गुरुवार, 6 जुलाई 2017

लावणी छंद

 *गाँव की खुश्बू*

शहर ढूँढता गजानंद मैं, दो वक्त चैन पाने को।
आया छोड़ गाँव की खुश्बू, पैसा चंद कमाने को।।1

याद सुहानी तड़पाती है, दिल में बसे मुरादों की।
मिट्टी मिली ख़्वाब सारे, बलि चढ़ गई इरादों की।।2

सुई घड़ी सी सफर जिंदगी, घूम रहा है घेरे में।
चकाचौंध दिखता है बाहर, मन बैठा अंधेरे में।।3

तरस गए हैं कान सखा रे, कूक कोयली सुनने को।
आँखे भी निहारती है अब, पास देखने अपने को।।4

घूट घूट कर कब तक जीयें, कोलाहल के मेले में।
यहाँ गाँव सी कहाँ वादियाँ, साँसे बिकती ठेले में।।5

हाथ बटाते थे सुख दुख में, भाव रखे भाईचारा।
यहाँ तड़पते रह जाओगे, कोई भी नही सहारा।।6

लेकेे आना महक गाँव की, पूरा हो मेरे सपने।
रहे फर्क ना शहर गाँव में, लगने लगे सभी अपने।।7

रचना- इंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
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