शुभ गण– यमभन
अशुभ गण– सतरज
गणात्मक दोहे
(वार्णिक गण)------
मगण (222)
*जिज्ञासा* जिंदा रखो, *अज्ञानी* अब चेत।
भटके *संसारी* यहाँ, बन *बंजारा* प्रेत।।
*यगण (122) (पूर्व में त्रिकल लगाये)*
नया *जमाना* आ गया, सभी *नशीले* लोग।
नमन *प्रभाती* भूलकर, सतत *सुहाते* भोग।।
रगण (212) (पूर्व में त्रिकल लगाये)*
सुमन *वाटिका* से भरा, करे *कामिनी* नृत्य।
मधुर सुनाती *रागिनी*, बजे *पैजनी* वृत्य।।
सगण (112)
*अपने सपने* सत्य हैं, *लगता बरसों* बाद।
*चलते चलते* आ गये, *लगता बजते* नाद।।
तगण (221)
मिलता है *संसार* में, संसारी *जंजाल*।
इसे तनिक *आभास* कर, कहता नर *कंकाल*।।
जगण (121) (पूर्व में द्विकल लगाये)*
अब *विकास* गंगा बही, हर *निकाय* आनंद।
हर्षित *किसान* लग रहे, रक्षित सिंह *गयंद*।।
भगण (211)
*पावन सावन* आ गया, *नेवर किंकिनि* शोर।
*दादुर झिंगुर* सुर षडज, *साजन आँगन* तोर।।
नगण (111)
*जनम जनम* का साथ है, *मुदित मगन* चल पंथ।
*सहज सरल* बनना *पथिक*, *परम प्रणव* उन्मंथ।।
*--- डॉ. रामनाथ साहू "ननकी"*
*संस्थापक, छंदाचार्य*
*(बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)*
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गणात्मक दोहा लिखें-----
मगण (222) *(सृजन शब्द-- आवारा)*
आवारा पशु बन फसल, करते हैं नुकसान।
गायब चारागाह अब, देना इस पर ध्यान।।
यगण (122) *(सृजन शब्द-- विवेकी)*
बुद्धि विवेकी ज्ञान का, होता जग में मान।
सहज सरल व्यवहार से, बनते मनुज महान।।
रगण (212) *(सृजन शब्द-- मोहिनी)*
मंत्र मोहिनी जानिए, मुँह का मीठा बोल।
दुनिया को वश में करें, शब्द कहें अनमोल।।
सगण (112) *(सृजन शब्द-- पहुना)*
आये पहुना द्वार जब, करें मान सम्मान।
कहते बुजुर्ग हैं सभी, पहुना है भगवान।।
तगण (221) *(सृजन शब्द-- आराम)*
है आराम हराम यह, सूक्ति जवाहर लाल।
श्रम से ही होते सदा, जग में ऊँचा भाल।।
जगण (121) *(सृजन शब्द-- किसान)*
वंदन करूँ किसान को, धरती का भगवान।
भरते सबका पेट जो, बन करके वरदान।।
भगण (211) *(सृजन शब्द-- रावण)*
गली-गली रावण खड़ा, द्वार-द्वार पर कंस।
कौवे मोती चुग रहें, बन करके अब हंस।।
नगण (111) *(सृजन शब्द-- वतन)*
सबसे प्यारा है वतन, मेरा भारत देश।
जहाँ एकता प्रेम का, सुंदर है परिवेश।।
-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/04/2024
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गणात्मक दोहा लिखें-----
मगण (222) *(सृजन शब्द-- आभारी )*
छंद महालय से मिला, मुझको छंद विधान।
आभारी गुरु आपका, कर दो आप समान।।
यगण (122) *(सृजन शब्द-- उजाला )*
फैला है चारो तरफ, अंधकार घनघोर।
करो उजाला आप गुरु, विनती है कर जोर।।
रगण (212) *(सृजन शब्द-- साधना )*
सतत साधना से हुआ, सफल सभी निज काम।
कर्मशील इंसान का, होता जग में नाम।।
सगण (112) *(सृजन शब्द-- सजना )*
सजना मेरे हाथ में, दे दो अपना हाथ।
छूटे मत सातो जनम, तेरा मेरा साथ।।
तगण (221) *(सृजन शब्द-- बाजार )*
यह जीवन बाजार है, कर लो सौदा आप।
अमल करो खुद के लिए, सदा सत्य को माप।।
जगण (121) *(सृजन शब्द-- विकास )*
होता घोर विनाश है, नित विकास के नाम।
फैला भ्रष्टाचार है, रहा अधूरा काम।।
भगण (211) *(सृजन शब्द-- घायल )*
घायल है यह दिल बहुत, कौन करे उपचार।
गजानंद नित चाहता, आप सभी का प्यार।।
नगण (111) *(सृजन शब्द-- चमक )*
चमक कभी खोता नहीं, सोना पाकर ताप।
सोने के जैसा चमक, रखें सदा हम आप।।
----- 🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 29/04/2024
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गणात्मक दोहा लिखें-----
मगण (222) *(सृजन शब्द-- आशंका)*
आशंका मन में कभी, आने मत दो आप।
आशंका से सुख नहीं, बढ़ता है संताप।।
यगण (122) *(सृजन शब्द-- तलाशी)*
करें तलाशी आप हम, कहाँ छुपा है चोर।
सोया चौकीदार है, रखकर हृदय कठोर।।
रगण (212) *(सृजन शब्द-- पैरवी)*
करो पैरवी सत्य का, झूठ न देना साथ।
हो वजूद इंसानियत, सदा बढ़ाना हाथ।।
सगण (112) *(सृजन शब्द-- मँहगी)*
गजानंद सच मान लो, दिल है महँगी चीज।
सभी दिलों में हम उगा, चलें प्रेम का बीज।।
तगण (221) *(सृजन शब्द-- जंजीर)*
बँधा प्रेम जंजीर से, हम दोनों का साथ।
जीवन जीना है हमें, रख हाथों में हाथ।।
जगण (121) *(सृजन शब्द-- झकास)*
लिया धरा ने आज है, मोहक रूप झकास।
स्वागत माह बसंत का, आतुर फूल पलाश।।
भगण (211) *(सृजन शब्द-- वादन)*
शुभ वीणा वादन करो, सरस्वती माँ आज।
देना आशीर्वाद माँ, बन जाये सब काज।।
नगण (111) *(सृजन शब्द-- अमर)*
सदा अमर रहता यहाँ, नेक कर्म प्रतिसाद।
गजानंद पात्रे सदा, बात रखो यह याद।।
-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 30/04/2024
---- *बिलासा छंद महालय*