सोमवार, 6 मई 2024

मयूरशिखा छंद-

*मयूर शिखा (अर्ध सममात्रिक छंद)* नव प्रस्तारित आधार छंद है।

*कुल मात्रा -- 54*

*यति-- 14,13*

*पदांत- IIS*

*मापनी--- SSS-SSS-S, SSIS-SIIS*

( 17 वाँ, 24 वाँ और 25 वाँ वर्ण को लघु वर्ण होना आवश्यक है, और गुरु के जगह में दो लघु भी रखा जा सकता है।)

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                  *मानवता*

इंसानों का धर्म यही, कहते जिसे मानवता।

दया क्षमा करुणा करिए, जग से मिटे दानवता।।


मानवता पाठ पढ़ाते, ये ग्रंथ सारे अपने।

हिंसात्मक हर कृत्य तजो, तो सत्य होंगे सपने।।


सभी महापुरुषों वाणी, करुणा अहिंसा कहती।

इनके ही जीवन पथ पर, पावन त्रिवेणी बहती।।

 

कभी क्रूरता जो करते, इंसानियत को तजते।

मुक्ति नहीं इन जीवों का, ये नर्क जाते मरते।।


मानवतावादी बनिए, तब सर्वहित संभव है।

हो पावन विचारधारा, या अन्यथा तांडव है।।


मानव के स्वाभाविक गुण, देवत्व भी विकसित हो।

फूल नहीं कोई झुलसे, सारा चमन कुसुमित हो।।


आदर्शों को हो स्थापन, हिंसक प्रणों  को तजिए।

पूजनीय संरक्षक बन, शुभ भावना से सजिए।।


मानव द्रोही नहीं बनो, बदला तजो प्यार करो।

मानवता का मार्ग यही, नवचेतना आज भरो।।


मानव प्रेमी हृदय रखो, जगबंधु उपनाम रहे।

मानवता ही धर्म बड़ा, प्रिय ग्रंथ सब संत कहे।।

-- डॉ रामनाथ साहू 'ननकी'

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*आधार छंद-- मयूरशिखा अर्ध सममात्रिक*

*यति - 14,13*

*परिचय-- चार चरण 54 मात्रा*

*मापनी--SSS-SSS-S, SSIS-SIIS*

*पदांत--  सगण (IIS)*

*सृजन शीर्षक-- चंचलता* (5 युग्म)

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मन में भरना चंचलता, कटु बोल परित्याग करो।

हार मिले या जीत मिले, पर भाव उत्साह भरो।।


नमन करूँ मैं मातु पिता, जिसने मुझे जन्म दिया।

शिक्षा का शुभ दीप जला, गुरु आप ने धन्य किया।।


बनें उपासक मानवता, उपकार बंधुत्व रहे।

परहित सेवा हाथ बढ़े, कोई न अब कष्ट सहे।।


द्वेष द्वंद से मन कलुषित, होवे न यह ध्यान रखें।

करें मेहनत की पूजा, श्रम अन्न हम आप चखें।।


कुसुमित बगिया जीवन की, मनमीत गुलजार करें।

गजानंद जग प्रीत बढ़े, मन में मुदित भाव भरें।।

----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 06/05/2024

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*आधार छंद-- मयूरशिखा अर्ध सममात्रिक*

*सृजन शीर्षक-- तूफानों से डरना क्यों* (5 युग्म)

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तूफानों से डरना क्यों, रख हौसला नित बढ़ना।

कर्मवीर मंजिल पाना, इतिहास हरदम गढ़ना।।


देश भक्ति का भाव जगे, इसका हमें भान रहे।

शान तिरंगा ऊँचा हो, जय भारती लोग कहे।।


खनिज संपदा देश भरा, मत नष्ट इसको करना।

इसकी रक्षा करने को, मत कष्ट से तुम डरना।।


सीमा पर तैनात खड़े, हरदम सिपाही रहते।

ठंड धूप सर्दी गर्मी, हँसकर सदा वे सहते।।


देश धर्म ही हम सबका, सबसे बड़ा धर्म रहे।

गजानंद जी गर्व करे, वंदन सदा कर्म कहे।।

----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 06/05/2024

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*आधार छंद-- मयूरशिखा अर्ध सममात्रिक*

*सृजन शीर्षक-- हँसता हुआ आँगन है* (5 युग्म)

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बेटी से घर में रौनक, हँसता हुआ आँगन है।

बेटी माता बहन बहू, ममतामयी दामन है।।


फूल कली है बागों की, खिलके चमन में महके।

पंख पसारे खुशियों की, चिड़िया बने वह चहके।।


बेटी से जीवन पावन, गंगा बने है बहती।

अश्रु छुपाये आँखों की, पीड़ा बहुत वह सहती।।


बेटी कुल की मर्यादा, संस्कार की है जननी।

गृह लक्ष्मी कहलाती है, बनकर पिया की सजनी।।


हँसी खुशी परिवार रखे, जब वो हँसे फूल खिले।

गजानंद जी बेटी को, यश कीर्ति सम्मान मिले।।

---🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 07/05/2024

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*आधार छंद-- मयूरशिखा अर्ध सममात्रिक*

*सृजन शीर्षक-- मंजिल* (5 युग्म)

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मंजिल कदमों पर होगी, रख हौसला तुम बढ़ना।

कर्मवीर भारत के बन, तुमको शिखर है चढ़ना।।


भुजा समाये रखना पर्वत, ललकार हो शेर सहीं।

आगे बढ़ते जाना है, जिसकी कहीं छोर नहीं।।


बन सपूत भारत माँ का, देना सदा कर्ज चुका।

रखो हौसला फौलादी, दुश्मन चले आँख झुका।।


मान तिरंगा ऊँचा रखना, नित देश हित प्रण करना।

इसके लिए सदा जीना, इसके लिए ही मरना।।


दुश्मन के प्रतिघातों से, अविरल लहू है बहती।

मान बढ़ाना मेरे बच्चे, माँ भारती नित कहती।।

---🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 07/05/2024



सोमवार, 29 अप्रैल 2024

गणात्मक दोहे-

 शुभ गण– यमभन

अशुभ गण– सतरज 

गणात्मक दोहे

(वार्णिक गण)------

मगण (222)

*जिज्ञासा* जिंदा रखो, *अज्ञानी* अब चेत।

भटके *संसारी* यहाँ, बन *बंजारा* प्रेत।।


*यगण (122) (पूर्व में त्रिकल लगाये)*

नया *जमाना* आ गया, सभी *नशीले* लोग।

नमन *प्रभाती* भूलकर, सतत *सुहाते* भोग।।


रगण (212) (पूर्व में त्रिकल लगाये)*

सुमन *वाटिका* से भरा, करे *कामिनी* नृत्य।

मधुर सुनाती *रागिनी*, बजे *पैजनी* वृत्य।।


सगण (112)

*अपने सपने* सत्य हैं, *लगता बरसों* बाद।

*चलते चलते* आ गये, *लगता बजते* नाद।।


तगण (221)

मिलता है *संसार* में, संसारी *जंजाल*।

इसे तनिक *आभास* कर, कहता नर *कंकाल*।।


जगण (121) (पूर्व में द्विकल लगाये)*

अब *विकास* गंगा बही, हर *निकाय* आनंद।

हर्षित *किसान* लग रहे, रक्षित सिंह *गयंद*।।


भगण (211)

*पावन सावन* आ गया, *नेवर किंकिनि* शोर।

*दादुर झिंगुर* सुर षडज, *साजन आँगन* तोर।।


नगण (111)

*जनम जनम* का साथ है, *मुदित मगन* चल पंथ।

*सहज सरल* बनना *पथिक*, *परम प्रणव* उन्मंथ।।

*--- डॉ. रामनाथ साहू "ननकी"*

       *संस्थापक, छंदाचार्य* 

 *(बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)*

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- आवारा)*

आवारा पशु बन फसल, करते हैं नुकसान।

गायब चारागाह अब, देना इस पर ध्यान।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- विवेकी)*

बुद्धि विवेकी ज्ञान का, होता जग में मान।

सहज सरल व्यवहार से, बनते मनुज महान।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- मोहिनी)*

मंत्र मोहिनी जानिए, मुँह का मीठा बोल।

दुनिया को वश में करें, शब्द कहें अनमोल।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- पहुना)*

आये पहुना द्वार जब, करें मान सम्मान।

कहते बुजुर्ग हैं सभी, पहुना है भगवान।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- आराम)*

है आराम हराम यह, सूक्ति जवाहर लाल।

श्रम से ही होते सदा, जग में ऊँचा भाल।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- किसान)*

वंदन करूँ किसान को, धरती का भगवान।

भरते सबका पेट जो, बन करके वरदान।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- रावण)*

गली-गली रावण खड़ा, द्वार-द्वार पर कंस।

कौवे मोती चुग रहें, बन करके अब हंस।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- वतन)*

सबसे प्यारा है वतन, मेरा भारत देश।

जहाँ एकता प्रेम का, सुंदर है परिवेश।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/04/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- आभारी )*

छंद महालय से मिला, मुझको छंद विधान।

आभारी गुरु आपका, कर दो आप समान।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- उजाला )*

फैला है चारो तरफ, अंधकार घनघोर।

करो उजाला आप गुरु, विनती है कर जोर।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- साधना )*

सतत साधना से हुआ, सफल सभी निज काम।

कर्मशील इंसान का, होता जग में नाम।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- सजना )*

सजना मेरे हाथ में, दे दो अपना हाथ।

छूटे मत सातो जनम, तेरा मेरा साथ।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- बाजार )*

यह जीवन बाजार है, कर लो सौदा आप।

अमल करो खुद के लिए, सदा सत्य को माप।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- विकास )*

होता घोर विनाश है, नित विकास के नाम।

फैला भ्रष्टाचार है, रहा अधूरा काम।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- घायल )*

घायल है यह दिल बहुत, कौन करे उपचार।

गजानंद नित चाहता, आप सभी का प्यार।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- चमक )*

चमक कभी खोता नहीं, सोना पाकर ताप।

सोने के जैसा चमक, रखें सदा हम आप।।

----- 🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 29/04/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- आशंका)*

आशंका मन में कभी, आने मत दो आप।

आशंका से सुख नहीं, बढ़ता है संताप।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- तलाशी)*

करें तलाशी आप हम, कहाँ छुपा है चोर।

सोया चौकीदार है, रखकर हृदय कठोर।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- पैरवी)*

करो पैरवी सत्य का, झूठ न देना साथ।

हो वजूद इंसानियत, सदा बढ़ाना हाथ।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- मँहगी)*

गजानंद सच मान लो, दिल है महँगी चीज।

सभी दिलों में हम उगा, चलें प्रेम का बीज।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- जंजीर)*

बँधा प्रेम जंजीर से, हम दोनों का साथ।

जीवन जीना है हमें, रख हाथों में हाथ।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- झकास)*

लिया धरा ने आज है, मोहक रूप झकास।

स्वागत माह बसंत का, आतुर फूल पलाश।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- वादन)*

शुभ वीणा वादन करो, सरस्वती माँ आज।

देना आशीर्वाद माँ, बन जाये सब काज।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- अमर)*

सदा अमर रहता यहाँ, नेक कर्म प्रतिसाद।

गजानंद पात्रे सदा, बात रखो यह याद।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 30/04/2024

---- *बिलासा छंद महालय*

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- मेधावी)*

गुरु मेधावी शिष्य को, करते बहुत पसंद।

खोले ज्ञान कपाट को, सोच रखे स्वच्छंद।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- विधाता)*

भाग्य विधाता आप गुरु, दया कृपा का खान।

देना आशीर्वाद नित, कर लूँ कर्म महान।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- चाँदनी)*

स्वच्छ चाँदनी में खिला, उम्मीदों का फूल।

जीत मिले या हार हो, करो सहर्ष कबूल।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- सपने)*

अपने सपने को करो, पाने सदा प्रयास।

श्रम से सब संभव यहाँ, रखे चलो विश्वास।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- अंगार)*

नारी के दो रूप हैं, फूल और अंगार।

लेते पाप विनाश को, रणचंडी अवतार।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- उदार)*

जन सेवा कल्याण का, रखना भाव उदार।

वाणी से वाणी मिले, संयम हो व्यवहार।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- चंचल)*

चंचल चित्त चकोर सा, आतुर पाने प्रेम।

इसीलिए व्यवहार में, भर लें हम नित नेम।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- लगन)*

कड़ी लगन से है मिली, मंजिल अपने हाथ।

गजानंद मत भूलना, सदा बड़ों का साथ।।

---- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 01/05/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- आगामी )*

आगामी सरकार का, इंतजार है देश।

आतुर सब भय मुक्त अब, पाने को परिवेश।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- सँवारो)*

हाल सँवारो देश का, रोको भ्रष्टाचार।

पता करो किस रूप में, छुपा कहाँ गद्दार।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- शोभना )*

बेटी घर की शोभना, दो कुल की है लाज।

पाँव पड़े जिस द्वार पर, सँवरे सारे काज।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- चुपके )*

चुपके-चुपके रात दिन, बही नैन से नीर।

अपनों ने ही दे गया, अपनों को ही पीर।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- श्रृंगार )*

हरियाली तन ओढ़कर, धरा किया श्रृंगार।

आतुर गाने के लिए, कोयल गीत बहार।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- उदास )*

इस जीवन से हारकर, रहना नहीं उदास।

मन से जीते जीत है, रख चलना विश्वास।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- कंचन )*

काया कंचन की तरह, रखना हरदम शुद्ध।

काया है अनमोल धन, कहना गौतम बुद्ध।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- नकल )*

नकल करें हम सत्य का, त्यागें संगत झूठ।

कभी बोल व्यहवार से, लोग न जायें रूठ।।

----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 01/05/2024

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*(गणात्मक दोहा लिखें-----*

मगण (222) *(सृजन शब्द-- आतंकी)*

आतंकी आतंक से, होता देश तबाह।

लोग लगे संदिग्ध जो, देना नहीं पनाह।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- लुटेरे)*

चोर लुटेरे देश को, कर देंगे बर्बाद।

मूक बधिर सरकार है, कौन सुने फरियाद।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- वासना)*

प्रेम वासना के लिए, करे दुहाई लोग।

संस्कृति पाश्चात्य का, लगा हुआ है रोग।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- कपटी)*

कपटी लोगों से सदा, रखना खुद को दूर।

तीर चुभाते बोल से, देते दुख भरपूर।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- गद्दार)*

घूम रहें आराम से, होकर चोर फरार।

देश खोखला कर दिए, श्वेत पोश गद्दार।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- विचित्र)* 

स्वार्थ भरे संसार में, मिलते लोग विचित्र।

जीवन के हर मोड़ पर, साथ खड़ा है मित्र।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- ताड़न)*

नहीं किसी को है मिला, ताड़न का अधिकार।

जीव चराचर के लिए, रखो प्रेम व्यवहार।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- रुदन)*

चीख-चीखकर कर रही, जनता रुदन पुकार।

महँगाई की मार से, कौन करे उद्धार।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 02/05/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- चालाकी )*

लूट लिए इस देश को, चालाकी चल चाल।

राजनीति नेता किये, बिछा झूठ का जाल।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- निराला )*

खेल निराला आपका, कौन सका है जान।

इसीलिए तो आपको, कहते हैं भगवान।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- सांत्वना )*

दुख में देना सांत्वना, कभी न जाना भूल।

कर्म वचन व्यवहार से, नहीं चुभाना शूल।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- जलना )*

जलना दीपक की तरह, करना प्रेम प्रकाश।

लोभ घटे ईर्ष्या मिटे, होवे भ्रम भय नाश।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- व्यापार )*

रोजगार व्यापार को, लोग हुये लाचार।

झेल रहे हैं आम जन, महँगाई की मार।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- प्रसाद )*

देना भक्ति प्रसाद प्रभु, गाऊँ मैं गुणगान।

कृपा छाँव मिलता रहे, मिटे सभी अभिमान।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- व्याकुल )*

देख देश हालात को, व्याकुल मन है आज।

वंचित शोषित लोग हैं, तानाशाही राज।।


 नगण (111)  *(सृजन शब्द-- दमन)*

दमन नीति का देश में, होगा सदा विरोध।

जागरूक जनता सभी, सबको है सच बोध।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 02/05/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- कल्याणी )*

कल्याणी माँ भारती, करना जग कल्याण।

तेरी रक्षा के लिए, करूँ प्राण निर्वाण।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- हमारे )*

देव हमारे द्वार पर, आये हैं गुरु रूप।

मिला ज्ञान का छाँव सुख, मिटा तमस दुख धूप।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- आरती )*

करूँ आरती भारती, होकर भक्ति विभोर।

कृपा दृष्टि रखना बना, विनती है कर जोर।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- मिलना )*

तन का मिलना वासना, मन का मिलना प्रेम।

एक दूसरे के लिए, रखें चाह नित नेम।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- तूफान )*

आये दुख तूफान तो, रखना संयम धीर।

सुख आयेगा एक दिन, मिट जायेगा पीर।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- सुवास )*

जीवन में सबके लिए, रखना प्रेम सुवास।

खिलना फूल बहार बन, बनना दीप उजास।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- काजल )*

काजल से काला हुआ, मानव मन का पाप।

लोभ क्षोभ धन का भरा, बढ़ा तभी संताप।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- नयन )*

नीर नयन है पीर का, समझो भाव अथाह।

गजानंद दुख की घड़ी, चाहे प्रभु से राह।।

----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 03/05/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- वैरागी )*

वैरागी वैराग्य का, पालन करते रोज।

राग द्वेष को त्याग कर, परम मोक्ष की खोज।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- किनारा )*

वंदन दयानिधान गुरु, हर लेना संताप।

जीवन के इस नाव को, करो किनारा आप।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- वंदना )*

सुबह शाम है वंदना, विनती है कर जोर।

इस जीवन में आप गुरु, लाना सुख शुभ भोर।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- चकमा )*

चकमा देकर चल दिये, लूट खजाना चोर।

अपना चौकीदार चुप, बैठा दाँत निपोर।।


तगण (221) *(सृजन शब्द--  सत्कार )*

देव रूप माता-पिता, गुरु शिक्षा आधार।

नाम मान इनसे मिले, करो सदा सत्कार।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- कमाल )*

चलते चाल कमाल का, ढोंगी कपटी लोग।

देव धर्म के आड़ में, करते छप्पन भोग।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- कोयल )*

बैठ आम की डाल पर, कोयल गाये गीत।

ऋतु बसंत है आगमन, कर लो स्वागत मीत।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- सुमन )*

महका-महका मन सुमन, खींचे अपनी ओर।

गजानंद नम भाव से, हुये सुगंधित भोर।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 04/05/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- अज्ञानी )*

अज्ञानी इस शिष्य को, देना गुरुवर ज्ञान।

कर जाऊँ जीवन सफल, पाकर गुरु वरदान।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- सितारें )*

चाँद सितारे रात में, चमके करे प्रकाश।

देते नित संदेश यह, रहना नहीं निराश।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- रागिनी )*

राग-रागिनी की तरह, रखना मधुर मिलाप।

हँसी खुशी जीवन चले, मिट जाये संताप।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- महका )*

महका-महका है बदन, बहकी-बहकी प्रीत।

लग जाओ आओ गले, बनकर मेरे मीत।।


तगण (221) *(सृजन शब्द--  विख्यात )*

नेक कर्म इंसान कर, हो जाते विख्यात।

संत गुणी विद्वान जन, देते शुभ सौगात।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द--  विधान )*

जानो कर्म विधान को, कर लो कष्ट निदान।

कर्म बड़ा है धर्म से, कहते संत सुजान।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- मानस )*

अपने इस मानस पटल, पर यह करें सवाल।

मानव-मानव भेद क्यों, रंग लहू जब लाल।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- मधुर )*

तुमसे है मुझको सनम, मधुर मिलन की आस।

तड़प रहा मन बावरा, कर लो तुम विस्वास।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 04/05/2024

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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

दोहा छंद- अर्ध सममात्रिक छंद

 *---अर्ध सममात्रिक---* 

   *जिस मात्रिक छंद के पहले और तीसरे अर्थात विषम चरणों के और दूसरे एवं चौथे अर्थात सम चरणों के लक्षण समान हो उसे अर्ध सममात्रिक  कहते हैं।*

*दोहा छंद--- (कुल 48 मात्रा) यति - गुरु लघु*

   *यह द्विपदी अर्द्ध सममात्रिक छंद है। इसके प्रति पद में 24 मात्रा होती है। प्रत्येक पद 13, 11 मात्रा के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है। 13 मात्रा के चरण को विषम चरण कहा जाता है और 11 मात्रा के चरण को सम चरण कहा जाता है। दोहा के विषम चरण का प्रारम्भ जगण (121), पंचकल तगण (221), सप्तकल से नहीं होता।*

*कल संयोजन----*

*(1) विषमकल संयोजन----*

*332(212), 332(21)*

*(2) समकल संयोजन-----*

*44(212), 44(21)*

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    *दिनांक -- 22/04/2024*

*दिन --सोमवार*

*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*यति - 13,11*

*परिचय-- चार चरण 48मात्रा*

*पदांत--  गुरु लघु आवश्यक*

*सृजन शब्द-- नमन*

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नमन पटल गुरुदेव को, नमन महालय छंद।

दिए मुझे हैं छंद का, सर्व श्रेष्ठ मकरंद।।


आओ सीखें आज हम, दोहा छंद विधान।

सब छंदों का मूल यह, कहते सब विद्वान।।


चार चरण दो पंक्ति से, बनते दोहा छंद।

मात्रा अड़तालीस कुल, यति गति चौबंद।।


कुल मात्रा चौबीस ही, रखना दोनों पाद।

विषम चरण तेरह रहे, हो सम ग्यारह याद।।


कभी जगण से छंद को, करें नहीं शुरुआत।

दूर पंचकल से रहें, ध्यान रखें यह बात।।


प्रथम तृतीय चरण सदा, कहें विषम कल आप।

दूजा चौथा सम चरण, छंद विधा परिमाप।।


कल संयोजन छंद का, होता अभिन्न अंग।

कहाँ विषम सम कल रखें, ताकि न लय हो भंग।।


विषम चरण का जान लें, मात्रा योजन भार।

तीन तीन दो तीन दो, अंत रखें गुरु सार।।


समकल चरणों में रखें, चार-चार अरु तीन।

सजते बढ़िया गेयता, लिखना हो तल्लीन।।


गजानंद दोहा लिखे, पाकर गुरु से ज्ञान।

गुरु चरणों में है नमन, कभी न हो अभिमान।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 22/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- रंग*

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रंग बिरंगे लोग हैं, रंग बिरंगे बोल।

फिर भी मेरे देश में, समरसता अनमोल।।


संविधान ने है दिया, सबको सम अधिकार।

जाति- धर्म से हो परे, रखें प्रीत व्यवहार।।


बागों में सब फूल खिल, भरते रंग बहार।

इसी तरह हम आप मिल, करें सुखद संसार।।


करें बड़ों का मान हम, छोटों को दें प्यार।

अतिथि देव समतुल्य है, मिला हमें संस्कार।।


त्यागें हम कुविचार को, अपनायें सुख राह।

गजानंद संभव तभी, परहित चाह अथाह।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 22/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- चलता हूँ अविराम*

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परहित सेवा भाव रख, चलता हूँ अविराम।

जीते जी इस लोक में, पाने को सुख धाम।।


करता हूँ नित कामना, प्रभु जी देना साथ।

दुखियों की करने मदद, सदा बढ़े यह हाथ।।


ढोंग रूढ़ि पाखंड का, लगे कभी मत रोग।

सच्चाई की हो परख, पाऊँ सुखद सुयोग।।


कर्म वचन अरु सोच में, भरना प्रेम मिठास।

कभी किसी को मत मिले, व्यवहारों से त्रास।।


कर्तव्यों के राह में, करूँ सफलता पार।

गजानंद प्रभु आपसे, करता करुण पुकार।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 23/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- उपहार*

!!!!!!!!!*!!!!!!!!!*!!!!!!!!!!*!!!!!!!!*!!!!!!!!!

इस जीवन को मानिए, सतगुरु का उपहार।

इसीलिए करते रहें, जीव जगत से प्यार।।


मानव-मानव एक का, रखिये मन में भाव।

घायल करते सोच को, जाति-धर्म का घाव।।


सभी जन्म से एक हैं, खून सभी का एक।

मानवता के राह पर, कर्म बनाओ नेक।।


सत्य अहिंसा प्रेम का, पढ़ लें हम सब पाठ।

दीन-दुखी सेवा बिना, मानव तन है काठ।।


स्वर्ग नर्क के फेर में, पड़ना मत इंसान।

गजानंद शुभ कर्म पर, रखना हरदम ध्यान।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 23/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- करना है मतदान*

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लोकतंत्र का पर्व यह, पावन पुण्य महान।

गजानंद हर एक को, करना है मतदान।।


संविधान ने है दिया, मतादान अधिकार।

एक-एक मत कीमती, करना बात विचार।।


जनता बन बगुला भगत, बैठे क्यों खामोश।

लूट रहे हैं अस्मिता, अब तो आओ होश।।


गजानंद कहते फिरे, सच्चाई के साथ।

शिक्षा भी विकलांग है, निजीकरण के हाथ।।


रोजगार व्यापार से, दूर युवा हैं आज।

काम नहीं हर हाथ में, वंचित लोक सुराज।।


भूल कभी जाना नहीं, हक मुद्दे की बात।

नेता देते खोखले, जन-जन को खैरात।।


जाति-धर्म पर जो करे, राजनीति का खेल।

इन नेताओं का रहा, निज विकास से मेल।।


परम हितैषी बन खड़े, घर-घर आज जनाब।

पाँच वर्ष का माँगना, इनसे आप हिसाब।।


बिजली पानी घर सड़क, है जीवन आधार।

और चाहिए क्या भला, जनता को सरकार।।


नहीं चाहिए बोल दो, मंदिर मस्जिद चर्च।

रोजगार सुख स्वास्थ्य अरु, शिक्षा पर हो खर्च।।


गजानंद नेता चुनो, सदुपयोग कर वोट।

तेरे मत से ही तुम्हें, मत पहुँचाये चोट।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 24/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- पतवार*

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सतगुरु जीवन नाव का, बने रहो पतवार।

दया दृष्टि से आपकी, कर जाऊँ भव पार।।


करना इच्छाशक्ति को, आप सदा मजबूत।

मन में दृढ़ विश्वास हो, तन में भक्ति भभूत।।


गुरु से बढ़कर है नहीं, दुनिया में भगवान।

जिनके ज्ञान विवेक से, बनते मनुज महान।।


शिक्षा का गुरु दीप बन, करते ज्ञान उजास।

गजानंद गुरु के बिना, कौन बँधाये आस।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 24/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- वादे झूठे कर गये*

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वादे झूठे कर गए, नेता जी हर बार।

वोट माँगने आज फिर, आये हैं वे द्वार।।


बाँध पुलिंदा झूठ का, फेंक रहें हैं जाल।

करो भरोसा अब नहीं, मत गलने दो दाल।।


पाँच वर्ष तक क्या किये, इनसे करो सवाल।

भूले देश विकास को, सोये नींद निढाल।।


जाति-धर्म के नाम पर, खूब मचाये रार।

जनता की तकलीफ को, किये नहीं स्वीकार।।


भूख गरीबी है बढ़ा, महँगाई की मार।

तरस रहें सुख कौर को, कौन करे उद्धार।।


चोर लुटेरों को मिला, निस दिन छूट पनाह।

चीख रही जनता यहाँ, कौन सुझाये राह।।


वंचित दलित समाज पर, होते शोषण रोज।

नेता इससे हो परे, करते छप्पन भोज।।


सत्ता स्वयं विशेष का, पाने को है होड़।

नेता जी अब चुप रहो, चुपड़ी बातें छोड़।


समझ रहें हर बात को, समझ रहें हर चाल।

गजानंद अब तो इन्हें, बाहर फेक निकाल।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 25/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- लोकतंत्र का पर्व*

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आया मेरे देश में, लोकतंत्र का पर्व।

करके अब मतदान हम, कर लें खुद पे गर्व।।


अपने सोच विवेक से, चुनना नेता नेक।

जाति धर्म से हो परे, सबको मानें एक।।


करना वोट खराब मत, पड़ करके तुम लोभ।

वरना सहना है तुम्हें, पाँच वर्ष दुख क्षोभ।।


हक मुद्दें की बात को, रख लेना तुम ध्यान।

करने देश विकास निज, करना है मतदान।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 25/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- नर तन है अनमोल*

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पाये हो सौभाग्य से, नर तन है अनमोल।

मानवता के राह चल, बोलो मीठा बोल।।


सत्य अहिंसा प्रेम का, पाठ पढ़ो तुम नेक।

सभी जन्म से एक हैं, लहू सभी का एक।।


हाड़ मांस अरु खून से, सबका बना शरीर।

सुख भी सबका एक है, एक सभी का पीर।।


जीव चराचर के लिए, भर लो मन में नेह।

मिल जायेगा एक दिन, मिट्टी में यह देह।।


भक्ति रंग में रंग कर, कर लो प्रभु का जाप।

दया दृष्टि प्रभु का मिले, मिट जाये संताप।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 26/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- परिवर्तन का दौर है*

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परिवर्तन का दौर है, गाँव शहर में शोर।

गया सिंहासन हाथ से, छोड़ लगाना जोर।।


बहुत लिए हो लूट तुम, बहुत मचाये रार।

आपस लोगों को लड़ा, बन बैठे सरकार।।


समझदार जनता बहुत, समझ गए हर बात।

अपने मत अधिकार से, बदलेंगे हालात।।


संविधान से आप हम, संविधान से देश।

संविधान ने है दिया, सबको सुख परिवेश।।


परिवर्तन का दौर है, परिवर्तित हो देश।

सबको सुख जीवन मिले, मिट जाये हर क्लेश।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 26/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- बजरंगी गुण धाम*

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परम भक्त प्रभु राम के, बजरंगी हनुमान।

शरण पड़ा हूँ आपके, देना मुझ पर ध्यान।।


करूँ भजन मैं आरती, लेकर पूजा थाल।

श्री चरणों में आपके, झुके रहे नित भाल।।


दुख विपदा भंजन करो, बजरंगी गुण धाम।

नाम हृदय में लूँ बसा, मैं तो आठों याम।।


राम काज करने सदा, रहते आतुर आप।

माता सीता खोज में, नीरनिधि दिये नाप।।


बाहुबली हनुमान जी, देना बुद्धि विवेक।

भक्तों के रक्षक बनो, कर्म बना दो नेक।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 27/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- जाग अरे इंसान*

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सोया वह खोया सदा, जाग अरे इंसान।

समय कभी लौटा नहीं, देना इस पर ध्यान।।


श्रम का फल मीठा मिले, इंतजार रख धीर।

श्रम से मिलता मान पद, दूर हुये हैं पीर।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 27/04/2024

सोमवार, 15 अप्रैल 2024

पद्मावती छंद- आधार छंद मापनीमुक्त

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*दिनांक -- 15/04/2024*

*दिन -- सोमवार*

*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*यति - 10,8,14*

*परिचय-- लाक्षणिक 32 मात्रा*

 *वर्ग भेद -- (35,24,578)*

*पदांत--  दो गुरु आवश्यक*

*सृजन शब्द--जगदंबे सदन पधारो*

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नव ज्योति जलाऊँ, द्वार सजाऊँ, जगदंबे सदन पधारो।

गाऊँ जगराता, नौ दिन माता, ममता का हाथ पसारो।।

माँ नैन निहारो, कृपा विचारो, कर विघ्न हरण सुख देना।

शुभ भक्ति जगाओ, ज्ञान बताओ, भक्तों का नित सुध लेना।।


कर कष्ट निवारण, दो सुख धारण, भव संकट पाप उबारो।

खाऊँ मत भटका, मन में खटका, भ्रम मैं का दोष उतारो।।

जन्मों का नाता, तू है माता, मैं तेरा पुत्र कहाऊँ।

लो थाम मुझे माँ, छोड़ तुझे माँ, जीवन में चैन न पाऊँ।।


है दिव्य सिंहासन, माँ का आसन, चरणों में माथ झुकाऊँ।

इज्जत दे नारी, बन संस्कारी, बेटे का कर्ज चुकाऊँ।।

है सबसे प्यारा, देश हमारा, नित इसका मान बढ़ाऊँ।

माँ त्याग अहम को, लोभ वहम को, मानवता पाठ पढ़ाऊँ।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 15/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- माया में भूला*

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माया में भूला, भ्रम में झूला, दास अहम का मत होना।

कर याद जमाना, फिर पछताना, व्यर्थ मनुज छोड़ो रोना।।

नित मीठा बोलो, हिय पट खोलो, वाणी सम्मान दिलाता।

कर कर्म सुशासित, बोल सुभाषित, शिक्षा व्यवहार मिलाता।।


मन से मत हारो, नेक विचारो, सोच सदा रखना आगे।

रख अटल इरादा, कर दृढ़ वादा, हार उठा दुम तब भागे।।

मानों श्रम पूजा, और न दूजा, हँसी खुशी तुमको देगा।

ताकत बाहों का, दुख राहों का, जोर लगाकर हर लेगा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 16/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- सुंदर काया*

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तुमने जो पाया, सुंदर काया, छोड़ो इस पर इतराना।

कुछ काम न आया, धन पद माया, छोड़ यही पर है जाना।।

नित नेकी कर लो, खुशियाँ भर लो, हाथ बढ़ा परहित सेवा।

सुख कौर खिलाओ, मत तरसाओ, मातु पिता जग में देवा।।


प्यासे को पानी, मीठ जुबानी, साथ रखे चल सच्चाई।

मन कुंठा छाँटो, द्वेष न बाँटो, मत खोदो दुख की खाई।।

प्रभु का गुण गाओ, विघ्न हटाओ, भव सागर पार लगाना।

रख प्रेम निगाहें, चलना राहें, नाम अमर जग कर जाना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 16/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- दीप जलाओ*

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अब हर्ष मनाओ, दीप जलाओ, पर्व रामनवमीं आया।

बन पालनहारी, प्रभु अवतारी, सबके मन को हर्षाया।।

वन पात कली में, द्वार गली में, गाँव शहर खुशियाँ छाई।

सब झूम रहे हैं, बाँह गहे हैं, देते आनंद बधाई।।


प्रभु धाम सजाओ, ढोल बजाओ, आज मनाओ दीवाली।

शुभ अवधपुरी है, धर्म धुरी है, बनें धर्म का हम माली।।

मन भक्ति भरो अब, गर्व करो सब, हम सब हिन्दू कहलायें।

संस्कारित पावन, अति मनभावन, यह भारत भूमि बनायें।।


है धर्म सनातन, वेद पुरातन, सब इसकी महिमा गायें।

रख भाईचारा, जग में न्यारा, राम राज्य भारत लायें।।

पूजा दीक्षा का, जब शिक्षा का, सबको अधिकार मिलेगा।

कटुता न कभी हो, एक सभी हो, तब समता फूल खिलेगा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 17/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- मंगल गाओ*

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शुभ पर्व मनाओ, मंगल गाओ, आये प्रभु राम हमारे।

दशरथ के नन्दन, रघुपति वंदन, जग-जन के आप दुलारे।।

उर मन में रहते, घट-घट बसते, कण-कण में वास तुम्हारा।

करते हैं आदर, जीव चराचर, कर दो प्रभु नाव किनारा।।


जग पालनहारी, मंगलकारी, दुखियों के हैं रखवाले।

प्रभु आन बिराजे, शुभ सुख साजे, पथ से विपदा को टाले।।

सब खुशी मनाते, मंगल गाते, प्रभु की करते जयकारा।

गुणगान करें सब, मग्न हुए अब, पर्व रामनवमीं प्यारा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 17/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- तुम कब आओगे*

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तुम कब आओगे, मिल पाओगे, बस लगता है सपनों में।

तुम ही हो धड़कन, मेरी तड़पन, माना तुमको अपनों में।।

बन प्रेम पुजारी, सब कुछ वारी, तुझ पर होकर बलिहारी।

हूँ सब कुछ भूला, मन में झूला, बाँध रखा हूँ मैं यारी।।


सपनों की रानी, हो मस्तानी, रूप सलोना मन भाया।

कोयल सी बोली, हँसी ठिठोली, इस दिल पर तीर चलाया।।

कुंतल की छाया, जब से पाया, तब से हूँ मैं दीवाना।

बाहें लग जाओ, पास बुलाओ, छोड़ो प्रियवर तड़पाना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 18/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- माँ की लोरी*

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ममता की डोरी, माँ की लोरी, बाँध रखे मन काया को।

विपदा हर लेती, सुख यश देती, आँचल शीतल छाया को।।

सब जीव चराचर, माँ का आदर, करते दिल गहराई से।

शुभ राह दिखाते, सीख सिखाते, माँ हमकों सच्चाई से।।


माँ प्रेम समर्पित, करके अर्पित, हुए पुत्र पर बलिहारी।

हो पुलकित माँ तन, मुदित हुए मन, भरे पुत्र जब किलकारी।।

जब देख न पाती, माँ घबराती, रखे बसाये नजरों में।।

नयनों के तारा, राज दुलारा, बेटे माँ की अधरों में।।


मुख मोड़ गई माँ, छोड़ गई माँ, पल-पल याद सताती है।

ममता की गोदी, मैंने खो दी, नींद नहीं अब आती है।।

परलोक सिधारे, पिता हमारे, प्रभु दुख दिन क्यों लाते हो।

है मृत्यु अटल पर, नैन पटल पर, क्यों तस्वीर बसाते हो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- दिल बेचारा*

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है गम का मारा, दिल बेचारा, नाम तुम्हारा लेता है।

बन गैर अमानत, रहो सलामत, सदा दुआयें देता है।।

सब सपने तेरे, साथी मेरे, अपना मैनें माना है।

है प्यार इबादत, मेरी चाहत, रूप खुदा का जाना है।।


तुम प्रीत निभाना, छोड़ न जाना, रहना मेरे सपनों में।

तुम दिल की धड़कन, मेरी तड़पन, माना तुझको अपनों में।।

तुमसे ही आसें, चलती सांसे, माना तुमको है पूजा।

प्राणों से प्यारे, जान हमारे, और नहीं कोई दूजा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- बहती धारा*

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कर नाव किनारा, बहती धारा, सोच यही रख चलना है।

सब सबक सिखाता, समय बताता, किस पथ कैसे ढलना है।।

सब साथी सुख में, साथ न दुख में, लोग यहाँ पर देते हैं।

रिश्तें मतलब का, लगते अब का, साँस हरण कर लेते हैं।।


पग-पग में धोखा, कष्ट झरोखा, शूल बिछा है राहों में।

अब प्रीत पराई, शक की खाई, दिखते लोभ निगाहों में।।

है सब कुछ पैसा, युग यह ऐसा, देखो कैसा आया है।

भाई से भाई, करे लड़ाई, घर-घर मातम छाया है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- चल आज मुसाफिर*

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चल आज मुसाफिर, सुख हित खातिर, पाँव उठा बढ़ना आगे।

खुद कर्म लगन से, ईश भजन से, दूर आपदा दुख भागे।।

यश छाँव मिलेगा, फूल खिलेगा, गुलशन और बहारों में।

तम त्याग बुराई, सोच भलाई, रखना प्रेम नजारों में।।


मन भ्रम मत पालो, प्रभु गुण गा लो, लौट नहीं कल आयेगा।

मिट्टी यह काया, धन पद माया, मिट्टी में मिल जायेगा।।

खुद का क्या खोया, क्यों तू रोया, साथ न कुछ ले जाना है।

छोड़ो पछताना, अश्रु बहाना, दो गज मिट्टी पाना है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/04/2024










मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

रुचिरा सममात्रिक छंद- आधार छंद

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*दिनांक -- 08/04/2024*

*दिन -- सोमवार*

*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*यति -14,16*

*परिचय-- महातैथिक 30 मात्रा

 *वर्ग भेद -- (13,46, 269)*

*पदांत-- एक गुरु आवश्यक*

*सृजन शब्द-- अब सिंहासन डोल रहा*

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अब सिंहासन डोल रहा, चमचों की नव चमचाई से।

गिर रही देश की हालत, सोचो दिल की गहराई से।।

अंधभक्ति की लगन लगी है, दूर सभी हैं सच्चाई से।

देश सुरक्षित कैसे हो, गद्दारों की परछाई से।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 08/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- बहकावे में मत आना*

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बहकावे में मत आना, सोच समझकर कदम बढ़ाना।

शूल बिछे मत राहों में, सदा शांति का पाठ पढ़ाना।।

द्वेष भावना को छोड़ो, आपस का तकरार हटाओ।

दूत प्रेम का बन जीना, इस जीवन से घृणा घटाओ।।


जाति-पाति के बंधन में, नहीं जकड़कर जीवन जीना।

मानवता धर्म बनाओ, सीखो दुख को हँसकर पीना।।

सभी जन्म से एक यहाँ, फिर किसने क्यों भेद किया है।

आग हवा नभ नीर धरा, सेवा एक समान दिया है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 09/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द--   कृपा करो माता रानी*

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कृपा करो माता रानी, द्वार आपके मैं आया हूँ।

भाव भक्ति को साथ लिए, चरणों में माथ झुकाया हूँ।।

दीन गरीब पुकारे माँ, शुभ सबका भाग्य बनाते हो।

अपने भक्त जनों पर नित, माँ दया प्रेम बरसाते हो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 09/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- श्री सुख समृद्धि का वर दे*

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श्री सुख समृद्धि का वर दे, हे माता रानी जगदम्बे।

कष्ट निवारण आप करो, मातु भवानी शारद अम्बे।।

करूँ जोड़ कर विनती माँ, ज्ञान पुंज की ज्योति जला दो।

लिखूँ आपकी महिमा को, ऐसी मुझको कलम कला दो।।


मत कभी निराश रहूँ मैं, पास रखो चरणों में अपने।

मन मंदिर में वास करो, पूर्ण करो माँ मेरे सपने।।

भक्ति भाव उर साज लिए, जगराता माता मैं गाऊँ।

धन्य करो इस जीवन को, सहज सरल दर्शन को पाऊँ।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 10/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द- *माता का जगराता कर लें* 

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चैत्र मास मनभावन है, माता का जगराता कर लें।

ज्योति जलायें श्रद्धा की, भक्ति भाव हम उर में भर लें।।

आये माँ नौ रूप लिए, नौ दिन पर्व सुहावन करने।

गजानंद गुणगान करे, भवसागर से खुद को तरने।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 10/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- पूर्ण साधना का पथ दो*

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पूर्ण साधना का पथ दो, गुरु उर में ज्ञान प्रकाश भरो।

राह दिखाओ सत्य सदा, गुरु मन का दूर विकार करो।।

बनकर मैं गुरु अनुगामी, सच का नित्य प्रचार करूँ।

ढोंग रूढ़ि पाखंड मिटे, शब्दों से कलम प्रहार करूँ।।


कहाँ फिरोगे दर-दर तुम, मन मंदिर देव बसा लेना।

देव असल है मातु पिता, कर सेवा भक्ति लुटा देना।। 

तथाकथित का त्याग करो, छोड़ो अंधभक्ति में जीना।

गजानंद सच कहता है, तब नहीं पड़ेगा गम पीना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 11/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- करूँ आरती नित्य तुम्हारी*

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भक्ति भाव की थाल सजा, करूँ आरती नित्य तुम्हारी।

दास बना हूँ द्वार खड़ा, करो कृपा माँ मंगलकारी।।

श्रद्धा फूल चढ़ाऊँ मैं, चरणों में माँ स्वीकार करो।

लोभ अहं से दूर रखो, नित त्याग प्रेम की भाव भरो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 11/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- पग पग पर पीड़ा देते हो*

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दीन गरीब पड़ा हूँ माँ, क्यों रोज परीक्षा लेते हो।

भूल हुई है क्या मुझसे, पग-पग पर पीड़ा देते हो।।

बिखर गया अपनों से ही, अपनों ने मुझको छोड़ दिए।

लोग जुड़े थे स्वार्थ लिए, सब दुख में नाता तोड़ दिए।।


सुन लो पुकार मेरी माँ, खुशियों की झोली भर देना।

परहित सेवा पाँव उठे, नित ऐसा मुझको वर देना।।

लोग पराये हो जाये, पर मुझे पराये मत करना।

रखूँ सभी को जोड़ सदा, माँ कृपा शक्ति मुझमें भरना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 12/04/2024


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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- भाव भजन अर्पित है तुमको*

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मन में ज्योति जला श्रद्धा, भाव भजन अर्पित है तुमको।

शरण पड़ा हूँ भक्त बने, माँ भव से पार लगा मुझको।।

विघ्न हरण करना माँ नित, दूर रखो दुख परछाई से। 

करना शांति प्रदान सदा, मन को भरना सच्चाई से।।


दयावान सागर करुणा, प्रतिमूर्ति हो माँ ममता की।

कभी परीक्षा मत लेना, दुख सहनशीलता क्षमता की।।

जन्म- जन्म का हो नाता, माँ मुझको बेटा कह देना।

भक्ति भजन में भूल हुई, तो पुत्र समझ माँ सह लेना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 12/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द--  बदल गये सब चलते- चलते*

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जो लोग करीब रहे वो, बदल गये सब चलते-चलते।

पड़ा रहा मैं स्तब्ध हुए, हाथ दुखी से मलते-मलते।।

मिला सबक अपनों से ही, किसे पराया अपना मानें।

स्वार्थ लिए हैं लोग खड़े, किसको कैसे हम पहचानें।।


धोखा इस कदर बढ़ा है, भाई ही भाई को देते।

लोग मतलबी आज हुए, बाँट पिता माता को लेते।।

गायब है सुख परछाईं, दुख ही दुख हर कोने में।

खुद ही जिम्मेदार सभी, रिश्ते- नाते को खोने में।।


समय किसी के पास नहीं, सुख-दुख में शामिल होने को।

नही मिलेगा सुन साथी, अब बाँह लिपटकर रोने को।।

दो गज बस कफ़न मिलेगा, सब धरा-धरा रह जायेगा।

गजानंद कर लो नेकी, कर याद समय पछतायेगा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 13/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द--  आज मिला आशीष तुम्हारा*

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तुम्हें पुकारूँ कर दो माँ, इस जीवन का नाव किनारा।

बसा लिया मन मंदिर में, आज मिला आशीष तुम्हारा।।

तमस मिटा काटो तम को, मन में भरना ज्ञान पिपासा।

भटक कहीं मत जाऊँ माँ, मुझको देना धीर दिलासा।।


विंध्यवासनी जगदम्बे, है माँ रूप अनेको तेरे।

छाँव कृपा हर पल देना, संकट मुझे कभी मत घेरे।।

नित्य आपसे चाह रखूँ, माँ प्रथम भक्त में हो गिनती।

कभी न टूटे उम्मीदें, सुन लो गजानंद की विनती।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 13/04/2024







गीतिका छंद (हिंदी)- सममात्रिक

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*दिनांक -- 02/04/2024*

*दिन --मंगलवार*

*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*यति -14,12*

*परिचय-- अवतारी 26 मात्रा -वर्ग भेद (196,418)*

मापनी:-2122- 2122, 2122- 212

*पदांत-- 12*

*सृजन शब्द-- प्रात की बेला सुहानी*

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प्रात की बेला सुहानी, आप से मुझको मिला।

इस हृदय के ताल में प्रभु, फूल खुशियों का खिला।।

आप ही करतार मेरे, आप ही भगवान हो।

बस यही चाहत रखूँ मैं, हर घड़ी प्रभु ध्यान हो।।


शक्ति दो दुख सह सकूँ प्रभु, थाम लेना हाथ को।

पाँव सच पथ में बढ़े नित, छोड़ना मत साथ को।।

माँ पिता अब आप मेरे, ज्ञात हो प्रभु आपको।

टूट जाऊँ मत कभी मैं, देख जग संताप को।।


हूँ पुजारी कर्म का मैं, सत्य की प्रतिक्रांति हूँ।

झूठ प्रति अंगार हूँ मैं, दूत मैं सुख-शांति हूँ।।

भिज्ञ हूँ दुख मर्म से मैं, हो निवारण कष्ट का।

इसलिए तो हूँ खड़ा मैं, द्वार अपने इष्ट का।।

*---इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 02/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- शब्द की जादूगरी है*

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शब्द की जादूगरी है, शब्द से मन बाँधना।

शब्द मर्यादा सिखाती, भूलकर मत लाँघना।।

शब्द उठती है हृदय से, भाव के झंकार से।

हैं अधूरे लोग वे जो, हो न प्रेरित प्यार से।।


जन्म माता ने दिया तो, शब्द सीखा बाप से।

सीख शुभ संस्कार सीखा, शब्द मैनें आप से।।

शब्द सागर ज्ञान का है, शब्द है सच शोध का।

शब्द है आवाज दिल की, शब्द है नवबोध का।।


शब्द को पूजा बनाओ, शब्द में प्रभु वास है।

नित्य कष्टों में घिरा वह, शब्द मैं जो दास है।।

शब्द से ही मान सबका, शब्द ही पहचान है।

शब्द दे सन्देश सबको, ग्रंथ गीता ज्ञान है।।

---इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 03/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- परवरिश कैसे करूँ*

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सोचता मजदूर कैसे, पेट बच्चों का भरूँ।

क्या कमाऊँ क्या खिलाऊँ, परवरिश कैसे करूँ।।

शांति सुख से दूर हूँ मैं, दूर इस परदेश में।

था बहुत खुशहाल मैं भी, गाँव की परिवेश में।।


अजनबी मैं इस शहर में, दर्द का मारा फिरा।

बेबसी लाचार मन में, माथ चिंता से घिरा।।

काल महँगाई खड़ा है, दूत बनकर सामने।

है मसीहा कौन अब जो, पास आये थामने।।


योजना सरकार की सब, कागजों तक ही मिला।

बांट नेता खा गए हक, युग-युगों का सिलसिला।।

मान पाये दाम पाये, पूज्य श्रम को हो नमन।

मिल कदम आगे बढें हम, रोकने शोषण दमन।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 03/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- साथ तेरा जो मिले*

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मान लूँ मैं धन्य खुद को, साथ तेरा जो मिले।

दो मिटा शिकवे गिले सब, प्रीत का द्रुमदल खिले।।

आपसे चाहत भरी है, इस अधूरी रंग में।

छोड़ना मत साथ साथी, जिंदगी की जंग में।।


साथ देना हर घड़ी तुम, कामना करता रहूँ।

प्रेम में दुख इस तरह मैं, कब तलक सहता रहूँ।।

प्यार की लगती लगन जब, हूक उठती तब सनम।

आपको पाने प्रिये मैं, जी रहा हूँ सौ जनम।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 03/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- विश्व का कल्याण हो*

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कामना करता रहूँ मैं, विश्व का कल्याण हो।

रक्त तन-मन साँस मेरी, देश हित निर्वाण हो।।

जन्म पाया इस धरा में, धन्य किस्मत को कहूँ।

लाल भारत का कहाऊँ, गोद में इसके रहूँ।।


है तिरंगा शान मेरी, आन भी सम्मान भी।

गीत जन गण मन हमारा, एकता पहचान भी।।

बोल वंदेमातरम का, गूँजता जयकार है।

है हिमालय बन खड़ा नित, देश पहरेदार है।।


सिर सिंहासन से सजा है, गर्व भारत देश का।

हर तरफ तारीफ फैला, स्वच्छ शुभ परिवेश का।।

है भरा संस्कार सब में, प्रेम है विश्वास है।

राह उन्नति का बढ़ें सब, शांति सुख उल्लास है।।

🖊️ इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 04/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- भाव श्रद्धा भक्ति अर्पित*

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भाव श्रद्धा भक्ति अर्पित, आपको गुरुवर करूँ।

आपकी पाकर कृपा मैं, ज्ञान का सागर भरूँ।।

कामना गुरु भावना का, ज्योति मन जलती रहे।

आपके सतद्वार में गुरु, कष्ट भक्तन मत सहे।।


है अटल विश्वास गुरुवर, इस हृदय के भाव में।

प्रेम का मरहम लगाना, भक्त के दुख-घाव में।।

हो निवारण कष्ट का गुरु, शांति -सुख का पथ मिले।

जिंदगी में हो खुशी पल, फूल अधरों पर खिले।।


बुद्धि में गुरु शुद्धि भरना, दूर रखना क्लेश से।

हो कभी मत सामना छल, द्वेष की परिवेश से।।

हो विचारों में नयापन, स्वच्छ मन काया रहे।

त्याग कटुता मीठ बोलें, बोल में गंगा बहे।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द--प्रेम धन अनमोल प्यारे*

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प्रेम धन अनमोल प्यारे, कर जतन इसकी कदर।

प्रेम पाया जो नहीं वो, घूमते हैं दर-बदर।।

प्रेम परिभाषा समझना, हर किसी का वश नहीं।

जब खिले मन में बहारें, प्रेम का गुलशन वहीं।।


दो दिलों के मेल को ही, प्रेम कहते हैं यहाँ।

प्रेम से बढ़कर बताओ, है लगन किसमें कहाँ।।

प्रेम से परिवार घर है, प्रेम से संसार है।

प्रेम ही सुख नाव जग में, प्रेम ही पतवार है।।


बांटने से प्रेम बढ़ता, रीत है यह धर्म है।

दूसरें का दर्द समझे, प्रेम में ही मर्म है।।

प्रेम प्रभु का रूप जानें, प्रेम ही भगवान है।

प्रेम जिसके दिल समाहित, बस वही इंसान है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- चैत्र का शुभ मास है*

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आ गई नवरात्रि पावन, चैत्र का शुभ मास है।

ज्योति जगमग जल रही है, हर तरफ उल्लास है।।

भक्तिमय दरबार माँ का, शुभ कलश शुभ धाम है।

भक्त आते भक्ति गाते, पूज्य माँ का नाम है।।


रूप नौ माता लिए हैं, नष्ट करने पाप को।

विघ्न हरते हैं सदा माँ, भक्त के संताप को।।

माँ जगत जननी तुम्हें सब, बोलते हैं प्रेम से।

हैं झुकाते शीश नित ही, भक्ति में सब नेम से।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 06/04/2024








रोला छंद (हिंदी)- सममात्रिक

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*दिनांक -- 27/03/2024*

*दिन --बुधवार*

*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*

*यति -11,13*

*लक्षण- मापनी मुक्त*

*परिचय-- अवतारी 24 मात्रा -वर्ग भेद (75025)*

*पदांत-- 22/111/112*

*सृजन शब्द-- *निराला*

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छंद निराला श्रेष्ठ, लिखें हम मिलकर आओ।

रखे गेयता ध्यान, विधा में रोला गाओ।।

चार पंक्ति का छंद, आठ चरणें है होती।

उत्तम रखें तुकांत, झरे शब्दों में मोती।।


ग्यारह मात्रा खास, विषम चरणों में होती।

तेरह मात्रा भार, यहाँ सम चरण सँजोती।।

रोला छंद विशेष, मधुरमय इसकी तानें।

गजानंद इस राग, ताल पर गाते गानें।।


विषम चरण दो एक, अंत अनिवार्य यहाँ है।

जगण तगण शुरुआत, कभी स्वीकार्य कहाँ है।।

सम चरणें प्रारंभ, त्रिकल शब्दों से करना।

हो न गेयता भंग, ध्यान इस पर तुम रखना।।

---इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 27/03/2024

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*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द--- बहारें*

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लेकर साथ उमंग, बहारें झूम रही है।

गीत कोयली छेड़, दिलों की बात कही है।।

आया ऋतु मधुमास, बदन में आग लगाने।

विरह लिए दिन-रात, पिया की याद दिलाने।।


लाली रंग पलास, लुभाये सबके मन को।

बौराया है आम, सुशोभित कर उपवन को।।

रंग बिरंगे फूल, खिले हैं बाग सजाने।

आया माह बसन्त, दिलों में प्रेम जगाने।।


धरा किये श्रृंगार, चुनर ओढ़े हरियाली।

डाल-डाल हर पात, खुशी में देते ताली।।

वन में तेंदू चार, पके हैं मीठ रसीले।

गजानंद उत्साह, मनाते वन्य कबीले।।

---- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 27/03/2024

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*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*

सृजन शब्द- *चलो चलें अब गाँव*

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अमराई की छाँव, पुकारे नदी किनारे।

पीपल बरगद पेड़, गाँव के मित्र हमारे।।

खेत-खार खलिहान, लगे हैं बड़ा सुहावन।

चलो चलें अब गाँव, जहाँ की मिट्टी पावन।।


गाँव सिसकती आज, पड़ा कोनें में रोते।

मुझे दिलाने मान, पास सब अपने होते।।

पढ़े लिखे इंसान, नौकरी की चाहत में।

दूर बसे परदेश, छोड़ मुझको आहत में।।


सूनी है चौपाल, अदालत डाका डाला।

अपनों में बिखराव, लगा रिश्तों में ताला।।

करें पुनः गुलजार, प्रेम की बगिया आओ।

लौट शहर से गाँव, मीत मन गाना गाओ।।

--- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/03/2024

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*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*

सृजन शब्द-- उजाला

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द्वेष द्वंद को त्याग, करो नित प्रेम उजाला।

जीत सदा हो सत्य, झूठ का हो मुँह काला।।

कर्म धर्म का मर्म, बताना गुरुवर मुझको।

इस जीवन का नाव, बनाया हूँ मैं तुझको।।


नेक भलाई राह, नित्य पग बढ़ते जाये।

अहंकार की सोच, कभी भी पास न आये।।

परहित सेवा भाव, ध्येय हो इस जीवन का।

गुरुवर दूर विकार, करो इस अंतर्मन का।।


पाकर छंद विधान, लिखूँ मैं सुंदर रोला।

चढ़े सुशोभित शीर्ष, कलम शब्दों का डोला।।

मिले कृपा गुरु छाँव, शरण में आज पड़ा हूँ।

देना आशीर्वाद, दीन बन द्वार खड़ा हूँ।।

---इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/03/2024

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*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- परम प्रेम उपहार*

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होना नहीं उदास, कभी भी तुम जीवन में।

परम प्रेम उपहार, सजाये रखना मन में।।

बनना सबका मीत, बांटना सबको सुख पल।

बातें भुला भविष्य, आज में जी ले तू कल।।


सेवा कर निःस्वार्थ, दीन दुखियों का जग में।

शूल बिछाना छोड़, फूल रखना हर पग में।।

प्रीत पीर पर ध्यान, हमेशा रखकर चलना।

दिशा दशा अनुरूप, समय साँचे में ढलना।।


संत गुणी विद्वान, जनों का संगत करना।

दिव्य अलौकिक ज्ञान, हृदय पट अपने भरना।।

ढोंग रूढ़ि पाखण्ड, बचाये खुद को रखना।

गजानंद श्रम श्रेष्ठ, सुखद फल तुम नित चखना।।

*--- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 29/03/2024






बुधवार, 20 मार्च 2024

रास छंद- सममात्रिक

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      🌀 *बिलासा छंद महालय* 🐚 

*दिनांक -- 18/03/2024*

*दिन -- सोमवार*

*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*लक्षण- मापनी मुक्त*

*परिचय-- महारौद्र वर्ग भेद (28,657)*

*यति -- 8,8,6*

*पदांत-- IIS (सगण)*

*सृजन शब्द-- *लट बलखाती*

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लट बलखाती, कमर हिलाती, राह चले।

अधर गुलाबी, नैन शराबी, शाम ढले।।

दीवानी बन, चलती बन-ठन, गाँव गली।

जब मुस्काये, तीर चलाये, प्रेम कली।।


चाँद चकोरी, लगती गोरी, रूप सजे।

छम-छम पायल, करती घायल, पाँव बजे।।

छैल छबीली, उसकी बोली, प्रीत भरे।

रूप निखरती, जब वो हँसती, फूल झरे।।


देखा जब से, कायल तब से, यार हुआ।

तूने मन को, इस जीवन को, रोज छुआ।।

चाह अधूरी, कर दो पूरी, है सपना।

मन में ठाना, तुझको माना, प्रिय अपना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 18/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *दर्शन पाऊँ*

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दर्शन पाऊँ, शीश झुकाऊँ, भाव भरो।

सतगुरु ज्ञानी, हो वरदानी, कष्ट हरो।।

शब्द सुझाओ, ज्ञान बताओ, ध्यान धरूँ।

छंद सृजन हो, पुलकित मन हो, आस भरूँ।।


शरण पड़ा हूँ, द्वार खड़ा हूँ, गुरु वर दो

मैं अज्ञानी, हूँ नादानी, कृत कर दो।।

है अभिलाषा, ज्ञान पिपासा, गुरुवर से।

मिटे निराशा, भरो दिलासा, गुण बरसे।।


कलम उदित हो, मीत मुदित हो, चाह यही।

पाँव बढ़े सच, ईर्ष्या से बच, सोच सही।।

नष्ट अहं का, क्रोध वहम का, गुरु करना।

दीन-दुखी जन, सेवा ही धन, गुण भरना।।


🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- दर्शन पाऊँ*

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दर्शन पाऊँ, शीश झुकाऊँ, भाव भरो।

मातु भवानी, हो वरदानी, कष्ट हरो।।

शब्द सुझाओ, ज्ञान बताओ, ध्यान धरूँ।

छंद सृजन हो, पुलकित मन हो, आस भरूँ।।


शरण पड़ा हूँ, द्वार खड़ा हूँ, माँ वर दो

हूँ अज्ञानी, माता रानी, कृत कर दो।।

है अभिलाषा, ज्ञान पिपासा, गुरुवर से।

छंद बिलासा, भरे दिलासा, गुण बरसे।।


कलम उदित हो, मीत मुदित हो, चाह यही।

पाँव बढ़े सच, ईर्ष्या से बच, सोच सही।।

नष्ट अहं का, क्रोध वहम का, माँ करना।

दीन-दुखी जन, सेवा ही धन, गुण भरना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *जग कल्याणी*

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जग कल्याणी, वीणापाणी, ज्ञान भरो।

शब्द भाव का, नेह नाव का, दान करो।।

राग ताल दो, भक्ति भाल दो, प्रेम सुधा।

लोभ घटे माँ, फाँस कटे माँ, प्यास क्षुधा।।


कमल विराजे, शोभा साजे, दीप्ति लिये।

सबके मन को, जन जीवन को, तृप्ति किये।।

मैं अनुरागी, दुख का भागी, दीन पड़ा।

कृपा करो माँ, ध्यान धरो माँ, द्वार खड़ा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *बिटिया बोली*

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बिटिया बोली, बन रंगोली, रंग भरूँ।

द्वार सजाऊँ, घर महकाऊँ, नाम करूँ।।

धर्म रीति का, नीति प्रीति का, पाठ पढूँ।

नित वैज्ञानिक, संवैधानिक, राह बढूँ।।


तोड़ निराशा, ज्ञान पिपासा, चाह रखूँ।

छोड़ कपट छल, सत्य कर्म फल, नित्य चखूँ।।

स्वाभिमान का, स्वयं आन का, ढाल बनूँ।

मातु पिता का, नवोदिता का, भाल बनूँ।।


बेटी से कल, देती सुख पल, मान करो।

छुए ऊँचाई, बढ़े बड़ाई, भान भरो।।

गजानंद को, रास छंद को, गर्व रहे।

हर इक बेटी, सुख की पेटी, लोग कहे।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

सृजन शब्द- विश्व विधाता

"""""""*""""'''"*""""""""*""""''''''*""''''''"

विश्व विधाता, जन्म प्रदाता, ध्यान धरो।

शरण पड़ा हूँ, द्वार खड़ा हूँ, कष्ट हरो।।

निर्झर काया, मोह समाया, लोभ भरा।

दूर करो दुख, भर दो जग सुख, धन्य धरा।।


दर-दर भटका, गुरु बिन अटका, पथ न मिला।

बाग अचेतन, नीर न वेदन, फूल खिला।।

भक्ति मंद का, द्वेष द्वंद का, नाश करो।

मंगल सबका, सुख हर तबका आस भरो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द- रंग लगाओ*

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रंग लगाओ, खुशी मनाओ, चाह भरो।

गले लगाओ, बैर भुलाओ, प्रेम करो।।

खेलो होली, मिल हमजोली, गाँव गली।

इतराये हैं, मुस्काये हैं, फूल कली।।


कर तैयारी, ले पिचकारी, लोग चले।

हो बेताबी, गाल गुलाबी, रंग मले।

ऐ-दीवानों, बुरा न मानों, हाथ बढ़ा।

सराररा का, परम्परा का, रंग गढ़ा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 21/03/24

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *दीप जलाओ*

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दीप जलाओ, खुशी मनाओ, भान भरो

झूम उठो सब, खुशियाँ ले अब, गान करो।।

राम हमारे, द्वार पधारे, मान करो।

कर लो दर्शन, अर्पण कर मन, ध्यान धरो।।


अवधपुरी में, धर्म धुरी में, दीप जला।

पुलकित हैं सब, बोले सब अब, कष्ट टला।।

है दीवाली, की खुशहाली, झूम कहो।

हृदय हमारे, प्रभु जी प्यारे, आप रहो।।


भक्त पुकारे, राह निहारे, द्वार खड़े।

कृपा करो प्रभु, कष्ट हरो प्रभु, नैन पड़े।।

राह दिखाओ, ज्ञान लखाओ, है विनती।

इस दुनिया में, लो दुखिया में, कर गिनती।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 22/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *छोड़ बहकना*

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छोड़ बहकना, राह भटकना, ध्यान धरो।

धन्य धाम का, राम नाम का, जाप करो।।

सुख के दाता, भाग्य विधाता, सब कहते।

दया दृष्टि से, शांति वृष्टि से, सुख भरते।।


पालनकर्ता, प्रभु दुखहर्ता, नाम पड़ा।

भक्त तुम्हारे, कृपा निहारे, द्वार खड़ा।।

हमें उबारो, पार लगाओ, बैतरणी।

भटक रहा हूँ, विघ्न सहा हूँ, सुख धरणी।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 22/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक

*सृजन शब्द-- *चहके चिड़िया*

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चहके चिड़िया, उड़-उड़ बिड़िया, खेल करे।

चीं-चीं बोले, हिय पट खोले, भाव भरे।।

पंख पसारे, नीड़ निहारे, राह तके।

शाम ढले जब, लौटे घर तब, पंख थके।।


गरमी आई, प्यास बढ़ाई, भूख बढ़े।

दाना-पानी, रखना छानी, धूप चढ़े।।

फुदक-फुदक घर, उदक-उदक कर, अन्न चुगे।

पेट पले कह, उड़े चले वह, भोर उगे।।


गाँव-गली भी, फूल-कली भी, मौन हुए।

पेड़ कटे हैं, छाँव घटे हैं, स्वार्थ छुए।।

इसीलिए तो, दूर किये तो, घर अपना।

छाँव दिलाओ, नीड़ बचाओ, खग सपना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 23/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *रास रचाये*

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रास रचाये, मन हरसाये, नंद लला।

धीरे-धीरे, यमुना तीरे, कृष्ण चला।।

मदन मुरारी, हो बलिहारी, ग्वाल सखे।

खोवा-खाई, दूध मलाई, साथ चखे।।


वृंदावन में, राधा मन में, प्रीत भरा।

गोकुल पावन, अति मनभावन, धन्य धरा।।

मित्र सुदामा, तन-मन श्यामा, के रहते।

सुख में दुख में, सम सम्मुख में, सब सहते।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 23/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *फागुन बीता *

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फागुन बीता, मन को जीता, रंग लिए।

सुख उत्सव का, दिन अनुभव का, संग दिए।।

इस होली में, हमजोली में, रंग उड़ा।

गले मिले सब, स्नेह मिला तब, मीत जुड़ा।।


मस्ती फागुन, फगुआ की धुन, याद रहे।

फिर से आना, धूम मचाना, लोग कहे।।

अति मनभावन, होली पावन, पर्व हुआ।

अंतर्मन को, इस जीवन को, रंग छुआ।।


🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 26/03/2024










मंगलवार, 12 मार्च 2024

पीयूष वर्ष/आनंदवर्धक सममात्रिक छंद

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*दिनांक -- 11/03/2024*

*दिन -- सोमवार*

*आधार छंद--  पीयूष वर्ष/ आनंदवर्धक सममात्रिक*

*परिचय-- महा पौराणिक वर्ग भेद (6765)*

*मापनी -S|SS-SISS-S|S*

*पदांत-- |S, |||*

*सृजन शब्द-- मुस्कुराते आ रहे वो सामने (3 युग्म)*

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मुस्कुराते आ रहे वो सामने।

साथ चलने हाथ मेरा थामने।।

बावरा बन ख्याल में खोया रहा।

प्रीत पीड़ा रात दिन मैं तो सहा।।


है पराया कौन किसका मीत है।

दर्द अपनों से मिला जग रीत है।।

पूछते हैं लोग दुख में अब कहाँ।

बन गए सब मतलबी रिश्तें यहॉं।।


शूल बनकर चुभ रहा अब फूल है।

दिल लगाना आशिकी में भूल है।।

तोड़ना मत दिल खिलौना जानकर।

पूज लो प्रिय प्यार को प्रभु मानकर।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 11/03/2024

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*आधार छंद--  पीयूष वर्ष/ आनंदवर्धक सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- भूल क्या हमसे हुई है ये बता (3 युग्म)*

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भूल हमसे क्या हुई है ये बता।

प्यार तुमसे जो नहीं पाया जता।।

दे रही हो क्यों सजा तुम इस कदर।

मत चुराओ आज प्रिय हमसे नजर।।


प्रेम प्यासा राह परवाना बना।

है विरोधी कोहरा पथ में घना।।

उड़ रहा पंछी बने आकाश में।

आ चले आओ सनम तुम पास में।।


प्यार का कर दूँ झड़ी पल-पल घड़ी।

क्यों सनम जिद पर अभी तक हो अड़ी।।

हूँ दिवाना आपका पहचान लो।

प्रेम में क्या प्रेम है तुम जान लो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 11/03/2024

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*आधार छंद--  पीयूष वर्ष/ आनंदवर्धक सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- मुस्कुराने का बहाना चाहिए।(3 युग्म)*

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मुस्कुराने का बहाना चाहिए।

प्रीत का हर पल तराना चाहिए।।

बांट लो तुम ज़िन्दगी में सुख सभी।

भूल से करना शिकायत मत कभी।।


फूल खुशियों के खिले कर कामना।

दीन-दुखियों को उठाना थामना।।

पग बढ़ाना जानने पर पीर को।

नैन से बहने न दें सुख नीर को।।


रख भरोसा आत्म पर कर श्रम सदा।

कर्ज गुरु माता-पिता का कर अदा।।

प्रार्थना प्रभु का करें उपकार लें।

कर कृपा भव से हमें वे तार लें।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 12/03/2024

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*आधार छंद--  पीयूष वर्ष/ आनंदवर्धक सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- जीत होगी ठान कर आगे बढ़ो ।(2 युग्म)*

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जीत होगी ठान कर आगे बढ़ो।

नित्य नव आयाम जीवन में गढ़ो।।

देखना मत लौटकर कल को कभी।

ज़िन्दगी में जो करें कर लें अभी।।


है समय बलवान इतना जान लो।

क्या बुरा है क्या भला पहचान लो।।

सीख लें दुख में स्वयं को थामना।

हर घड़ी सुख ही मिले कर कामना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 12/03/2024

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आधार छंद--  पीयूष वर्ष/ आनंदवर्धक सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- अनछुए मन को कभी पहचानिए ।(3 युग्म)*

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अनछुए मन को कभी पहचानिए।

क्या छुपा है राज इतना जानिए।।

दर्द में गमगीन या सुख में मगन।

दिल जलाता है गरीबी की अगन।।


मत करो धन रूप का अभिमान तुम।

अन्न भूखे को मिले दो ध्यान तुम।।

नीर प्यासे को पिला उपकार कर।

राह भटके को बता उद्धार कर।।


दो जरूरतमंद को ही दान तुम।

नित बसा खुद के हृदय भगवान तुम।।

है गरीबी दुख बला सच मानिए।

अनछुए मन को कभी पहचानिए।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 13/03/2024

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*आधार छंद--  पीयूष वर्ष/ आनंदवर्धक सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- प्यार की बरसात होने दीजिए (2 युग्म)*

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प्यार की बरसात होने दीजिए।

आज हमको होश खोने दीजिये।।

याद तुमको हर घड़ी हर पल किये।

जी रहे थे स्वप्न हमनें जी लिये।।


है अनोखा प्यार अपना जान लो।

प्रीत जीवन भर निभाना ठान लो।।

साथ मत छूटे कभी वादा करो।

हो भले दुश्मन जमाना मत डरो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 13/03/2024

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*आधार छंद--  पीयूष वर्ष/ आनंदवर्धक सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- बंधनों से मुक्त, सारे चल पड़े (3 युग्म)*

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बंधनों से मुक्त, सारे चल पड़े।

भावनों से युक्त, मोती मन जड़े।।

छोड़ना मत साथ, अपनों का कभी।

मान घर परिवार, रख लेना सभी।।


छाँव गुरु माँ बाप, सबको नित मिले।

कृत दया का फूल, निज मन में खिले।। 

बात रखना ध्यान, सेवा भव भरे।

भाव हित उपकार, करुणा मत मरे।।


बांटना जग प्रेम, प्रभु का नाम दे।

जोड़ना सम्बन्ध, सुख-दुख काम दे।।

मत बिछाना शूल, जीवन राह में।

ज़िन्दगी अनमोल, रख सुख चाह में।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 14/03/2024

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बंधनों से मुक्त, सारे चल पड़े।

भावनों से युक्त, मोती मन जड़े।।

छोड़ना मत साथ, अपनों का कभी।

मान घर परिवार, रख लेना सभी।।


छाँव गुरु माँ बाप, सबको नित मिले।

कृत दया का फूल, निज मन में खिले।। 

बात रखना ध्यान, सेवा भव भरे।

भाव हित उपकार, करुणा मत मरे।।


बांटना जग प्रेम, गुरु का नाम दे।

जोड़ना सम्बन्ध, सुख-दुख काम दे।।

मत बिछाना शूल, जीवन राह में।

ज़िन्दगी अनमोल, रख सुख चाह में।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 14/03/2024

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*आधार छंद--  पीयूष वर्ष/ आनंदवर्धक सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- चापलूसों की बढ़े नित शान है ।(2 युग्म)* !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

चापलूसों की बढ़े नित शान है।

अंधभक्तो का चढा परवान है।।

शोर चमचा आजकल करते फिरे।

हैं विवादों में सदा नेता घिरे।।


दास जनता बन गए लाचार हो।

बन गए कानून जब गद्दार हो।

आबरू की कौन रखवाली करे।

आमजन भयभीत दिखते हैं डरे।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 14/03/2024

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*आधार छंद--  पीयूष वर्ष/ आनंदवर्धक सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- लोकरंजन छोड़, निज पहचान कर।(2 युग्म)*

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लोकरंजन छोड़, निज पहचान कर।

प्रीत सबसे जोड़, मत अभिमान कर।।

लालसा को त्याग, पद धन देह का।

कर सदा बरसात, जग जन नेह का।।


हो सरल व्यवहार, मीठा रख वचन।

है गरल कटु बोल, खुद में कर पचन।।

कर्म नेकी चाह, जीवन ध्येय हो।

मत बुरा कर काम, होता हेय हो।।

🖊️इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 15/03/2024

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*आधार छंद--  पीयूष वर्ष/ आनंदवर्धक सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- नित्य उत्सव मान, जीवन कर सफल।(3)

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नित्य उत्सव मान, जीवन कर सफल।

कर समय उपयोग, लौटे फिर न कल।।

चल भलाई राह, गति दो कर्म को।

नीति जीवन सार, समझो मर्म को।।


लो समझ पर पीर, दो सुख छाँव को।

प्राप्त हो सुख धाम, भज प्रभु पाँव को।।

सत्य ही भगवान, कण-कण सत्य है।

सार है प्रभु राम, जन-जन कथ्य है।।


ऊँच रखकर लक्ष्य, मंजिल पार कर।

जो मिले परिणाम, विचलित हो न डर।।

हो उदय नव भोर, पथ सुख का मिले।

मीत मन का फूल, जीवन में खिले।।

🖊️गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 16/03/2024

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नित्य उत्सव मान, जीवन कर सफल।

कर समय उपयोग, लौटे फिर न कल।।

चल भलाई राह, गति दो कर्म को।

नीति जीवन सार, समझो मर्म को।।


लें समझ पर पीर, दें सुख छाँव को।

प्राप्त हो सुख धाम, भज गुरु पाँव को।।

तन खजाना सत्य, घट-घट सत्य है।

सार है सतनाम, जन-जन कथ्य है।।


ऊँच रखकर लक्ष्य, मंजिल पार कर।

जो मिले परिणाम, विचलित हो न डर।।

हो उदय नव भोर, पथ सुख का मिले।

मीत मन का फूल, जीवन में खिले।।

🖊️गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 16/03/2024

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*आधार छंद--  पीयूष वर्ष/ आनंदवर्धक सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- अब शिकायत आपसे हम क्या करें ।(2 युग्म)*

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क्यों समझ पाई नहीं हो प्यार को।

साथ मेरे चाह की इजहार को।।

अब शिकायत आपसे हम क्या करें ।

दूर हो हम रात-दिन आहें भरें।।


बन पुजारी प्रेम का फिरता रहा।

साथ पाने आपका हर गम सहा।।

आँसुओं की रात देकर चल दिये।

जी नहीं पाऊँ कभी वो पल दिये।।


रोग दिल में प्यार का बैठा लगा।

था नहीं मालूम वो देगी दगा।।

चाहता है दिल उसे देना दुआ।

भूल कर ये साथ मेरे क्या हुआ।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 16/03/2024

⚛️🕉️✡️☸️⚛️🕉️✡️☸️⚛️🕉️

*आधार छंद--  पीयूष वर्ष/ आनंदवर्धक सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- अब शिकायत आपसे हम क्या करें ।(3 युग्म)*

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

क्यों समझ पाई नहीं हो प्यार को।

साथ मेरे चाह की इजहार को।।

अब शिकायत आपसे हम क्या करें ।

दूर हो हम रात-दिन आहें भरें।।


बन पुजारी प्रेम का फिरता रहा।

साथ पाने आपका हर गम सहा।।

आँसुओं की रात देकर चल दिये।

जी नहीं पाऊँ कभी वो पल दिये।।


रोग मन में प्यार का बैठा लगा।

था नहीं मालूम वो देगी दगा।।

चाहता है दिल उसे देना दुआ।

भूल कर ये साथ मेरे क्या हुआ।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 16/03/2024







गुरुवार, 7 मार्च 2024

शक्ति/संज्वर सममात्रिक छंद-

*दिनांक -- 04/03/2024*

*दिन -- सोमवार*

*आधार छंद-- शक्ति /संज्वर सममात्रिक*

*लक्षण- मापनी मुक्त*

*परिचय-- पौराणिक वर्ग भेद (4091)*

*मापनी -|SS-|SS-|SS-|S*

*पदांत-- |S, या |||*

*सृजन शब्द--नहीं दूर जाना हमारी कसम (3 युग्म)*

*आओ सृजन करें - नव पथ गमन करें*

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नहीं दूर जाना हमारी कसम।

जुदाई नहीं सह सकेंगे सनम।।

तुम्हीं से बहारें खिला है चमन।

तुम्हीं से नजारें सजे हैं नयन।।


कभी पास आकर हमें थाम लो।

निगाहें उठाकर प्रिये नाम लो।।

समाँ बन जला हूँ विरह रात में।

हटाओ हया इस मुलाकात में।।


चकोरी प्रिये प्रीत मन को छुआ।

नहीं होश मदहोश चातक हुआ।।

बुझी प्यास जन्मों-जनम की अभी।

शिकायत करेंगे न फिर हम कभी।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 04/03/2024

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*आधार छंद-- शक्ति /संज्वर सममात्रिक*

*लक्षण- मापनी मुक्त*

*परिचय-- पौराणिक वर्ग भेद (4091)*

*मापनी -|SS-|SS-|SS-|S*

*पदांत-- |S, |||*

*सृजन शब्द--नहीं दूर जाना हमारी कसम (3 युग्म)*

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नहीं दूर जाना हमारी कसम।

निभाना पड़ेगा तुम्हें हर रसम।।

हृदय में सदा प्रेम चाहत भरूँ।

सलामत रहो तुम दुआ मैं करूँ।।


मुसाफिर बना चाह की राह में।

अकेला हुआ प्रीत परवाह में।।

तलाशा तुझे गाँव घर हर शहर।

सुबह शाम दिन रात मैं दोपहर।।


सताती मुझे है मिलन की घड़ी।

लगी है गमों की नयन में झड़ी।।

जरा पास आओ बुझा प्यास दो।

निशानी मुझे आशिकी खास दो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़ ) 04/03/2024

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*आधार छंद-- शक्ति /संज्वर सममात्रिक*

*सृजन शब्द--महालय सिखाता हमें छंद है.(3 युग्म)*

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महालय सिखाता हमें छंद है।

बनाता सभी को हुनरमंद है।।

करें वंदना नित्य माँ भारती।

उतारें सजा थाल को आरती।।


जहाँ आपसी प्रेम बगियाँ खिले।

सदा मान व्यवहार आदर मिले।।

दिखाई कभी भी न दे द्वंद है।

सभी में भरा ज्ञान मकरंद है।।


मुझे मीत सानिध्य गुरुवर मिला।

हृदय में कृपा फूल तरुवर खिला।।

करे याचना नित गजानंद है।

करें भूल को माफ मतिमंद है।।

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महालय सिखाता हमें छंद है।

धरे ज्ञान गुरु का गजानंद है।।

लिखें मापनी में रखे भाव को।

करें पार गुरु जी कलम नाव को।।


सभी साधकों में यहाँ प्रेम है।

मिला मान व्यवहार में नेम है।।

भरा भाव बंधुत्व सबमें यहाँ।

मिलेगा पटल इस तरह भी कहाँ।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/03/2024

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*आधार छंद-- शक्ति /संज्वर सममात्रिक*

* शब्द--भला सर्व का हो करें प्रार्थना (3 युग्म)*

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भला सर्व हो हम करें प्रार्थना।

मनोकामना पूर्ण यह अर्चना।।

चलें राह सच हम भलाई करें।

बुरी है बला आप हम सब डरें।।


अहं क्रोध अभिमान को त्याग दें।

सभी से मिलें मीत अनुराग दें।।

मिली जिंदगी है यहाँ चार पल।

किसे क्या पता शाम दिन रात कल।।


हुआ मतलबी आज इंसान है।

दिखावा हुआ मान पहचान है।।

गलत और सच का नहीं ज्ञान है।

गजानंद मदमस्त संतान है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/03/2024

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*दिनांक -- 06/03/2024*

*दिन -- बुधवार*

*आधार छंद-- शक्ति /संज्वर सममात्रिक*

*लक्षण- मापनी मुक्त*

*परिचय-- पौराणिक वर्ग भेद (4091)*

*मापनी -|SS-|SS-|SS-|S*

*पदांत-- |S, |||*

*सृजन शब्द--किनारा मिलेगा रहो साथ तुम।.(3 युग्म)*

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किनारा मिलेगा रहो साथ तुम।

सफर जिंदगी थामना हाथ तुम।।

मिलेंगे कभी फूल काँटे कभी।

रखे हैं कदम प्यार में हम अभी।।


निहारूँ तुझे मैं बसा नैन में।

पुकारूँ तुझे प्रिय सुबह रैन में।।

लगा लो गले से बुझा प्यास दो।

तुम्हारा रहूँ प्रेम विश्वास दो।।


बसंती बहारें लगन है लगी।

मुझे चाह साजन मिलन की जगी।।

उठे हूक दिल में विरह की घड़ी।

चली लौट आ प्रीत की कर झड़ी।।

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*दिनांक -- 06/03/2024*

*दिन -- बुधवार*

*आधार छंद-- शक्ति /संज्वर सममात्रिक*

*लक्षण- मापनी मुक्त*

*परिचय-- पौराणिक वर्ग भेद (4091)*

*मापनी -|SS-|SS-|SS-|S*

*पदांत-- |S, |||*

*सृजन शब्द- पधारे अवध में सिया राम है।(3 युग्म)*

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पधारे अवध में सिया राम है।

अधर में उसी का सदा नाम है।।

सहारा करो प्रभु शरण हूँ पड़ा।

प्रतीक्षा लिए नाथ हूँ मैं खड़ा।।


किया हूँ समर्पण हृदय भाव से।

करो पार मझधार कृत नाव से।।

रहो आप उर में कृपा धाम बन।

मनोहर मुरारी सुधा श्याम बन।।


परायण बनूँ मैं करूँ साधना।

कहीं भूल हो तो वहाँ थामना।।

जला ज्योति मन में उजाला करो।

करूँ प्रार्थना क्लेश तम को हरो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 06/03/2024

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*आधार छंद-- शक्ति /संज्वर सममात्रिक*

 *सृजन शब्द-- कभी तो मुझे भी ठिकाना मिले (3 युग्म)*

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कभी तो मुझे भी ठिकाना मिले।

सफर जिंदगी का सुहाना मिले।।

बना मैं पथिक बस अकेले चला।

कभी धूप गर्मी अगन में जला।।


शिकायत नहीं है किसी से कभी।

किया पार मंजिल स्वयं से अभी।।

सभी की दुआ से मिली जीत है।

करूँ मान आभार प्रिय मीत है।।


नजर से किसी को गिराना नहीं।

किसी मोड़ पे मिल न जाये कहीं।।

सहारा बनो दीन उपकार कर।

चलो सत्य पथ नाम कर लो अमर।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 07/03/2024

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*आधार छंद-- शक्ति /संज्वर सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- परम लक्ष्य पाना सुनिश्चित करो (2 युग्म)*

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परम लक्ष्य पाना सुनिश्चित करो।

मिलेगी सफलता नहीं तुम डरो।।

कभी हार मिलना कभी जीत तय।

रखे हौसला जो उसी का विजय।।


करो रौशनी दीप नेकी जला।

रहो दूर पर की बुराई बला।।

खुशी बाँटने जग उठा पाँव को।

बढ़ाओ सदा प्रेम की छाँव को।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 08/03/2024

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*आधार छंद-- शक्ति /संज्वर सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- कभी भी न पालो किसी पर वहम (3 युग्म)*

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

कभी भी न पालो किसी पर वहम।

समझ जिंदगी में सभी हैं अहम।।

सभी को सभी की जरूरत पड़े।

मनुज मन कभी मत अहं पर अड़े।।


कदम से कदम तुम मिलाते चलो।

किसी की प्रगति से न तुम तो जलो।।

लगाओ गले जन भुला द्वेष को।

रखो स्वच्छ परिवेश अनिमेष को।।


चराचर जगत में सभी एक हैं।

अहिंसा परम धर्म पथ नेक हैं।।

लड़ो मत कभी धर्म के नाम पर।

सदा ध्यान देना सहीं काम पर।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 08/03/2024

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*आधार छंद-- शक्ति /संज्वर सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- लहर जो उठी है दिखाऊँ किसे (3 युग्म)*

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लहर जो उठी है दिखाऊँ किसे।

दिया दर्द हमदर्द माना जिसे।।

कभी भी सितम में नहीं की कमी।

मिला जख्म हर पल नयन में नमी।।


बना प्रेम का मैं पुजारी खड़ा।

तुम्हारी झलक को अचेतन पड़ा।।

जपूँ नाम माला घड़ी पल घड़ी।

लगा लो गले दूर हो क्यों खड़ी।।


हुआ बावरा मैं लगाकर लगन।

जलाती मुझे नित जुदाई अगन।।

सजा प्यार का मत किसी को मिले।

अधर में मिलन का सुमन ही खिले।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 09/03/2024

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*आधार छंद-- शक्ति /संज्वर सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- सुबह शाम मैंया करूँ आरती (2 युग्म)*

""''''''''''"'"'*"'''''''''''''''"*""'''''''''"''""'*""'''''''''''''*

सुबह शाम मैंया करूँ आरती।

चरण मैं नमन नित करूँ भारती।।

बढ़ाना सदा मान संस्कार को।

करो तेज मेरी कलम धार को।।


बढ़े पाँव नेकी सफल राह में।

थमे सांस उपकार की चाह में।।

बसर जिंदगी हो सहीं कर्म में।

लगे मन लगन माँ दया धर्म में।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 09/03/2024

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*आधार छंद-- शक्ति /संज्वर सममात्रिक*

शक्ति छंद- *सुबह शाम सतनाम का जाप कर*

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सुबह शाम सतनाम का जाप कर।

चलो सत अहिंसा सुफल राह पर।।

करो प्रार्थना सब निरोगी रहे।

न कोई यहाँ कष्ट भोगी रहे।।


अमृत सात संदेश व्यालिस वचन।

अमल संत कर लो गुरू का कथन।।

इसी में सफल जिंदगी सार है।

मिला कर्म उपकार आधार है।।


कभी द्वेष करना सिखाता नहीं।

दिखाता सदा पथ गलत क्या सहीं।।

लड़ाता नहीं धर्म के नाम पर।

हमेशा दिया जोर सत काम पर।।


सभी जन्म से एक इंसान है।

लहू एक है एक मुँह कान है।।

हवा एक चलती सभी के लिए।

बताओ भला भेद किसने किये!!

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 10/03/2024

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*आधार छंद-- शक्ति /संज्वर सममात्रिक*

*सृजन शब्द - *मिला देव मुझको गुरू रूप में*

मिला देव मुझको गुरू रूप में।

दिए छाँव सुख का मुझे धूप में।।

मिला नाम आधार उपकार में।

भरे ज्ञान भंडार व्यवहार में।।


मिटा दीन तृष्णा सहारा दिए।

मुझे शांति जीवन गुजारा दिए।।

गुरू पाठ इंसानियत का पढ़ा।

दिए हो बुलंदी शिखर में चढ़ा।।


जले भक्ति दीया हृदय थाल में।

खिले भाव श्रद्धा सुमन भाल में।।

खुशी सुख प्रदाता कृपानाथ हो।

गजानंद की भक्ति के साथ हो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 11/03/2024





गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

चौपाई छंद- आधार सममात्रिक छंद

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*दिनांक -- 26/02/2024*

*दिन -- सोमवार*

*आधार छंद-- चौपाई सममात्रिक*

*लक्षण- मापनी मुक्त

*परिचय-- संस्कारी वर्ग भेद (1597)*

*पदांत-- चौकल*

*सृजन शब्द-- मस्तानों की आई टोली (5 युग्म)*

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मस्तानों की आई टोली। खेलें मिलकर आओ होली।

करते हँसी मजाक ठिठोली। संग भांग की गटको गोली।।


रंग गुलाल अबीर उड़ाओ। गीत फगुनवा मितवा गाओ।

छोड़ो द्वेष गले मिल जाओ। हँसी खुशी यह पर्व मनाओ।।


हाथों में थामे पिचकारी। होली रंग लगे मनुहारी।

ढोल नगाड़ा लगे सुहावन। ऋतु बसंत पावन मनभावन।।


आम पलास सुगंध सुहाई। कोयल मीठी गीत सुनाई।

बन दुल्हन सरसों शरमाई। मादकता महुए में छाई।।


भ्रमर करे गूँजन फूलों पर। रौनक आई है झूलों पर।

स्वर्ग समान लगी है धरती। खुशियाँ ले अठखेली करती।।

🖊️इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 26/02/2024

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*आधार छंद-- चौपाई सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- मैं चातक हूँ चंद्र चकोरी, (5 युग्म)*

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मैं चातक हूँ चंद्र चकोरी। रात अमावस है घनघोरी।

प्रीत मिलन की बाँधो डोरी। आया मिलने चोरी-चोरी।।


कृष्ण बिना राधा है आधा। वही प्रीत मैंने भी साधा।

नीर बिना है मीन अधूरा। पर तुम करना चाहत पूरा।।


पात बिना है सूखी डाली। फूल बिना है निर्झर माली।

मंद बयार कली मुरझाई। विरह वेदना आग लगाई।।


सूरदास रसखान कहे हैं। मीरा भी प्रभु पीर सहे हैं।

प्रीत सदा मन की गहराई, जाति-पाति जिसमें न समाई।।


प्रेम सदा सुख जीवन दरिया। भींगे जिसमें हॄदय चुनरिया।

प्रेम नाव चढ़ पार करो भव। अनुगामी पथ सृजन करो नव।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 26/02/2024

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*आधार छंद-- चौपाई सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- आया फागुन लेकर होली (5 युग्म)*

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आया फागुन लेकर होली। मस्ती में झूमें हैं टोली।

खुशियों से भर दें हम झोली। खेलें होली मिल हमजोली।।


प्रीत रंग भरना पिचकारी। रंग गुलाल लगे मनुहारी।

माथ सजा लो कुमकुम रोली। बुरा न मानों खेलो होली।।


भांग नशा में ढोल नगाड़ा। राग रौब फागुन में झाड़ा।

शंख मृदंग करे ता-थैया। गीत फगुनवा लिए बलैया।।


ऋतु बसंत खुशियाँ में झूमे। हरियाली की राहें चूमे।

अमराई में रौनक छाई। आम्र बौर भी है बौराई।।


सभी तरफ है मस्त नजारें। आओ गायें गीत बहारें।

लेना जगा उमंग जवानी। रखे रगों में नित्य रवानी।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 27/02/2024

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*आधार छंद-- चौपाई सममात्रिक*

*सृजन शब्द--शोभित घर आँगन सुखदाई। (5 युग्म)*

*"""''''''""'*"""'''''''"*"'''''''''""""'*"""''''''''''"*""''''''''''

शोभित घर आँगन सुखदाई। कृपा सदा हो प्रभु रघुराई।

भरे रहे घर शांति खजाना। सुख-दुख सब मिल साथ निभाना।।


पावन पूजित तुलसी चौंरा। करे सदा गूँजन सुख भौंरा।

पड़े कभी मत दुख परछाई। सुख जीवन की करूँ दुहाई।।


रीति-नीति संस्कार बचाना। धर्म कर्म का फर्ज निभाना।

संस्कारित हो बच्चा-बच्चा। रहें सभी हम दिल से सच्चा।।


पूज्य सदा माँ-बाप चरण हो। जिनके पावन कथन वरण हो।

माँ की ममता का हो साया। कभी लुभाये मत मद माया।।


घर की लक्ष्मी बेटी जानों। कभी पराया धन मत मानों।

बेटी दो कुल फर्ज निभाती। कष्टों से परिवार बचाती।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 27/02/2024

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*आधार छंद-- चौपाई सममात्रिक*

*सृजन शब्द-फूलों जैसा रूप सुहाना (5 युग्म)*

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फूलों जैसा रूप सुहाना। दिल में भर दो प्रीत तराना।

साथी मेरे साथ निभाना। समझ पराया भूल न जाना।।


तुमसे ही रौनक जीवन में। तुम ही तुम हो अंतर्मन में।

बन राँझा मैं हीर बना लूँ। तुमको अपना पीर बना लूँ।।


बन बैठा हूँ प्रेम पुजारी। दिल में है तस्वीर तुम्हारी।

लगन लगी है तुमसे ज्यादा। साथ निभाने का है वादा।।


जुल्फों का दो छाँव घनेरी। करो प्रिये मत तुम तो देरी।

चाहत का बरसात करो तुम। प्रीत भरी नित बात करो तुम।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/02/2024

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*आधार छंद-- चौपाई सममात्रिक*

*सृजन शब्द--  जीवन धारा बहती जाये।(3 युग्म)

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जीवन धारा बहती जाये। सीख उतार चढ़ाव सिखाये।

थाम हौसला आगे बढ़ना। शिखर सफलता का है चढ़ना।।


अहं कभी मन में न समाये। सत्य राह पग बढ़ते जाये।

धीर रखें हम कठिनाई में। ध्यान लगायें चतुराई में।।


कभी किसी का दिल न दुखाना। दीन-दुखी को गले लगाना।

सहज सरल व्यवहार रखें हम। पर सेवा उपकार रखें हम।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 29/02/2024

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*आधार छंद-- चौपाई सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- सबमें प्रेम दया करुणा हो ।(3 युग्म)*

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सबमें प्रेम दया करुणा हो। जीवन पथ में सुख अरुणा हो।

भाव भरें जग भाईचारा। बनकर रहना मीत सहारा।।


कर्म बिना है धर्म अधूरा। संस्कारी बन करना पूरा।

ढोंग रूढ़ि को दें न बढ़ावा। मन मंदिर हो भक्ति चढ़ावा।।


दायित्वों का बोध करें हम। विश्व बन्धुता शोध करें हम।

लक्ष्य साधना सच्चाई का। राह थामना अच्छाई का।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 01/03/2024

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*आधार छंद-- चौपाई सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- नमन योग्य है विकसित भारत (5 युग्म)*

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नमन योग्य है विकसित भारत। करते हैं हम निस दिन स्वागत।

धन्य धरा जिसमें खुशहाली। आच्छादित है वन हरियाली।।


सीमा पर हैं वीर सिपाही, शक्ति चक्र का स्वयं गवाही।

देश भक्ति का फर्ज निभाने। दुश्मन को निज धूल चटाने।।


देश विकास शिखर चढ़ने को। विश्व पटल पर नित बढ़ने को।

सक्षम साहस हमनें साधा। जीत लिए हैं विपदा बाधा।।


थाम एकता की हम राहें। विश्व बन्धुता समता चाहें।

जाति-धर्म का भेद मिटायें। लोकतन्त्र में साथ निभायें।।


सबको सम सम्मान दिलाना। अधरों पर मुस्कान खिलाना।

सबमें शुभ संस्कार भरा है। रीति-नीति पथ परंपरा है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 02/03/2024

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*आधार छंद-- चौपाई सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- चाँद चुराके ले आऊँगा ।(3युग्म)

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चाँद चुराके ले आऊँगा। चैन तभी तो मैं पाउँगा।

दुल्हन तुमको माना अपना। पूरा कर दो मेरा सपना।।


सांसो में तुम धड़कन बनकर। तड़पाती हो तड़पन बनकर।

जीने का अरमान बना लूँ। तुमको अपना जान बना लूँ।।


बजती जब पाँवों की पायल। कर जाती है मुझको घायल।

चूड़ी की तो खनखन बोली। इस दिल में है दागे गोली।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 02/03/2024







सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

दीप्ति/जयकरी/चौपई छंद

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*दिनांक -- 19/02/2024*

*दिन -- सोमवार*

*आधार छंद-- दीप्ति/ जयकरी/ चौपई सममात्रिक*

*मात्रा- 15

*मापनी-- 2222-2221*

*पदांत-- 21*

*सृजन शब्द-- रे मन ! कब लोगे विश्राम(2 युग्म)*

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रे मन! कब लोगे आराम, निस दिन जीवन में है काम।

छोड़ चलो इस जग में नाम, व्यर्थ न हो तन साँस विराम।।

क्या लाया है जो तू साथ, जाना भी है खाली हाथ।

छोड़ो कल की चिंता माथ, सुख-दुख के साथी हैं नाथ।।


छोड़ो आपस की तकरार, एक पेड़ के हम सब नार।

मानवता की करो पुकार, होगा हम सबका उद्धार।।

सत्य अहिंसा के बन दूत, भारत माँ के सच्चे पूत।

त्याग भावना छूत अछूत, जग में हो शांति फलीभूत।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/02/2024


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*आधार छंद-- दीप्ति/जयकरी/चौपई सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- रे मन! कब लोगे विश्राम (2 युग्म)*

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किया बहुत जीवन में काम, रे मन! कब लोगे विश्राम।

सत्कर्मों को लेना थाम, मिल जायेंगे प्रभु सुख धाम।।

झूठ अहं भय भ्रम को छोड़, रखना मन में ज्ञान निचोड़।

रहना सच से नाता जोड़, सुख आये या दुख का मोड़।।


करना सेवा दीन गरीब, रहना नित माँ-बाप करीब।

इस जीवन का खेल अजीब, कर्म बनाये नित्य नसीब।।

रखना मुख में मीठ जुबान, शब्द लगे मत तीर समान।

ध्यान धरे चल गुरु का ज्ञान, तभी बनोगे मनुज महान।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/02/2024


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*आधार छंद-- दीप्ति/जयकरी/चौपई सममात्रिक*

*सृजन शब्द- मत कर दौलत पर अभिमान*

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मत कर दौलत पर अभिमान, जीवन हो सत पथ बलिदान।

पार लगाये भव गुरु ज्ञान, कहना मानो संत सुजान।।

जीवन जीना रख नित धीर, समझो दीन दुखी का पीर।

रखो बचा कर मान जमीर, बहना बनकर पावन नीर।।


सुख के साथी हैं सब लोग, दुख में करें नहीं सहयोग।

जस करनी तस भरनी भोग, लाख लगा बैठो तुम जोग।।

मद मदिरा में होकर चूर, धन दौलत का किया गुरूर।

होकर अपनों से ही दूर, रहा जिंदगी भर मजबूर।।

इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/02/2024

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आधार छंद- *दीप्ति/जयकरी/चौपई सममात्रिक छंद*- 

सृजन शब्द- *भारत का हर बच्चा वीर*

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भारत माँ करती आव्हान, आन-बान तुम मेरी शान।

बन सच्चे मेरी संतान, रहना रण में सीना तान।।

तोड़ गुलामी की जंजीर, बनो बुलन्दी का तुम तीर।

तुमसे है भावी तस्वीर, भारत का हर बच्चा वीर।।


भुजा समाये रख तूफान, शूरवीर योद्धा बलवान।।

बनना कर्मवीर इंसान, नाज करे यह हिंदुस्तान।।

वीर शहीदों को कर याद, जिसने देश किया आजाद।

लाल बाल बिस्मिल आजाद, सदा रहेंगे जिंदाबाद।।


भारत का हर बच्चा वीर, चतुर बहादुर अरु बलबीर।

दुश्मन का सीना दे चीर, मन को रखता शांत सुधीर।।

विपदाओं में बनते ढाल, लड़ते ऊँचा करके भाल।

देश सिपाही करे कमाल, खूब बजाओ जी करताल।।


लेते पल में पर्वत नाप, खुदी चंद्रशेखर की छाप।

नष्ट करे पापी का पाप, देश भक्ति का करते जाप।।

माने न कभी वे तो हार, शेर समान करे ललकार।

बच्चे दिल के सच्चे यार, बोलो अब तो जय जयकार।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/02/2024

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*आधार छंद-- दीप्ति/ जयकरी/ चौपई सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- कविताई तू करले मीत*

""""""""'"*"""'''''"""*""""'''''''''*"""""''''*"''''''''''''

कविताई तू कर ले मीत, भरो सभी के मन में प्रीत।

मानवता के गाओ गीत, होये सबको मान प्रतीत।।

रहता कवि का हृदय उदार, सोचे सबका हो उपकार।

लिखता कविता में सच सार, करे झूठ प्रति नित्य प्रहार।।


सच्चाई पर लगते दाग, अंधभक्ति का गाते राग।

लोग बने हैं अब तो काग, व्यर्थ अलापे हैं अनुराग।।

सत्य प्रशंसा करे न लोग, लगा झूठ का सबको रोग।

पत्थर लगते छप्पन भोग, मरते घर का देव वियोग।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/02/2024

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*आधार छंद-- दीप्ति/ जयकरी/ चौपई सममात्रिक*

*सृजन शब्द--  श्री सुरनायक मेरे राम (2 युग्म)*

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रघुपति राघव राजा राम, सिद्ध करे प्रभु सकल सुकाम।

पग में जिनके चारो धाम, श्री सुरनायक मेरे राम।।

सरिता सरयू पावन घाट, भक्त निषाद निहारे बाट।

पाया दर्शन रूप विराट, फेरा प्रभु ने हाथ ललाट।।


दीन दुखी के दाता राम, कष्ट हरे प्रभु का शुभ नाम।

गिरे पड़े को लेते थाम, देते सबको सुख अविराम।।

मानव जग में गढ़े सुराज, बने सुशासित सभ्य समाज।

धन्य गजानंद हुआ आज, नाम सियापति मन में साज।।

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श्री सुरनायक मेरे राम, चरण आपके सुख का धाम।

राम नाम है पावन नाम, सफल करे प्रभु सबका काम।।

करते क्षण में दुःख निदान, शरणागत हो जो इंसान।

सुबह शाम करना गुणगान, त्याग घमंड अहं अभिमान।।


कर्मपरायण नेह दुलार, भरा हृदय में प्रेम अपार।

दिए त्याग का शिक्षा सार, किये राम प्रभु जग उद्धार।।

भक्त रहा अंगद हनुमान, दिये सदा ही प्रभु में ध्यान।

केंवट शबरी को सम्मान, देकर जग में किये महान।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 21/02/2024

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*आधार छंद-- दीप्ति/ जयकरी/ चौपई सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- विनती सुन लो पालनहार*

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विनती सुन लो पालनहार, करना भवसागर से पार।

खड़ा आपके हूँ मैं द्वार, हाथ जोड़ कर करूँ पुकार।।

मैं अज्ञानी हूँ मतिहीन, शरण पड़ा हूँ बन मैं दीन।

ज्ञान बिना तड़पे मन मीन, सजा रहो आसन आसीन।।


संकट मोचन तारणहार, करना मुझ पर प्रभु उपकार।

बजे प्रीत का नित झंकार, देना मुझको यह उपहार।।

सही गलत प्रति हो प्रतिभान, रहे हृदय में मत अभिमान।

करें ज्ञान का जग में दान, तभी बनेंगे मनुज महान।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 21/02/2024

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*आधार छंद-- दीप्ति/ जयकरी/ चौपई सममात्रिक*

*सृजन शब्द--  चोरी चोरी बोले नैन (2 युग्म)*

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चोरी-चोरी बोले नैन, छीन लिया है मेरा चैन।

तड़प-तड़प बीते हैं रैन, किसे सुनाऊँ दिल का बैन।।

विरह वेदना प्रीत अधीर, मीत हुआ है क्यों बेपीर।

दिया नैन में गम का नीर, मुरझाया बन पात शरीर।।


आया है अब ऋतु मधुमास, पिया मिलन की जागी प्यास।

छेड़े ताना फूल पलास, लौट चले आओ प्रिय पास।।

जब-जब कोयल बोले बोल, देते तब-तब दुख मन घोल।

तकती राह नैन पट खोल, समझो पिया मिलन का मोल।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 22/02/2024

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*आधार छंद-- दीप्ति/ जयकरी/ चौपई सममात्रिक*

*सृजन शब्द--  मेरा प्यारा हिंदुस्तान (2 युग्म)*

*""""""''*""""”"""*"""""""'''* *"""""'''"* *""'''''''''*

भाईचारा है पहचान, सभी धर्म का है सम्मान।

गाऊँ निस दिन मैं गुणगान, मेरा प्यारा हिंदस्तान।।

पावन गंगा का सुख धार, भरा खनिज से है भंडार।

संविधान समता आधार, दिया सभी को हक अधिकार।।


गीता ग्रंथ पुराण कुरान, देते नेक सदा सद्ज्ञान।

कहते मानव सभी समान, एक कोंख के हम संतान।।

जोड़ रखें सबसे हम प्रीत, होये सबको प्रेम प्रतीत।

गायें जनगण मन का गीत, रखें बचा हम अपना रीत।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 22/02/2024

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*आधार छंद-- दीप्ति/ जयकरी/ चौपई सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- छेड़े आओ भारत राग (2 युग्म)*

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बसा दिलों में नित अनुराग, गंगा जैसे प्रीत प्रयाग।

रखें भावना हित प्रति त्याग, छेड़ें आओ भारत राग।।

बुद्धि विवेक करें उपयोग, एक कोंख जन्में सब लोग।

जाति-धर्म का त्यागें रोग, मेल- मिलाप करें सहभोग।।


भारत का हो गौरवगान, रखें सदा हम इसका ध्यान।

हमें तिरंगा पर अभिमान, त्याग शांति उन्नति पहचान।।

राष्ट्रभक्ति का हो जयघोष, रहे सभी कोई निर्दोष।

मन में सबके हो संतोष, बढ़े देश का निस दिन कोष।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 23/02/2024

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*आधार छंद-- दीप्ति/ जयकरी/ चौपई सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- आओ गायें मंगल गीत (2 युग्म)*

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आओ गायें मंगल गीत, जोड़ें सबसे सच्चा प्रीत।

भाईचारा रख लें रीत, सबके दिल को लें हम जीत।।

धन्य धरा है भारत देश, शांति सुखद इसका परिवेश।

सत्य अहिंसा दे संदेश, रहे नहीं आपस में क्लेश।।


खुशहाली का गाये राग, एक डाल पर कोयल काग।

सभी जगा लें अपना भाग, मिटा द्वेष भय भ्रम का दाग।।

राह चलें हम उन्नत नेक, एक खून है तन भी एक।

सद्विचार हो सोच विवेक, बढ़े बंधुता नित अतिरेक।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 23/02/2024

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*आधार छंद-- दीप्ति/ जयकरी/ चौपई सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- मेरा क्या बोलो अपराध (2 युग्म)*

मेरा क्या बोलो अपराध, प्रीत लिया जो तुमसे साध।

करता हूँ मैं प्रेम अगाध, चलने दो इसको निर्बाध।।

बसा लिया दिल में तस्वीर, समझ तुम्हें अपना तकदीर।

मैं राँझा तुम मेरी हीर, साथ-साथ सहना है पीर।।


साँसों से साँसों का तार, धकड़न में बस तेरा प्यार।

तुमसे ही है प्रीत बहार, तुम ही हो जीवन आधार।।

रहे प्रीत में न कभी होड़, देंगे सुख का सार निचोड़।

साथ रहेंगे हम हर मोड़, बन जीवन साथी बेजोड़।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 24/02/2024

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*आधार छंद-- दीप्ति/ जयकरी/ चौपई सममात्रिक*

*सृजन शब्द--जीवन का ले लो आनंद (2 युग्म)*

""""'''''""*""""""""*"""""""""*""""""""*"""""''""*

जीवन का ले लो आनंद, छोड़ो मन का अंतर्द्वंद।

मिला समय है कुछ ही चंद, रखें जोड़ प्रीत गजानंद।।

मधुर मिलन की हो बरसात, करें सदा सच्चाई बात।

दें सबको सुख की सौगात,आये कभी न दुख की रात।।

इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" बिलासपुर

25/02/2024





गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024

चंडिका छंद- सम मात्रिक (आधार छंद)

 *आधार छंद-- चंडिका सममात्रिक*

*मापनी-- 2222-212 आदि द्विकल*

*पदांत-- 212*

*सृजन शब्द-- दानव कुल संहारिणी (2 युग्म)*

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दानव कुल संहारिणी, भव सागर जन तारणी।

अष्टभुजा माँ धारिणी, कल्याणी शुभ कारिणी।।

दूर करो दुख वेदना, भर दो माँ नवचेतना।

माला मूंड विराजते, शोभा नैन निहारते।।


रूप अनेकों शारदे, दुष्टों को संहार दे।

हे माँ मंगल कामिनी, शुभ्र ज्योत्सना यामिनी।।

सुख वैभव वरदायिनी, माथ मुकुट शोभायिनी

हर दो माँ संताप को, इस कलयुग के पाप को।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 12/02/2024

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*आधार छंद-- चंडिका सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- आया सावन झूम के (2 युग्म)*

*"'''''''''*"""'''''*"'""""""*'''''''''''''*"'''''"''*

आया सावन झूम के, नभ धरिणी को चूम के।

बादल बरसे घूम के, मारे कोयल ठूमके।।

बरसे मन बरसात में, प्रीत मिलन की रात में।

बूझ गई अब दामिनी, हार गई शुभ यामिनी।।


मन में उठते प्रीत है, संस्कारित शुभ प्रीत है।

जोड़ो मन से भावना, जन कल्याणी कामना।।

मय वश रावण है मरा, सत्य सनातन जग भरा।

समझो जग जन वेदना, जाग उठेगा चेतना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 12/02/2024

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  *आधार छंद-- चंडिका सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- मत स्वीकारो दीनता (2 युग्म)*

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*संस्थापक, छंदाचार्य - डॉ रामनाथ साहू "ननकी"*

*अध्यक्ष - डॉ माधुरी डड़सेना "मुदिता"*

*सचिव-- डॉ ओमकार साहू "मृदुल"*

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मत स्वीकारो दीनता, मन में भरकर हीनता।

रखना प्रभु में लीनता, जीना रख स्वाधीनता।।

प्रीत सभी से जोड़ना, लोभ बुराई छोड़ना।

नेक सुगम पथ मोड़ना, दीवार अहं तोड़ना।।


रखना कर्म महान तू, धर्म सुभाषित ज्ञान तू।

भरना ऊँच उड़ान तू, बनकर प्रज्ञावान तू।।

सत्य सनातन रीत हो, सबके प्रति सम प्रीत हो।

हार नहीं नित जीत हो, भाई-भाई मीत हो।।


गीता ग्रंथ कुरान में, बोले वेद  पुरान में।

भेद न हो इंसान में, बात रखो नित ध्यान में।।

मानव मंद विवेक है, कुंठित मन अतिरेक है।

खून सभी का एक है, सोच यही शुभ नेक है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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    *आधार छंद-- चंडिका सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- सुर की देवी शारदे (2 युग्म)*

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सुर की देवी शारदे, नित्य कलम को धार दे।

कष्टों को संहार दे, भक्तों को सुख प्यार दे।।

आया हूँ माँ द्वार में, सुनकर प्रेम पुकार में।

भर दो प्रीत विचार में, सुखमय हो संसार में।।


अनपढ़ को माँ ज्ञान दो, अक्षर- अक्षर ध्यान दो।

दोष विकार निदान दो, मीठा बोल जुबान दो।।

सबको सम सम्मान दो, बुद्धि विवेक उचान दो।

गीत मधुर सुर तान दो, जनगण मन का गान दो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 14/12/2024

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 *आधार छंद-- चंडिका सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- सद्गुरु देते मंत्र हैं (2 युग्म)*

सद्गुरु देते मंत्र है, नेक विचार सुतंत्र है।

ज्ञान सुधा शुभ अंत्र है, नष्ट करे षडयंत्र है।।

सद्गुरु सीप समान है, पूजा पाठ अजान है।

यीशु ख़ुदा भगवान है, रूप अनेक महान है।।


सद्गुरु सच आधार है, जीवन का पतवार है।

महिमा अपरंपार है, भजते जग संसार है।।

मातु पिता का रूप है, देते ज्ञान अनूप है।

दूर करे दुख धूप है, तरसे गुरु को भूप है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 15/02/2024

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आधार छंद - चंडिका छंद

सृजन शब्द- *कैसा ये व्यापार है*

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दिखता हाहाकार है, महँगाई की मार है।

जन बेबस लाचार है, चुप बैठी सरकार है।।

जग कालाबाजार है, फैला भ्रष्टाचार है।

लूट यहाँ भरमार है, कैसा ये व्यापार है।।


पीट रहें हैं भाल को, तरसे जन सुख थाल को।

पूछे कौन सवाल को, मिलता मान दलाल को।।

बात जहर नित घोलता, जब-जब मुँह को खोलता।

सत्ता कुर्सी डोलता, सच जब कोई बोलता।।


चोरों का सरदार है, बन बैठा सरकार है।

छाया हाहाकार है, कैसा ये व्यापार है।।

देश हुआ कंगाल है, बर्बादी का हाल है।

चलता रोज कुचाल है, खुद ही मालामाल है।।


सब पैसों का खेल, अब वोटों का मेल है।

बिकता दफ्तर रेल है, सच बोलो तो जेल है।।

झूठ बना आधार है, होता जय जयकार है।

न्याय हुआ लाचार है, कैसा ये व्यापार है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 16/02/2024

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*आधार छंद-- चंडिका सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- राधा शीतल छाँव है (2 युग्म)*

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मन में चुभते घाव है, लोग लगाये दाँव है।

पुण्य कन्हैया पाँव है, राधा शीतल छाँव है।।

पाप विनाशक नाम है, वंदन प्रभु जी राम है।

घट में चारो धाम है, जपना निश दिन काम है।।


मानव-मानव एक है, सत्य अहिंसा नेक है।

बढ़ता सोच विवेक है, माथ सजे अभिषेक है।।

जग में छाया पाप है, लोगों में संताप है।

दीन-दुखी माँ-बाप है, बढ़ता रोज विलाप है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 16/02/2024

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*आधार छंद-- चंडिका सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- राधा शीतल छाँव है (2 युग्म)*

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वृंदावन शुभ गाँव है, कृष्ण सुहावन पाँव है।

पेड़ कदम का ठाँव है, राधा शीतल छाँव है।।

मित्र सुदामा साथ में, थामे बंसी हाथ में।

मोर मुकुट है माथ में, गोप मगन है नाथ में।।


हरने आया पाप को, दुनिया के संताप को।

धन्य किया माँ बाप को, साधा मित्र मिलाप को।।

दे गीता संदेश को, बदला जग परिवेश को।

नष्ट किये छल द्वेष को, सिद्ध किये अनिमेष को।।

🖊️इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 16/02/2024

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*आधार छंद-- चंडिका सममात्रिक*

*सृजन शब्द--क्यों व्याकुल मन आज है (2 युग्म)*

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क्यों व्याकुल मन आज है, खामोशी अंदाज है।

व्यर्थ छुपाता राज है, जीत बँधे सर ताज है।।

बाधाओं को तोड़ दो, दुख का मटका फोड़ दो।

भाग्य निराशा छोड़ दो, कर्म दिशा पथ मोड़ दो।।


कहते ऋषि-मुनि संत है, सद्गुरु ज्ञान अनंत है।

लोभ किये सब अंत है, त्याग मिले सुख पंत है।।

भाईचारा साथ हो, दीन दुखी प्रति हाथ हो।

श्रम का मोती माथ हो, मत कोई निर्नाथ हो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 17/02/2024


मयूरशिखा छंद-

*मयूर शिखा (अर्ध सममात्रिक छंद)* नव प्रस्तारित आधार छंद है। *कुल मात्रा -- 54* *यति-- 14,13* *पदांत- IIS* *मापनी--- SSS-SSS-S, SSIS-SIIS* ( ...