिटे नइ मन के दूरी।

एक खून के अंश, बता फिर का मजबूरी।

मँय जपेंव सतनाम, जपे तँय पर परछाईं।

गजानंद कर जोर, कहे झन बिखरव भाई।।


ज्ञानी गुरु दे ज्ञान

गागर मा सागर भरँव, सागर अमरित बूँद।

जाप करँव सतनाम के, आँख अपन जी मूँद।।

आँख अपन जी मूँद, राह गुरु के मँय पकड़ँव।

ज्ञानी गुरु दे ज्ञान, ढोंग रद्दा ना जकड़ँव।।

गजानंद कविराय, कहत हे दू मन आगर।

अंतस राखव साफ, मिले सतगुरु गुन सागर।।


बिनती

बंदन हे नित गुरु चरन, ले के श्रद्धा फूल।

बड़ अज्ञानी मँय हवँव, क्षमा करव सब भूल।।

क्षमा करव सब भूल, समझ के अपने लइका।

आव बिराजौ आप, खुले हे मन के फइका।।

रहय साथ गुरु तोर, माथ मा चमकय चंदन।

रोज सबेरे शाम, करँव मँय गुरु के बंदन।।


सतगुरु तोरे द्वार मा, बिनती हे करजोर।

देहू शुभ आशीष ला, जिनगी मा नवभोर।।

जिनगी मा नवभोर, भाग के चमकय तारा।

संकट करिहौ दूर, हवव गुरु आप सहारा।।

गजानन्द कर ध्यान, कहे बड़ किस्मत मोरे।

आप मोर करतार, दास मँय सतगुरु तोरे।।


बंदन हे कर जोर गुरु, बनिहौ आप सहाय।

बीच भँवर मा नाव हे, देहू पार लगाय।।

देहू पार लगाय, हवन हम तोर सहारा।

हो जिनगी बलिहार, सदा परहित उपकारा।।

सतनामी पहिचान, जनेऊ सादा चंदन।

गजानन्द कविराज, करय सतगुरु ला बंदन।।


गुरु जयंती

चलव जलाबो मिल सबो, एक दीप सतनाम।

माह दिसंबर पर्व गुरु, सत सत नमन प्रणाम।।

सत सत नमन प्रणाम, करँव मँय सत अवतारी।

जिनगी के हर सांस, चरण सतगुरु बलिहारी।।

गजानन्द कविराय, कहे बन सत दीप जलव।

महूँ चलत हँव साथ, सबो मिलके साथ चलव।।


मन भावन सुर ताल मा, गा लौ महिमा गीत।

गुरु बाबा के ज्ञान हा, लेथे मन ला जीत।।

लेथे मन ला जीत, सत्य के राह दिखाथे।

सेत खाम मा सेत, धजा सत के लहराथे।।

गजानन्द धर ध्यान, चरण रज गुरु के पावन।

माह दिसम्बर पर्व, जयंती गुरु मन भावन।।


जागे जागे सब रहू, माह दिसम्बर पर्व।

चंदन साजौ माथ मा, सतनामी के गर्व।।

सतनामी के गर्व, बढ़ाबो मिल के भाई।

बार सुमत के जोत, चलौ अँधियार मिटाई।

गजानंद आनन्द, जयंती गुरु के आगे।

बिनती हे कर जोर, रहू अंतस ले जागे।।


जोड़ा खाम

सादा जोड़ा खाम ला, जानव सत्य प्रतीक।

जेमा सादा सेत हा, फहरय गा बड़ नीक।।

फहरय गा बड़ नीक, गगन गूँजय जयकारा।

अजर नाम सतनाम, पाय हे चाँद सितारा।।

चरन नवाँ गुरु माथ, करिन आवव ये वादा।

सदा बढ़ाबो मान, सत्य ये चिनहा सादा।।


सत के जोड़ा खाम मा, फ़हरे झंडा सेत।

गुरु घासी के ज्ञान ला, सुनौ लगा के चेत।।

सुनौ लगा के चेत, बताये हे गुरु ज्ञानी।

सत्य अहिंसा धर्म, सबो के हो जिनगानी।।

गजानन्द कविराय, करै बिनती बस अतके।

पर सेवा उपकार, सार हावय जी सत के।।


गुरु बनावव जान

पानी पीयव छान के, गुरू बनावव जान।

बिना गुरू के नइ मिले, जग मा कोई ज्ञान।।

जग मा कोई ज्ञान, कहाँ फोकट मा मिलथे।

तज माया अभिमान, राह उन्नत तब दिखथे।

गजानन्द कविराय, चार दिन के जिनगानी।

गुरू बचन लौ थाम, लगे ये निरमल पानी।।


रंग लहू के एक हे

रंग लहू के एक हे, सबके तन मा लाल।

जाति पाति के फेर मा, भेद भाव झन पाल।।

भेद भाव झन पाल, टोर दे कुंठा जाला।

आवव संत समाज, जपौ सुमता के माला।।

गजानन्द के बात, धरौ सब झन सास बहू।

घर घर होय उजास, भेद ना हो रंग लहू।।


महामन्त्र सतनाम

अर्थ सुनौ सतनाम के, शब्द हवे ये सार।

राह दिखाये एकता, सत दियना ला बार।।

सत दियना ला बार, जगाये मनखे मनखे।

सर्व धर्म सतनाम, सदा ही सत्य सरेखे।।

गजानंद के बात, कभू ना तुम ब्यर्थ गुनौ।

महा मंत्र सतनाम, बताये हँव अर्थ सुनौ।।


ज्ञान बूँद सतनाम

निरमल गंगा सत्य हे, ज्ञान बूँद सतनाम।

बहत हवे सत धार बन, रात सुबो दिन शाम।।

रात सुबो दिन शाम, भये गुरु किरपा पाके।

धरती सूरज चाँद, टिके सत अम्बर जाके।।

आग हवा अउ नीर, चले सत जीवन अविरल।

गुरु जी दया विधान, सबो बर पावन निरमल।।


नेक सुभाव

रख ले नेक सुभाव जी, दया धरम रख साथ।

दीन गरीबी बर बढ़े, जन सेवा हित हाथ।।

जन सेवा हित हाथ, करम कर ले जी सच्चा।

मिले जगत ब्यवहार, कभू नइ खाबे गच्चा।।

गजानन्द कविराय, धीर फल मीठा चख ले।

पाये मान सुभाव, शांत अंतस ला रख ले।।


उठव करव ललकार

रहके लाखों लाख हम, लुलवावत हन आज।

ये अनेकता आड़ मा, आन करत हे राज।।

आन करत हे राज, कहाँ हे हमर पुछाड़ी।

बइला बन गरियार, फँदाये बोझा गाड़ी।।

उठव करव ललकार, भुजा मा ताकत भरके।

लुलवावत हन कार, लाख सतनामी रहके।।


जियौ सत नामी बन के

बनके गूँगा कब तलक, रइही मोर समाज।

तुम सोये हव नींद मा, आन करत हे राज।।

आन करत हे राज, कुमत ला तुम हौ थामे।

कर लौ अइसे काज, सुमत के बिजहा जामे।

गुरु जी बालकदास, सिखाये जीना तन के।

भरौ जिगर मा आग , जियौ सत नामी बनके।।


सुमत

रख लौ सबसे प्रेम जी, ये जिनगी के सार।

पावव जग मा मान ला, रख मीठा ब्यवहार।।

रख मीठा ब्यवहार, बात मा मधुरस घोलव।

सब ला अपने जान, मया के बोली बोलव।।

सीख बड़े से ज्ञान, स्वाद परहित चख लौ।

जिनगी के दिन चार,सुमत आपस मा रख लौ।।


बाढ़ संगठन

आगे हे अब हर तरफ, बाढ़ संगठन ठाड़।

बहिगे आज समाज हा, देखव आँखी फाड़।।

देखव आँखी फाड़, लगा के पावर चश्मा।

करत संगठन आड़, गजब के खेल करिश्मा।।

बन पछलग्गू दास, रेस कस घोड़ा भागे।

हे मझधार समाज, इमन कब आही आगे।।


लौट अपने घर आबे

पाबे भाई तैं कहाँ, पर के घर मा मान।

अपने बन घर भेदिया, भेद दिये अनजान।

भेद दिये अनजान, ढहाये घर के सुमता।

कमजोरी पर जान, बढ़ाये आपस कुमता।।

बिनती हे कर जोर, लौट अपने घर आबे।

अपन दुवारी छोड़, मया पर घर नइ पाबे।।


औंरा बाँधा के धरा

औंरा बाँधा के धरा, सुन लौ करत पुकार।

करजा बालकदास गुरु, देवव आज उतार।।

देवव आज उतार, स्वार्थ हित पहिने माला।

सतनामी सच कोंन, कहौं काला रखवाला।

कर्ज चुकाये खून, मिलौ काँधा से काँधा।

कदम बढ़ावव आज, छुड़ाये औंरा बाँधा।।


धरम बनय सतनाम

सपना पुरखा के सजय, चलव करव जी माँग।

धरम बनय सतनाम हा, झन खींचव अब टाँग।।

झन खींचव अब टाँग, साथ मिल आगू बढ़ लौ।

करही पीढ़ी याद, सुमत के सीढ़ी गढ़ लौ।।

गजानंद मन भाव, सबो ला समझव अपना।

बनही सुमत समाज, करव पूरा मिल सपना।।


सार बात

बाबा घासी दास हा, बात कहे हे सार।

मंदिरवा मा का करे, जइहौ गा बेकार।।

जइहौ गा बेकार, अपन घट देव मना ले।

सेवा कर माँ बाप, चरन मा पुन्य कमा ले।।

अंतस चारो धाम, इही हा मथुरा काशी।

कर सुमिरन सतनाम, कहे हे बाबा घासी।।


सत सार

जिनगी के सत सार हे, चमत्कार संतत्व।

जाँच परख कर सत्यता, तब तो असल महत्व।।

तब तो असल महत्व, कसौटी सच के उतरे।

बिना संत ले ज्ञान, कभू ना नर तन सुधरे।

सतगुरु घासीदास, तपाये तन सत तिलगी।

पा के सत के ज्ञान, सँवारे सब के जिनगी।।


दिव्य नाम सातनाम

बाती  तो  मन आस हे, तेल  जिहाँ  विश्वास।

दियना घासीदास गुरु, सत  के  करे प्रकाश।।

सत के करे प्रकाश, जले मन जगमग जोती।

दिव्य नाम सतनाम, दिये गुरु  अमोल मोती।।

गजानंद  सत  ज्ञान, दबावत  हे  जग  पाती।

बिनती हे  कर  जोर, बुझे  झन आसा बाती।।


मानवता भगवान

मँय भज लौ श्री राम ला, तँय भज ले सतनाम।

आवव करबो मिल सबो, समरसता  बर काम।।

समरसता  बर  काम, करे  हे  युग  युग  पीढ़ी।

गढ़ही  राज  बिकास, चढ़ै  सब  समता सीढ़ी।।

जाति  धर्म  के  भेद, द्वेष  हिरदे  ले  तज  लौ।

मानवता भगवान, बात धर सच  ला भज लौ।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

          बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )


ढोंग पाखण्ड

पकड़े हें पाखण्ड ला, देखव मनखे आज।

नीति धरम के बात ला, बिसरे हवय समाज।।

बिसरे हवय समाज, करत हें खुद बरबादी।

सोंचे ना सच बात, परे चक्कर मनुवादी।।

देव मनाये लाख, पाठ पूजा मा जकड़े।

मति हा गे बउराय, ढोंग ला अंतस पकड़े।।


बाढ़त दिन दिन हे इँहा, अन्धभक्ति के रोग।

तथाकथित मा हे मगन, अंधभक्त बन लोग।।

अन्धभक्त बन लोग, समझ नइ पावत असली।

थाम ढोंग के राग, बजावत हे इन डफली।।

धर्म बने हे सांप, फेन जे निस दिन काढ़त।

कोटि कोटि भगवान, तभे दुनिया मा बाढ़त।।


जपे भजे ले का भला, होही जी उद्धार।

इही बात ला संत गुरु, करे रहिस इंकार।।

करे रहिस इंकार, करव झन मूर्ति पूजा।

गुरु जननी जग सार, इँखर ले बड़े न दूजा।।

सहिके दुख के धूप, तवा कस जे रोज तपे।

देख तभो ले लाल, अंध श्रद्धा जाप जपे।।


थामे खुद जग झूठ हे, सत्य बात ला छोड़।

धरे हवय पाखंड ला, धरम चदरिया ओढ़।।

धरम चदरिया ओढ़, तभे हौ खाये गच्चा।

अरे धूर्त कुछ सोंच, कोंन हे सच सत नच्चा।।

तुँहरे कारण आज, बीज मनुवादी जामे।

हम थामे हन साँच, झूठ ला तुम हौ थामे।।


सतगुरु घासीदास जी, छोड़ कहिंन जग ढ़ोंग।

तथाकथित जन बात धर, रखे झूठ तन ओंग।।

रखे झूठ तन, ओंग कीच बन, धरे गुलामी।

खुद विवेक खो, पाखंडी के, भरथे हामी।।

पितर मनाई, लगथे मोला, जग बइहासी।

इही बात ला, कहिगे सुन लौ, सतगुरु घासी।।


खोजत हँव भगवान ला, मिलही कहाँ बताव।

मन्दिर मस्जिद चर्च अउ, गुरुद्वारा मा जाँव।।

गुरुद्वारा मा जाँव, कभू नइ दर्शन होवय।

पता नहीं ये ढोंग, जमाना कब तक ढोवय।।

गजानंद सच बात, हृदय हे काकर ओधत।

घट मा हे भगवान, फिरत हौ बाहिर खोजत।।


बाढ़े ढोंगी धूर्त हे, जगह जगह मा आज।

धर्म आड़ मा हे बढ़त, लूट ढोंग के काज।।

लूट ढोंग के काज, अधर्मी मनखे होगे।

मानवता हा आज, कहाँ जी देखव खोगे।।

सच्चाई ला छोड़, मगन धर झूठा ठाढ़े।

गजानंद जी पाप, तभे दुनिया मा बाढ़े।।


गोबर गोबर ले भी गय बिते, पूछ परख जी तोर। करथस फेर घमंड का, खिसखिस दाँत निपोर।। खिसखिस दाँत निपोर, ढोंग धर जिनगी जीथस। अंधभक्ति मा डूब, मूत्र गइया के पीथस।। बात तोल अउ बोल, मनुज सब एक बरोबर। कूटनीति कर कोंन, बना दिस तोला गोबर।। गोबर के तो मोल हे, तोर हवय का मोल। हूम धूप नरियर धरे, भक्ति नशा मा डोल। भक्ति नशा मा डोल, बिसर सब जिम्मेदारी। जनम तोर धिक्कार, करे नइ सच चिनहारी।। अंधभक्ति के चाल, चले तँय भेड़ बरोबर। तथाकथित बन दास, बनाये खुद ला गोबर।। घर-घर पूजा पाठ मा, आथे गोबर काम। गोबर के बड़ नाम हे, तोर मनुज का नाम। तोर मनुज का नाम, शूद्र क्षत्रिय या बनिया। ऊँच-नीच के नाम, बँटागे देखव दुनिया।। एक करत हे राज, एक भटकत हे दर-दर। गोबर धन्य महान, बिराजे हस तँय घर-घर।।


पढ़े लिखे नादान

पथरा  माटी   ले  बने, होगे   देव  महान।

सोना चाँदी से सजे, धन्य इँखर भगवान।।

धन्य इँखर भगवान, धन्य अउ अइसन मनखे।।

अन्धभक्ति मा डूब, बात नइ सत्य सरेखे।।

देव लगे निस भोग, बाप माँ तरसे सथरा।

पढ़े  लिखे  नादान, बने  पूजत हे  पथरा।।


*बढ़े हे भ्रष्टाचारी*

क़ाबर संकट ला बता, हरय नही भगवान।

बिराजथे हर साल के, लाखो  देव महान।।

लाखो देव महान, तभो छाये अत्याचारी।

भूख   गरीबी   देश, बढ़े   हे   भ्रष्टाचारी।।

अब तो मानुष जाग, मिले सब पेरे जाँगर।

मनगढ़ंत ये झूठ, समझ नइ आवय क़ाबर।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

          बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )


कुण्डलिया छंद- "मोर कलम मा देख"


जन जन के पीरा लिखौं, हालत देश समाज।

राजनीति  षडयंत्र  अउ, कूटनीति  के  राज।।

कूटनीति   के   राज, दोगला   के   चमचाई।

अंधभक्ति  के  राग, मोह  जग  मान  बड़ाई।।

झूठ  ढोंग   पाखंड, खड़े   हे  देखव  तनके।

मोर कलम  मा देख, भरे  पीरा जग जन के।


सीखौ सच ला बोलना

सीखौ सच ला बोलना, तब ये जिनगी दाम।

सइहौ कब तक जुल्म ला, बनके धर्म गुलाम।।

बनके धर्म गुलाम, लुटावत हव धन रुपिया।

सुन मानुष नादान, बने हव तुम परबुधिया।

गजानंद धर ध्यान, दुवारी पर झन चीखौ।

अंधभक्ति ला छोड़, बात सच कहना सीखौ।।


अंधभक्ति

दस हजार दस लाख मा, बिकगे मिट्टी आज।

अंधभक्ति के देख लौ, लोग सजाये साज।।

लोग सजाये साज, लुटाये श्रम अउ दौलत।

धर तराजू धर्म, झूठ ला जग मा तौलत।।

तथाकथित भगवान, जपत हे मनखे हो वश।

संभव हे का बात,हाथ ककरो मुड़ हो दस।।


अंधभक्त जन जाग

संभव हे का ये भला, चार हाथ दस गोड़।

बढ़त हवे धर्मान्धता, सत्य बात ला छोड़।।

सत्य बात ला छोड़, बने हे अँधरा मनखे।

अन्धभक्ति मा डूब, कहाँ सच ला हे परखे।।

गजानंद हे आज, देख जग झूठ अचंभव।

अंधभक्त जन जाग, कभू हे का ये संभव।।


देव घट घट मा बसथे

बसथे प्रभु घट भीतरी, ना तो मंदिर पाठ।

अन्धभक्ति मा लोग पर, बने हुए हे काठ।।

बने हुए हे काठ, दिखावा जग मा करथे।

भूखा घर माँ बाप, भोग पारस ला लगथे।।

अन्धभक्ति दौ छोड़, सांप बन मन ला डसथे।

गजानंद लौ मान, देव घट घट मा बसथे।।


गुलामी

सइहौ कब तक तुम जुलुम, कब तक रइहौ मौन।

तोड़ गुलामी दासता, करम बँधे हे जौंन।।

करम बँधे हे जौंन, भाग ला देथव गारी।

बनके तुम रखवार, खड़े हौ धरम दुवारी।।

बिकगे खेती खार, भला चुप कब तक रइहौ।

धरम बदलगे जात, जुलुम तुम कब तक सइहौ।।


परबुधिया- बहुरूपिया

परबुधिया बहुरूपिया, समाज के गद्दार।

तोर भला औकात का, जान सके सत सार।।

जान सके सत सार, अपन पुरखा के किस्सा।

अपन भुला इतिहास, भीड़ के झन बन हिस्सा।।

तुँहरे कारण आज, डूबगे समाज लुटिया।

जा रे मुख ला टार, कलमुहा तैं परबुधिया।।


फीका होगे खून

सतनामी वो शेर मन, अब गय कहाँ लुकाय।

बदनामी के दाग ला, माथा कोन लगाय।।

माथा कोन लगाय, कहाँ उन छुपके बइठे।

बात बात दिन रात, मूँछ जे तर्रा अइठे।।

सुन के आथे लाज, अपन गुरु के बदनामी।

फीका होगे खून, आज का रे सतनामी।।


का मतलब के फेर मा, बइठे देख समाज।

नोंचत बइरी एकता, रोज गिरावत गाज।।

रोज गिरावत गाज,हमी ला आँख दिखावय।

उठ माई के लाल ,लाज अब कोन बचावय।।

पुरखा करत पुकार, जाग जव सोये अब का।

अब तो आवव होश, त्याग दौ जी मतलब का।।


चुल्लू भर पानी भरे, डूब मरव रे आज।

कहूँ बचा गा नइ सके, अपन खून के लाज।।

अपन खून के लाज, रखिस सरहा जोधाई।

जोरे जोरे पीठ, तहूँ मन लड़ौ लड़ाई।।

नइ तो रह तइयार, धरे पर बाबा ठुल्लू।

रहव मगन खुद आप, पियत पानी भर चुल्लू।।


अंधविश्वास

ताली पीटत दिन गये, कर लौ बात बिचार।

खाली खाली जेब हे, खाली खेती खार।।

खाली खेती खार, तभो बइठे बन आदी।

धरे अंधविश्वास, करत हव खुद बरबादी।।

पूजत  हव पाषाण, सजा के पूजा थाली।

अपन भुला इतिहास, खूब पीटत हव ताली।।


मीडिया- 

बने बिकाऊ मीडिया, झूठ लिखे अखबार ।

मूक बधिर जनता बने, अंधभक्त दरबार ।।

अंधभक्त दरबार, जपे बस राम कहानी ।

सत्य बात ला छोड़, झूठ के साथ मितानी ।।

रखथे घटिया सोंच, सिर्फ धन चीज कमाऊ ।

जेब धरे सरकार, मीडिया बने बिकाऊ ।।


नेता- 

नेता देखव आज के, झूठा अउ मक्कार ।

वोट बैंक खातिर करे, वादा रोज हजार ।।

वादा रोज हजार, करे ना पर ओ पूरा ।

पाँच साल गे बीत, काम हा रहे अधूरा ।।

नेता बन भगवान, दिये दर्शन जुग त्रेता ।

जनता घलो महान, चुने घनचक्कर नेता ।।


पइसा

पइसा के सब खेल हे, पइसा ले पद मान ।

पइसा से रिस्ता नता, पइसा से पहिचान ।।

पइसा से पहिचान, बढ़े जग मा रे भाई ।

पइसा खातिर आज, बने कुछ लोग कसाई ।।

पइसा बन भगवान, खेल रचथे जी कइसा ।

सुन मानुष नादान, सबो कुछ नोहय पइसा ।।


पइसा ही भगवान अब, पइसा ही माँ बाप। सपना मा भी हे करत, पइसा के ही जाप।। पइसा के ही जाप, लोभ धर मनखे करथे। पइसा बन बलवान, सबो के मति ला हरथे। पइसा के ही खेल, करा ले खेला जइसा। बिके धरम ईमान, दास बनके अब पइसा।।


जातिवाद- 

दिखथे अब भी देश मा, जातिवाद के रोग ।

मानवता ला तोड़थे, कोंन हवय वो लोग ।।

कोंन हवय वो लोग, जाति खुद समझे बड़का ।

रंग लहू के एक, भेद के हे फिर जड़ का ।।

गजानंद कर जोर, छंद समता बर लिखथे ।

कुंठित सोंच विचार, देश मा अब भी दिखथे ।।


मनखे मनखे एक

बाँटिस हमला कोंन हे, जाति धरम कर भेद।

रंग लहू के एक हे, देखव तन ला छेद।।

देखव तन ला छेद, लहू ककरो का अलगे।

फेर बता दौ आज, कोंन हम सब ला छल गे।।

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख, इसाई मा जे छाँटिस।

मनखे मनखे एक, ज्ञान गुरु घासी बाँटिस।।


 पितर पाख

तरथे पुरखा जी हमर, कहिथें अब तो लोग ।

जीयत भूखन जे रहे, मरे म छप्पन भोग ।

मरे म छप्पन भोग, बाप कउँवा हा बनगे ।

पितर लगे हे पाख, घरों घर पहुना जुरगे ।।

गजानन्द के बात, कोन हा अब तो धरथे ।

पितर मनाये पाख, कभू का पुरखा तरथे ?


हवय ये माटी चोला

तोला खींचत ले जही, काल अपन जी द्वार।

फेर गरब का बात के, समझ समय के सार।।

समझ समय के सार, भरोसा का ये तन के।

बाँट मया संसार, सबो के मितवा बन के।।

सत्यबोध धर ध्यान, हवय ये माटी चोला।

समझावत हँव बात, समझ नइ आवत तोला।।


माटी कस हे तन इही

माटी कस हे तन इही, माटी कस हे प्रान।

मिल जाना माटी हवे, छोड़व गरब गुमान।।

छोड़व गरब गुमान, चार दिन के जिनगानी।

जब तक तन मा सांस, निभा लौ मीत मितानी।।

गजानन्द चल साथ, बाँध लिन प्रेम मुहाटी।

माटी हवय महान, मोल समझौ जी माटी।।


मृत्यु भोज

कर लौ संत समाज अब, मृत्यु भोज मा रोक ।

दुखियारी परिवार ला, झन करजा मा झोंक ।।

झन करजा मा झोंक, समझ लौ दुख वो दुखिया ।

सब ला करव सचेत, चलव अब बन के मुखिया ।।

होही तभे सुधार, बात ये सब झन धर लौ ।

पढ़े लिखे वो लोग, पहल आगू बढ़ कर लौ ।।


मूरति पूजा छोड़ दौ

मूरति पूजा छोड़ दौ, कहना घासीदास ।

घट मा सब्बो देव हे, रखौ सत्य विश्वास ।।

रखौ सत्य विश्वास, त्याग मन ढोंग पलस्तर ।

वेश कीमती रत्न, सँवारे कंकड़ पत्थर ।।

रहौ दूर पाखण्ड, करौ घर खुद के पूर्ति ।

रहे खुदे जे मूक, बता का देही मूरति ।।


मानवता हो धर्म

पूजा मंदिर पाठ मा, होथे दान हजार ।

मानवता के नाम मा, चुप बइठे संसार ।।

चुप बइठे संसार, बतावँव का मँय तोला ।

धरम बने हे आग ,जरत हे निर्धन चोला ।।

गजानंद कविराय, तरीका ढूँढव दूजा ।

मानवता हो धर्म, बड़े ना मंदिर पूजा ।।


मानवता भगवान

मँय भज लौ श्री राम ला, तँय भज ले सतनाम।

आवव करबो मिल सबो, समरसता बर काम।।

समरसता बर काम, करे हे युग युग पीढ़ी।

गढ़ही राज बिकास, चढ़ै सब समता सीढ़ी।।

जाति धर्म के भेद, द्वेष हिरदे ले तज लौ।

मानवता भगवान, बात धर सच ला भज लौ।।


धर्म गुलाम

खाये धर्म अफीम हें, अन्धभक्ति मा लोग।

तथाकथित मा हें मगन, झूठ धरे मन रोग।।

झूठ धरे मन रोग, करँय झूठा जयकारा।

सत्य बात ले दूर, रहँय बपुरा बेचारा।।

बनके धर्म गुलाम, सोंच सच ला ना पाये।

इँखर भाग हरि जाप, मलाई दूसर खाये।।


रोवत हे ईमान

दुनिया के ये भीड़ मा, मुश्किल हे पहिचान ।

का झूठा अउ का सही, रोवत हे ईमान ।।

रोवत हे ईमान, धरे माया के फाँसा ।

टूटत हे विश्वास, देख अरझत हे साँसा ।।

सुन मानुष नादान, बने हौ तुम परबुधिया ।

ले लौ बात सरेख, चार दिन के ये दुनिया ।।


नारी

नारी नर अर्धांगनी, एक अंग दू प्रान ।

नारी हे नारायनी, कहिथे बेद पुरान ।।

कहिथे बेद पुरान, बात हे पर ये झूठा ।

युगों युगों अपमान, देख लौ इतिहास उठा ।।

कह गय तुलसीदास, सदा इन ताड़नहारी ।

जले होलिका आग, परीक्षा सीता नारी ।।


महिमा मंडन झन करव, नोहय सच इंसाफ ।

लिखना हे सच लेखनी, अत्याचार खिलाफ ।।

अत्याचार खिलाफ, सिखावव हक बर लड़ना ।

उच्च बुलन्दी राह, नित्य ही आगू बढ़ना ।।

अबला नारी जात, बात करथँव मँय खण्डन ।

सहीं दिशा दौ राह, करव ना महिमा मंडन ।।


माँ

जग लागे अँधियार जी, माँ बिन मया दुलार ।

जीव चराचर माँ बिना, बिरथा हे संसार ।।

बिरथा हे संसार, सृष्टि के पालनहारी ।

किस्मत वाला जान, हवे जेकर महतारी ।।

गजानंद दुर्भाग, दुखी अँधियारी छागे ।

छोड़ गइस माँ साथ, अधूरा ये जग लागे ।।


कुण्डलिया छंद- बेटी बेटी बेटा एक हे, करव कभू झन भेद। बेटा कुरान बाइबिल, बेटी चारो वेद।। बेटी चारो वेद, इही रामायण गीता। बेटा राम रहीम, हवे तब बेटी सीता।। बेटा कुल के शान, जान बेटी सुख पेटी। गजानंद कविराय, कहे सुखदायी बेटी।। ✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध' बिलासपुर (छत्तीसगढ)05/07/2021


जागे पड़ही

पड़ही सब ला जागना, अपन लिए अधिकार ।

नइतो अतका जान लौ, हो जाही अँधियार ।।

हो जाही अँधियार, डगर मा बिछगे काँटा ।

निकलौ घर से आज, अपन लेये बर बाँटा ।।

तोर पाँव के फूल, शूल बन के जब गड़ही ।

तब करबे का याद, महूँ ला जागे पड़ही ।।


भीम बदौलत

वोकर पहिली जाग जा, सोये हस भरपूर ।

भीम बदौलत नौकरी, पाये हवस हुजूर ।।

पाये हवस हुजूर, तभे खाथस सुख रोटी ।

जानव खुद औकात, फिरे पहिने निंगोटी ।।

नहीं जागहू आज, रही जाहू बन जोकर ।

संविधान अधिकार, करौ रक्षा अब वोकर ।।


जय भारत जय भीम का, कर लो सब गुणगान।

संविधान जन ग्रंथ पर, हम सबको अभिमान।।

हम सबको अभिमान, मसीहा भीम हमारे।

वंचित दलित समाज, सभी जन जन को तारे।।

नारी कर उत्थान, दिया सम न्याय तिजारत।

अमर रहे जय भीम, नमन करता है भारत।।


वीर नरायन

हीरा सोनाखान के, वीर नरायन नाम ।

याद जमाना हा करे, तोर अचंभा काम ।।

तोर अचंभा काम, फिरंगी करे बड़ाई।

जल जंगल अधिकार, जमीं के लड़े लड़ाई।।

नैन भरे अंगार, देख जन जन के पीरा ।

होगे वीर शहीद, धन्य हो अइसन हीरा ।।


संत कबीर आवव संत कबीर ला, याद करिन जी आज। पाठ पढ़ा जग प्रेम के, करिस सुधार समाज।। करिस सुधार समाज, रूढ़िवादी से लड़ के। तभे कहाइस संत, सबो संतो ला बड़ के।। कर्मकांड पांखण्ड, ढोंग ला दूर भगावव। गजानंद सत राह, धरे आगू अब आवव।। जिनगी मा कर लौ अमल, संत कबीर विचार। आडम्बर पांखण्ड तब, हटही मनोविकार।। हटही मनोविकार, परख सच के हो जाही। मन मूरख नादान, समझ तब सब कुछ पाही।। गजानंद जग देख, ढोंग के सुलगत तिलगी। झुलसत घर परिवार, नाश कर दिस सुख जिनगी।। सच्चा सन्त कबीर के, एक-एक जी बात। रूढ़िवाद हे जब तलक, तब तक दुख के रात।। तब तक दुख के रात, जगत मा छाये रइही। कउँवा करही राज, हंस आफत ला सइही।। तथाकथित ला त्याग, भक्ति हावय ये कच्चा।। चल के राह कबीर, बनौ अनुयायी सच्चा।। छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


सुन लौ संत कबीर के- सुन लौ संत कबीर के, बोली सच अनमोल। मन के अंध किवाड़ ला, देही झटकुन खोल।। देही झटकुन खोल, ढ़ोंग के सब दरवाज़ा। चल लौ राह कबीर, कहत हे कब से आ जा।। तथाकथित पाखंड, छोड़ के सच बर गुन लौ। जिनगी मा उजियार, तभे होही जी सुन लौ।। बोली संत कबीर के, शबद-शबद गुन ज्ञान। भटक-भटक झन खोज मन, पथरा मा भगवान।। पथरा मा भगवान, कहाँ तँय मनुवा पाबे। सेवा दीन ग़रीब, करे ले भव तर जाबे।। पढ़े लिखे इंसान, खेल झन आँख मिचोली। आजौ शरण कबीर, मान लौ कहना बोली।। सोंचे आज कबीर हा, देख जगत के हाल। झूठ ढ़ोंग पाखंड के, फ़इले अब तक जाल।। फ़इले अब तक जाल, कोंन जी सच ला परखे। जाति धरम के आड़, डँसत मनखे ला मनखे।। छाँया छूत अछूत, मनुज तन-मन मा खोंचे। गजानंद कविराय, कबीरा देखत सोंचे।।


छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 04/06/2023


शिक्षा जिनगी सार

खूब पढ़व आगू बढ़व, संविधान रख मान ।

जज डाक्टर इंजीनियर, बनव पायलटयान ।।

बनव पायलटयान, उड़व तुम उच्च अकासा ।

जिला कलेक्टर धीश, बनव वैज्ञानिक नासा ।।

गजानन्द के सोंच, अपन कुल इतिहास गढ़व ।

शिक्षा जिनगी सार, चलव उन्नति पाठ पढ़व ।।


शिक्षा पावन जोत

अब शिक्षा विज्ञान मा, खूब लगावव जोर ।

धर्मवाद लावय नही, कभू सुमत के भोर ।।

कभू सुमत के भोर, उगे ना फेर दुबारा ।

शिक्षा पावन जोत, करे जे जग उजियारा ।।

गजानंद कर जोर, माँगथे दे दौ दीक्षा ।

ये हा पावन दान, मिले अब सब ला शिक्षा ।।


शिक्षा हे अनमोल

सुन लौ लोग समाज के, कान अपन जी खोल।

नहीं  जररूत   पाठ  व्रत, शिक्षा  हे  अनमोल।।

शिक्षा  हे   अनमोल, वधू  वर   पाये   खातिर।

व्रत   पूजा   पाखंड,  रचे   हे   ढोंगी   शातिर।।

गजानंद  के  बात, ध्यान  धर  मनखे  गुन लौ।

शिक्षा  हे आधार, सुखी  जिनगी  बर सुन लौ।।


देव सिर्फ माँ बाप

जग मा गुरु माता पिता, सउँहत इन भगवान ।

बाकि ढोंग पाखंड जे, स्वार्थ रचे इंसान ।।

स्वार्थ रचे इंसान, चलाये ख़ुद के धंधा ।

पढ़े लिखे नादान, बने हे सब झन अंधा ।।

सत्य रखौ पहिचान, समावै सबके रग मा ।

देव सिर्फ माँ बाप, और ना कोई जग मा ।।

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सुरता गाँव के

आथे सुरता गाँव के, बर पीपर के छाँव ।

देव सहीं दाई ददा, मया पिरित के ठाँव ।।

मया पिरित के ठाँव, बँधे सुमता के डोरा ।

रुमझुम खेती खार, चना तिंवरा के होरा ।।

गजानन्द धर ध्यान, शहर मा मन धुँधवाथे ।

अमरइया के छाँव, नदी के सुरता आथे ।।


चाय

करथे दूर थकान जी, सुबह शाम पी चाय ।

खतरा हार्ट अटैक के, तन ले दूर भगाय ।।

तन ले दूर भगाय, वजन ला कम ये करथे ।

हड्डी हर मजबूत, शक्ति पाचन तक बढ़थे ।।

उचित माप उपयोग, ध्यान कैलोरी रखथे ।

गजानंद पी चाय, दूर निंदिया ला करथे ।।


ढेंकी,जाता,सूपा,तावा

ढेंकी कूटय धान ला, जाता दरथे दार ।

सूपा हा चाउँर फुने, सुग्घर छाँट निमार ।।

सुग्घर छाँट निमार, करे चाउँर ला बढ़िया ।

तहाँ बनाथे भात, इहाँ जी छत्तीसगढ़िया ।।

रोटी खा ले तात, गरम तावा मा सेंकी ।

सूपा तावा शान, संग मा जाता ढेंकी ।।


बइला गाड़ी

गाड़ी बइला फाँद के, चलव सबो जी खेत ।

करपा बाँधव धान के, बने लगा के चेत ।।

बने लगा के चेत, रखव गाड़ी मा ओला ।

कसके बढ़िया डोर, धान ला लावव कोला ।।

रहय सदा मजबूत, सुमा के संग जुँवाड़ी ।

बड़े काम के चीज, हमर जी बइला गाड़ी ।।


तिँवरा भाजी

तिँवरा भाजी खा बने, साफ करे जी पेट ।

खाये बर येला तहूँ, झन करबे जी लेट ।।

झन करबे जी लेट, टोर के ओंटी ला जी ।

मिरचा चटनी संग, खूब खा ले ना भाजी ।।

मिलथे कभू कभार, जुड़ाले बढ़िया जिँवरा ।

शहरी भाजी छोड़, याद रइही जी तिँवरा ।।


लाल कलिंदर

लाल कलिंदर खा सगा, गंगा अमली आम ।

मिलही हम सब आप ला, गरमी ले आराम ।।

गरमी ले आराम, मौसमी फल ले मिलथे।

तन मन रखे निरोग, बिमारी दुरिहा करथे ।।

बाहिर रोग प्रकोप, घुसे रह घर के अंदर ।

गजानंद पछुवाय, खाय बर लाल कलिंदर ।।


किसान

गावँव कइसे गीत मँय, सुख उन्नति के आज ।

हमर खुशी मा रोज दिन, गिरत हवय जी गाज ।।

गिरत हवय जी गाज, हाल हे बड़ दुखदाई ।

कोंन निकालय फाँस, गला लटके महँगाई ।।

खड़े विभीषण चोर, कहाँ ले प्रान बचावँव ।

हँसी खुशी के गीत, भला मँय कइसे गावँव ।।


करजा मा डूबे हवय, सर से पाँव किसान ।

बोलँव कोंन हिसाब ले, भारत देश महान ।।

भारत देश महान, दिखत हे कहाँ बतावव ।

सोन चिरइया देश, बचे हे कहाँ दिखावव ।।

अंधभक्ति से जाग, आँख खोलव हो परजा ।

सिर्फ़ नहीं मुड़ मोर, देश डूबे हे करजा ।।


माटी मोर मितान हे, कहिथे हमर किसान ।

धरती के भगवान बन, लाथे नवा बिहान ।।

लाथे नवा बिहान, अन्न जग बर उपजाथे ।

सहिके पीर पहाड़, रात दिन खेत कमाथे ।

तभो घेंच मा देख, बँधे करजा के घाटी ।

तिलक लगा के माथ, करय जे बन्दन माटी ।।


होही नवा बिहान कब

होही नवा बिहान कब, छत्तीसगढ़ के खोर।

राज करत परदेशिया, हमर पता ना शोर।।

हमर पता ना शोर, सबो धन मान लुटागे।

शोषण अत्याचार, देख के नरी जुड़ागे।।

कोंन करय सुध आज, हमर हे कहाँ बटोही।

कटे बिपत के रात, भोर कब सुख के होही।।

15/05/2021


कटोरा हे छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के गोद मा, नहर नदी जल ताल। भरे लबालब बांध अउ, खेतखार खुशहाल।। खेतखार खुशहाल, प्रकृति के गजब नजारा। हरियर पेड़ पहाड़, लगे मनभावन प्यारा।। जल बरसे घनघोर, करे बादर हा घड़घड़। गजानंद धन धान, कटोरा हे छत्तीसगढ़।।

04/09/22


5 जून # विश्व पर्यावरण दिवस विशेष कुण्डलिया छंद- रोवत हे हसदेव हा आवव संगी मिल सबो, जंगल पेड़ बचाव। पाँच जून पर्यावरण, उत्सव फेर मनाव।। उत्सव फेर मनाव, छोड़ के सबो दिखावा। जीवन के आधार, पेड़ हे बात बतावा।। गजानंद सुख सांस, फूल फल औषध पावव। करिन जतन मिल आज, पेड़ जंगल के आवव।।1 होथे बड़ तकलीफ जी, कटथे जब-जब पेड़। निज स्वारथ मा पड़ मनुज, आज उजाड़त मेड़।। आज उजाड़त मेड़, कहाँ अब पेड़ लगाथें। पाये जग मा नाम, गजब फोटू खिंचवाथें।। करके पेड़ विनाश, खुदे बर काँटा बोथे। गजानंद बिन पेड़, कहाँ सुख जीवन होथे।।2 हरियाली हे पेड़ से, पेड़ करे बरसात। फेर कोंन समझत इहाँ, गजानंद के बात।। गजानंद के बात, पेड़ हे पुत्र समाना। आथे बहुते काम, फूल फल जड़ अउ पाना।। करिन सुरक्षा आज, तभे सुख मिलही काली। अरजी हे कर जोर, बचा लिंन हम हरियाली।।3 रोवत हे हसदेव हा, आँख भरे दुख नीर। छत्तीसगढ़ के गोद मा, कोंन भरत हे पीर।। कोंन भरत हे पीर, आज समझे ला परही। कतका दिन ला फेर, हमर सुख अँगरा जरही।। गजानंद धर ध्यान, पड़े रह झन तँय सोवत। देख आज हसदेव, पुकारत हे जी रोवत।।4 छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध' बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


चौमास

सावन भादो क्वांर अउ, कातिक ये चौमास ।

कारज तीज तिहार शुभ, भरथे मन उल्लास ।।

भरथे मन उल्लास, झमाझम पानी गिरथे ।

खेत खार हरियाय, लबालब तरिया दिखथे ।।

नंगरिहा दे तान, ददरिया गीत सुहावन ।

बँधे झूलना प्रेम, झूलथे सखियाँ सावन ।।


बसंत ऋतु

मउँरे आमा डार मा, परसा फूले लाल ।

कोयल गावत गीत हे, पूछत सबके हाल ।।

पूछत सबके हाल, मया के बाँधय डोरी ।

झूमय नाचय मोर, देख मौसम घनघोरी ।।

हरियर डारा पान, सबो के दिन हा बहुरे ।

राजा हे रितु आम, गाँव अमरइया मउँरे ।।


मनभावन मन बावरी, ढूँढ़य रे मनमीत ।

कोयल कूके डार मा, गावय सुघ्घर गीत ।।

गावय सुघ्घर गीत, पंख दुन्नो फइलाये ।

झूमय नाचय खार, बसंती घर घर आये ।।

जीना अब दुश्वार, आँख ला बरसे सावन ।

भाये ना घर द्वार, मोर सजना मन भावन ।।


आगे बिरहा के बखत, लगय जुवानी आग ।

करम विधाता का गढ़े, चोला लगगे दाग ।।

चोला लगगे दाग, मोर धधकत हे छतिया ।

तरसे नयना मोर, मया के भेजव पतिया ।।

कोयल छेड़य तान, कोयली के मन भागे ।

अंतस भरे हिलोर, समय का बिरहा आगे ।।


होरी

होरी आये संग मा, धरके रंग गुलाल ।

गीत फगुनवा हे बजत, नंगारा के ताल ।।

नंगारा के ताल, सबो नाचत हे भारी ।

भौजी धरे गुलाल, धरे भइया पिचकारी ।।

रसिया  रंग  लगाय, नैन फेरत हे गोरी ।

सरा ररा के बोल, खूब गूँजत हे होरी ।।


होरी माते झूम के, अवध पुरी के खोर ।

गोप गुवालिन संग मा, खेले  माखन चोर ।।

खेले माखन चोर, लजाये  राधा रानी ।

मया पिरित के रंग, चुनर भींगे हे घानी ।।

वासुदेव के लाल, पुकारत मइँया मोरी ।

गोकुल सुन्ना आज, कन्हाई आँख निहोरी ।।


होरी खेलय मोहना, राधा रानी संग।

देवत जग शुभकामना, दया मया के रंग ।।

दया मया के रंग, रंग लौ दामन चोली ।

बढ़िया गूँजय राग, फाग के मीठा बोली ।।

बाँटव जग मा प्यार, बाँध सुंता के डोरी ।

चलथे सालों साल, मया के खेलव होरी ।।


होरी के हुड़दंग ला, देख रहँव मँय दंग ।

छोड़ प्रेम के राह ला, मते सबो जग जंग ।।

मते सबो जग जंग, भंग की गटकै गोली ।

भूले रीत रिवाज, बोलथे कड़ुवा बोली ।।

पी के दारू मंद, करत हे सीना जोरी ।

रखौ मया ला बाँध, सबो मिल खेलव होरी ।।


सबके मन ला जीत लौ, दहन करौ मन द्वेष ।

भेदभाव ला छोड़ के, सुघर रखव परिवेश ।।

सुघर रखव परिवेश, देत संदेशा होरी ।

लगा मया के रंग, पिरित के बाँधव डोरी ।।

रोवय नयना मोर, देख होरी ला अबके ।

झन करहू हुड़दंग, करौं बिनती ला सबके ।।


जलही कब तक होलिका, रुढ़ीवाद के आग ।

छोड़व अइसन रीत ला, मानवता पर दाग ।।

मानवता पर दाग, सोच बदलव कलयुग के ।

ये नारी अपमान, सजा मिलथे जुग जुग के ।।

जलथे बेटी रोज, तुँहर आँखी कब खुलही ।

सोंचव गुनव समाज, होलिका कब तक जलही ।।

सब ला लागत नीक बड़, होली के हुड़दंग। परम्परा के हे नशा, चढ़े मतौना रंग।। चढ़े मतौना रंग, भाँग के गटकँय गोली। बूढ़ा कोंन जवान, सबो झन करत ठिठोली।। दहन होलिका होत, समझ नारी ला अबला। पावन परब महान, बधाई होली सब ला।। इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


हरेली

मन हरियर अउ गाँव हे, हरियर खेती खार ।

धरती दाई हा करे, हरा रूप सिंगार ।।

हरा रूप सिंगार, हरेली मा मन भावन ।

छतीसगढ़ तिहार, मनावव सब मिल पावन ।।

संस्कृति ले पहिचान, चलव करबो आज जतन ।

गढ़बो नवा सुराज, मिलाके सब जी तन मन।।


नाँगर बइला जान हे, खेत खार हा धाम ।

जाँगर ला पहिचान दय, ये किसान के नाम ।।

ये किसान के नाम, मान बर वादा ले ली ।

पावन बेला भाय, मनाबो आज हरेली ।।

सावन करे पुकार, बहे पानी के रइला ।

दे किसान आराम, संग मा नाँगर बइला ।।


धर के लोंदी जात हे, सब किसान दइहान ।

चाउँर मिरची दार हे, राउत बर सम्मान ।।

राउत बर सम्मान, धरे नरियर ला थारी ।

करथे बारो मास, हमर गरुवा रखवारी ।।

गरुवा लोंदी खाय, मया मालिक बर भर के । 

मया पिरित ला लाय, हरेली गठरी धर के ।।


पूजा करय किसान हा, जम्मो खेत समान ।

सच मा येकर बर हवय, सउँहत ये भगवान ।।

सउँहत ये भगवान, करय जे खेत किसानी ।

नाँगर रापा संग, कुदारी हे बरदानी ।।

संग रहय घर खेत, नहीं ना कोई दूजा ।

आये प्रकृति दुवार, करव जी बढ़िया पूजा ।।


रच रच रच गेड़ी बजे, गाँव गली अउ खोर ।

खो खो फुगड़ी संग मा, ताल कबड्डी जोर ।।

ताल कबड्डी जोर, खेल ले फेंकव निरयर ।

द्वेष भाव ला छोड़, रखव जी मन ला फ़रियर ।।

रंग हरेली डूब, मना लौ सब जी सच सच ।

पावन बेला आज, बजन दे गेड़ी रच रच ।।


नवटप्पा

नवटप्पा के घाम हा, तन मन ला झुलसाय ।

आग सही दहकत हवे, छाँव घलो दुरिहाय ।।

छाँव घलो दुरिहाय, पेड़ के जरगे पाना ।

करनी के फल ताय, छोड़ दिन पेड़ लगाना ।।

गजानन्द कविराय, बचे ना चप्पा चप्पा ।

पेड़ लगा के दूर, भगाबो जी नवटप्पा ।।


काया लक लक लक करे, घाम जरावय चाम ।

नवटप्पा के घाम मा, कहाँ  सुहावय काम ।।

कहाँ सुहावय काम, चुहे जी बदन पछीना ।

कोनों ला नइ भाय, जेठ के तीपत महिना ।।

गजानन्द कविराय, कहे मिल लाबो छाँया ।

पेड़ लगाके आज, बचाबो तन मन काया ।।


कुण्डलिया छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

पर्यावरण-

आशा हे पर्यावरण, सांस तंत्र आधार ।

बिना रूख राई लगे, बिरथा ये संसार ।।

बिरथा ये संसार, रूख राई दे पुरवाई ।

मन महके घर द्वार, सुंगधित हो अमराई ।।

फल औषधि दे फूल, बने चिड़िया घर वासा ।

चलौ बचाबो पेड़, रखे हरियाली आशा ।।


बाढ़त युग विज्ञान के, पेड़ कटावत रोज ।

रहे सलामत ये प्रकृति, कुछ उपाय तो खोज ।।

कुछ उपाय तो खोज, चलावव झन जी आरी ।

खूब लगावव पेड़, चलौ मिल सब सँगवारी ।।

बनके ठाढ़े सांप, कारखाना फ़न काढ़त ।।

तभे प्रदूषण आज, हवा मा बहुते बाढ़त ।।


हरेली तिहार

सावन महिना के परब, हरय हरेली नाँव ।

सजे गाँव घर द्वार हे, संग पिरित ले छाँव ।।

संग पिरित ले छाँव, सजे हे बइला नाँगर ।

कुलके आज किसान, खुशी मा झूमे जाँगर ।।

लइका गेड़ी खाप, मचे हे बड़ मन भावन ।

खुशी धरे सौगात, आय हे महिना सावन ।।


बनथे खुरमी ठेठरी, हर घर मा पकवान ।

लोंदी धरे किसान हा, जाथे जी दइहान ।।

जाथे जी दइहान, साज के पूजा थाली ।

करके पूजा पाठ, मनाथे सब हरियाली ।।

लोंदी पान खम्हार, नून आटा मा सनथे ।

खाथे गरुवा गाय, निरोगी तब वो बनथे ।।


गेड़ी रिचपिच बाजथे, गाँव गली घर खोर ।

शहर बसे हँव आज ता, ललचाथे मन मोर ।।

ललचाथे मन मोर, मनाये परब हरेली ।

खुडुवा नरियर फेंक, चले हे रेलम पेली ।।

गजानंद चल गाँव, उठा के ऊँचा एड़ी ।

मिलके संगी साथ, आज चढ़बो जी गेड़ी ।।


✍️ इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध

         बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )


कुण्डलिया छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध


बसंत ऋतु- 

धरके नवा उमंग अब, आये हवय बसंत।

सबके मन मा छाय हे, खुशियाँ रंग अनंत।।

खुशियाँ रंग अनंत, धरे हे रुखवा राई।

गाँव गली सब ओर, बहत हे सुख पुरवाई।।

लगे सुहावन खार, फूलवा अँगना घर के।

गजानंद बउराय, रंग फागुन के धरके।।


सरसो पिंवरा हे दिखत, आमा मउरे डार।

लाल लाल परसा खिले, करे प्रकृति सिंगार।।

करे प्रकृति सिंगार, सबो के मन ललचाये।

पिया मिलन के आस, जिया मा आग लगाये।।

गजानंद सुख छाँव, मिले हे तोला बरसो।

लौट चले आ गाँव, कहत हे पिंवरा सरसो।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )


1 मई मजदूर दिवस मा मजदूर मन ला सादर समर्पित- 

कहिथे जग मजदूर ला, भुइँया के भगवान।

जेखर श्रम के सामने, नत मस्तक इंसान।।

नत मस्तक इंसान, झुका श्रम पग मा माथा।

जुग जुग ले गुनगान, करे जन गा गा गाथा।।

जाड़ घाम बरसात, सबो बर दुख ला सहिथे।

भुइँया के भगवान, तभे तो दुनिया कहिथे।।1


छाला दिखथे हाथ मा, दिखे बिवाई पाँव।

बोझ रखे दुख काँध मा, दूर रहे सुख छाँव।।

दूर रहे सुख छाँव, गरीबी घाँव अघौना।

करथे गुजर अभाव, खुला आकाश बिछौना।।

भाग लिखे मजबूर, खुशी मा लटके ताला।

श्रम हे बस पहिचान, कहे तोर हाथ के छाला।।2


सुख सुविधा ले दूर हे, काबर जी मजदूर।

खुद के श्रम अधिकार ला, पाये बर मजबूर।।

पाये बर मजबूर, बखत दू सुख के रोटी।

काम करे दिन रात, ढके तब देह लँगोटी।।

अरजी हे सरकार, इँखर मिट जाये दुविधा।

बढ़िया करौ उपाय, मिले इन ला सुख सुविधा।।3


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

मो. नं.- 8889747888


 *गो धन गोबर योजना*

गो धन गोबर योजना, बढ़िया हे शुरुआत।

स्वागत हे सरकार के, अनुपम दिस सौगात।।

अनुपम दिस सौगात, खरीदी गोबर करही।

बनही जैविक खाद, आय जन जन के बनही।।

घर घर बँधही गाय, भैंस अब दिखही आँगन।

बढ़िया हे शुरुआत, योजना गोबर गो धन।।


कुण्डलिया छंद- कारगिल विजय दिवस

(26 जुलाई 1999)

करथौं बारम्बार मँय, वीर शहीद प्रणाम।

जान गवाँ के देश हित, अपन कमाइन नाम।।

अपन कमाइन नाम, कारगिल फतह करा के।

रखिन देश के शान, उहाँ झंडा फहराके।।

भारत माँ के लाल, तुँहर मँय पइँया परथौं।

अमर रहय जुग नाम, सदा मँय अरजी करथौं।।


इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ) 26/07/2021


कुण्डलिया छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

श्रद्धेय लक्ष्मण मस्तुरिया जी


मस्तुरिहा के याद मा, नैन नीर बोहाय ।

तोर कमी ला कोंन जी, अब पूर्ती कर पाय ।।

अब पूर्ती कर पाय, कहाँ अब अइसे मनखे ।

देश धरम के भाव, भला अब कोंन सरेखे ।

करे अस्मिता बात, बने जे छत्तीसगढ़िया ।

ये भुइयाँ के शान, रहिंन लक्ष्मण मस्तुरिया ।।


कुण्डलिया छंद- *पूरी खीर*

बीबी   मोर   बनाय  हे,  देखव   पूरी   खीर।

ललचाहू झन देख के, अपन अपन तकदीर।।

अपन अपन तकदीर, पास मा बइठ खवाये।

ककरो   हा   गुर्राय,  बेलना   धर   दउड़ाये।

बइठे   दूनों   पास, संग   मा   देखन   टीबी।

धन्य मोर जी भाग, पाय हँव अइसन  बीबी।।

-----x-----

कुण्डलिया छंद- कर्जदार हन भीम के


पिछड़े दलित समाज अउ, सबके तारनहार।

कर्जदार हन भीम के, चुका चलौ उपकार।।

चुका चलौ उपकार, मिशन हम भीम बढ़ाइन।

सोये हे जो कौम, नींद से आज जगाइन।।

संविधान लौ थाम, कभू सुख शांति न उजड़े।

तथाकथित धर राह, कब तलक रइहौ पिछड़े।।1


बनके नमक हराम कुछ, गाँथय पर गुनगान।

संविधान अउ भीम ले, मिले हवय सुख शान।।

मिले हवय सुख शान, पढ़ाई के आजादी।

झन भूलव इतिहास, अपन दुख अउ बरबादी।।

भीम बदौलत आज, चलत हौ तुम बन ठनके।

मिशन बढ़ावव भीम, असल अनुयायी बनके।।2


अबला सबला दीस हे, भीम इहाँ अधिकार।

फेर भुलागे आज इन, बन करके गद्दार।।

बन करके गद्दार, मगन हे सुख सुविधा मा।

याद करौ इतिहास, रहिस जिनगी दुविधा मा।

रोटी वस्त्र मकान, दिलाइस हे जे सब ला।

नारी कर उत्थान, कहिस इन नइहे अबला।।3


🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़ )

जीयत हौ सुख शान से, स्वाभिमान के संग। येखर खातिर हे लड़े, भीमराव जी जंग।। भीम राव जी जंग, लड़िस हे समानता बर। कहिस सबो हे एक, बरोबर हे नारी-नर।। तोला देइस मान, खुदे दुख आँसू पीयत। संविधान के देन, हवस सुख जिनगी जीयत।। निकलत नइहे शब्द दू, भीम राव के नाम। बन अहसानफरोश अब, करत हवव बदनाम।। करत हवव बदनाम, बने तुम कलम सिपाही। संविधान के मान, बता तब कोंन बढ़ाही।। बन के रहे गुलाम, रहिस जब हालत घिसलत। दिये भुला वो काल, शब्द दू नइहे निकलत।। नारी के उत्थान कर, देइस हक अधिकार। फेर भुलागे हें बबा, तोर किये उपकार।। तोर किये उपकार, बनाये महल अटारी। शूट बूट अउ कोट, पहिन बनगे अधिकारी।। सच्चाई ला छोड़, खड़े हें झूठ दुवारी। संविधान के मान, समझ नइ पावत नारी।। इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 14/04/2023


[31/03, 3:30 PM] Er. G.N. Patre:

कुण्डलिया छंद- इड़हर

इड़हर गजब सुहाय हे, जब गरमी दिन आय।

बड़हर कोंन गरीब सब, बड़ा चाव से खाँय।।

बड़ा चाव से खाँय, तृप्त हो जावय चोला।

फेंट उरिद के दार, भाप मा उसनव ओला।।

मिलय कोचई पान, गाँव मा पहिली घर -घर।

जेखर संग लपेट, बनावँय सब झन इड़हर।।


ठंडा गर्मी सब समय, मन ला इड़हर भाय।

दही मही के संग मा, ये हा गजब मिठाय।।

ये हा गजब मिठाय, राँध ले घलो मसलहा।

जीभ लमा के खींच, स्वाद मा हो बैसुरहा।।

येखर आज बताँव, पकाये के मैं फंडा।

दार उरिद के संग, मिठाथे इड़हर ठंडा।।


[26/03, 2:43 PM] Er. G.N. Patre:

 कुण्डलिया छंद- बोर-बासी


बोरे-बासी खाय ले, भगथे तन ले रोग।

सुबह मझनिया शाम के, कर लौ संगी भोग।।

कर लौ संगी भोग, छोड़ के कोका कोला।

हरथे तन के ताप, लगे ना गर्मी झोला।।

नींबू आम अथान, मजा के स्वाद चिभोरे।

दही मही के संग, सुहाथे बासी-बोरे।।


बोरे बासी खाय ले, पहुँचे रोग न तीर।।

ठंडा रखे दिमाग ला, राखे स्वस्थ शरीर।

राखे स्वस्थ शरीर, चेहरा खिल-खिल जाथे।

धरौ सियानी गोठ, कहे ये उमर बढ़ाथे।।

गाँव शहर पर आज, स्वाद बर दाँत निपोरे।

पिज़्ज़ा बर्गर भाय, भुलागे बासी बोरे।।


 बोरे-बासी संग मा, जरी चना के साग।

जीभ लमा के खा बने, सँवर जही जी भाग।

सँवर जही जी भाग, संग मा रूप निखरही।

वैज्ञानिक हे शोध, फायदा तन ला करही।।

गजानंद के बात, ध्यान दे सुन लौ थोरे।

छत्तीसगढ़ के मान, बढ़ावय बासी-बोरे।।


कुण्डलिया-  परसा के फूल

परसा के ये फूल हा, देवत हे संदेश।

पेड़ बचावव साँस बर, स्वच्छ रखौ परिवेश।।

स्वच्छ रखौ परिवेश, करौ मिल दूर प्रदूषण।

सजे प्रकृति तन माथ, पेड़ बन आभूषण।।

गजानंद अब गाँव, शहर नइ बाचिस धरसा।

रहय कटाकट पेड़, लीम बमरी अउ परसा।।


कविता वासनिक

दीदी कविता वासनिक, छत्तीसगढ़ के शान। सबके मन ला मोह लै, छेड़ मधुर लय तान।। छेड़ मधुर लय तान, अगोरय गाड़ी वाला। मस्तुरिहा के गीत, करय जब रात उजाला।। अमर रहय जग नाम, बहय नित गीत सरिता। बैंक नौकरी पूर्ण, बधाई दीदी कविता।।


इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


कुण्डलिया छंद- कारगिल विजय दिवस करथौं बारम्बार मँय, वीर शहीद प्रणाम। जान गवाँ के देश हित, अपन कमाइन नाम।। अपन कमाइन नाम, कारगिल फतह करा के। रखिन देश के शान, उहाँ झंडा फहराके।। भारत माँ के लाल, तुँहर मँय पइँया परथौं। अमर रहय जुग नाम, सदा मँय अरजी करथौं।। इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध' बिलासपुर (छत्तीसगढ)



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मयूरशिखा छंद-

*मयूर शिखा (अर्ध सममात्रिक छंद)* नव प्रस्तारित आधार छंद है। *कुल मात्रा -- 54* *यति-- 14,13* *पदांत- IIS* *मापनी--- SSS-SSS-S, SSIS-SIIS* ( ...