सोमवार, 29 अप्रैल 2024

गणात्मक दोहे-

 शुभ गण– यमभन

अशुभ गण– सतरज 

गणात्मक दोहे

(वार्णिक गण)------

मगण (222)

*जिज्ञासा* जिंदा रखो, *अज्ञानी* अब चेत।

भटके *संसारी* यहाँ, बन *बंजारा* प्रेत।।


*यगण (122) (पूर्व में त्रिकल लगाये)*

नया *जमाना* आ गया, सभी *नशीले* लोग।

नमन *प्रभाती* भूलकर, सतत *सुहाते* भोग।।


रगण (212) (पूर्व में त्रिकल लगाये)*

सुमन *वाटिका* से भरा, करे *कामिनी* नृत्य।

मधुर सुनाती *रागिनी*, बजे *पैजनी* वृत्य।।


सगण (112)

*अपने सपने* सत्य हैं, *लगता बरसों* बाद।

*चलते चलते* आ गये, *लगता बजते* नाद।।


तगण (221)

मिलता है *संसार* में, संसारी *जंजाल*।

इसे तनिक *आभास* कर, कहता नर *कंकाल*।।


जगण (121) (पूर्व में द्विकल लगाये)*

अब *विकास* गंगा बही, हर *निकाय* आनंद।

हर्षित *किसान* लग रहे, रक्षित सिंह *गयंद*।।


भगण (211)

*पावन सावन* आ गया, *नेवर किंकिनि* शोर।

*दादुर झिंगुर* सुर षडज, *साजन आँगन* तोर।।


नगण (111)

*जनम जनम* का साथ है, *मुदित मगन* चल पंथ।

*सहज सरल* बनना *पथिक*, *परम प्रणव* उन्मंथ।।

*--- डॉ. रामनाथ साहू "ननकी"*

       *संस्थापक, छंदाचार्य* 

 *(बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)*

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- आवारा)*

आवारा पशु बन फसल, करते हैं नुकसान।

गायब चारागाह अब, देना इस पर ध्यान।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- विवेकी)*

बुद्धि विवेकी ज्ञान का, होता जग में मान।

सहज सरल व्यवहार से, बनते मनुज महान।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- मोहिनी)*

मंत्र मोहिनी जानिए, मुँह का मीठा बोल।

दुनिया को वश में करें, शब्द कहें अनमोल।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- पहुना)*

आये पहुना द्वार जब, करें मान सम्मान।

कहते बुजुर्ग हैं सभी, पहुना है भगवान।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- आराम)*

है आराम हराम यह, सूक्ति जवाहर लाल।

श्रम से ही होते सदा, जग में ऊँचा भाल।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- किसान)*

वंदन करूँ किसान को, धरती का भगवान।

भरते सबका पेट जो, बन करके वरदान।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- रावण)*

गली-गली रावण खड़ा, द्वार-द्वार पर कंस।

कौवे मोती चुग रहें, बन करके अब हंस।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- वतन)*

सबसे प्यारा है वतन, मेरा भारत देश।

जहाँ एकता प्रेम का, सुंदर है परिवेश।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/04/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- आभारी )*

छंद महालय से मिला, मुझको छंद विधान।

आभारी गुरु आपका, कर दो आप समान।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- उजाला )*

फैला है चारो तरफ, अंधकार घनघोर।

करो उजाला आप गुरु, विनती है कर जोर।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- साधना )*

सतत साधना से हुआ, सफल सभी निज काम।

कर्मशील इंसान का, होता जग में नाम।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- सजना )*

सजना मेरे हाथ में, दे दो अपना हाथ।

छूटे मत सातो जनम, तेरा मेरा साथ।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- बाजार )*

यह जीवन बाजार है, कर लो सौदा आप।

अमल करो खुद के लिए, सदा सत्य को माप।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- विकास )*

होता घोर विनाश है, नित विकास के नाम।

फैला भ्रष्टाचार है, रहा अधूरा काम।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- घायल )*

घायल है यह दिल बहुत, कौन करे उपचार।

गजानंद नित चाहता, आप सभी का प्यार।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- चमक )*

चमक कभी खोता नहीं, सोना पाकर ताप।

सोने के जैसा चमक, रखें सदा हम आप।।

----- 🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 29/04/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- आशंका)*

आशंका मन में कभी, आने मत दो आप।

आशंका से सुख नहीं, बढ़ता है संताप।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- तलाशी)*

करें तलाशी आप हम, कहाँ छुपा है चोर।

सोया चौकीदार है, रखकर हृदय कठोर।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- पैरवी)*

करो पैरवी सत्य का, झूठ न देना साथ।

हो वजूद इंसानियत, सदा बढ़ाना हाथ।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- मँहगी)*

गजानंद सच मान लो, दिल है महँगी चीज।

सभी दिलों में हम उगा, चलें प्रेम का बीज।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- जंजीर)*

बँधा प्रेम जंजीर से, हम दोनों का साथ।

जीवन जीना है हमें, रख हाथों में हाथ।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- झकास)*

लिया धरा ने आज है, मोहक रूप झकास।

स्वागत माह बसंत का, आतुर फूल पलाश।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- वादन)*

शुभ वीणा वादन करो, सरस्वती माँ आज।

देना आशीर्वाद माँ, बन जाये सब काज।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- अमर)*

सदा अमर रहता यहाँ, नेक कर्म प्रतिसाद।

गजानंद पात्रे सदा, बात रखो यह याद।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 30/04/2024

---- *बिलासा छंद महालय*



शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

दोहा छंद- अर्ध सममात्रिक छंद

 *---अर्ध सममात्रिक---* 

   *जिस मात्रिक छंद के पहले और तीसरे अर्थात विषम चरणों के और दूसरे एवं चौथे अर्थात सम चरणों के लक्षण समान हो उसे अर्ध सममात्रिक  कहते हैं।*

*दोहा छंद--- (कुल 48 मात्रा) यति - गुरु लघु*

   *यह द्विपदी अर्द्ध सममात्रिक छंद है। इसके प्रति पद में 24 मात्रा होती है। प्रत्येक पद 13, 11 मात्रा के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है। 13 मात्रा के चरण को विषम चरण कहा जाता है और 11 मात्रा के चरण को सम चरण कहा जाता है। दोहा के विषम चरण का प्रारम्भ जगण (121), पंचकल तगण (221), सप्तकल से नहीं होता।*

*कल संयोजन----*

*(1) विषमकल संयोजन----*

*332(212), 332(21)*

*(2) समकल संयोजन-----*

*44(212), 44(21)*

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    *दिनांक -- 22/04/2024*

*दिन --सोमवार*

*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*यति - 13,11*

*परिचय-- चार चरण 48मात्रा*

*पदांत--  गुरु लघु आवश्यक*

*सृजन शब्द-- नमन*

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नमन पटल गुरुदेव को, नमन महालय छंद।

दिए मुझे हैं छंद का, सर्व श्रेष्ठ मकरंद।।


आओ सीखें आज हम, दोहा छंद विधान।

सब छंदों का मूल यह, कहते सब विद्वान।।


चार चरण दो पंक्ति से, बनते दोहा छंद।

मात्रा अड़तालीस कुल, यति गति चौबंद।।


कुल मात्रा चौबीस ही, रखना दोनों पाद।

विषम चरण तेरह रहे, हो सम ग्यारह याद।।


कभी जगण से छंद को, करें नहीं शुरुआत।

दूर पंचकल से रहें, ध्यान रखें यह बात।।


प्रथम तृतीय चरण सदा, कहें विषम कल आप।

दूजा चौथा सम चरण, छंद विधा परिमाप।।


कल संयोजन छंद का, होता अभिन्न अंग।

कहाँ विषम सम कल रखें, ताकि न लय हो भंग।।


विषम चरण का जान लें, मात्रा योजन भार।

तीन तीन दो तीन दो, अंत रखें गुरु सार।।


समकल चरणों में रखें, चार-चार अरु तीन।

सजते बढ़िया गेयता, लिखना हो तल्लीन।।


गजानंद दोहा लिखे, पाकर गुरु से ज्ञान।

गुरु चरणों में है नमन, कभी न हो अभिमान।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 22/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- रंग*

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रंग बिरंगे लोग हैं, रंग बिरंगे बोल।

फिर भी मेरे देश में, समरसता अनमोल।।


संविधान ने है दिया, सबको सम अधिकार।

जाति- धर्म से हो परे, रखें प्रीत व्यवहार।।


बागों में सब फूल खिल, भरते रंग बहार।

इसी तरह हम आप मिल, करें सुखद संसार।।


करें बड़ों का मान हम, छोटों को दें प्यार।

अतिथि देव समतुल्य है, मिला हमें संस्कार।।


त्यागें हम कुविचार को, अपनायें सुख राह।

गजानंद संभव तभी, परहित चाह अथाह।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 22/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- चलता हूँ अविराम*

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परहित सेवा भाव रख, चलता हूँ अविराम।

जीते जी इस लोक में, पाने को सुख धाम।।


करता हूँ नित कामना, प्रभु जी देना साथ।

दुखियों की करने मदद, सदा बढ़े यह हाथ।।


ढोंग रूढ़ि पाखंड का, लगे कभी मत रोग।

सच्चाई की हो परख, पाऊँ सुखद सुयोग।।


कर्म वचन अरु सोच में, भरना प्रेम मिठास।

कभी किसी को मत मिले, व्यवहारों से त्रास।।


कर्तव्यों के राह में, करूँ सफलता पार।

गजानंद प्रभु आपसे, करता करुण पुकार।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 23/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- उपहार*

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इस जीवन को मानिए, सतगुरु का उपहार।

इसीलिए करते रहें, जीव जगत से प्यार।।


मानव-मानव एक का, रखिये मन में भाव।

घायल करते सोच को, जाति-धर्म का घाव।।


सभी जन्म से एक हैं, खून सभी का एक।

मानवता के राह पर, कर्म बनाओ नेक।।


सत्य अहिंसा प्रेम का, पढ़ लें हम सब पाठ।

दीन-दुखी सेवा बिना, मानव तन है काठ।।


स्वर्ग नर्क के फेर में, पड़ना मत इंसान।

गजानंद शुभ कर्म पर, रखना हरदम ध्यान।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 23/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- करना है मतदान*

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लोकतंत्र का पर्व यह, पावन पुण्य महान।

गजानंद हर एक को, करना है मतदान।।


संविधान ने है दिया, मतादान अधिकार।

एक-एक मत कीमती, करना बात विचार।।


जनता बन बगुला भगत, बैठे क्यों खामोश।

लूट रहे हैं अस्मिता, अब तो आओ होश।।


गजानंद कहते फिरे, सच्चाई के साथ।

शिक्षा भी विकलांग है, निजीकरण के हाथ।।


रोजगार व्यापार से, दूर युवा हैं आज।

काम नहीं हर हाथ में, वंचित लोक सुराज।।


भूल कभी जाना नहीं, हक मुद्दे की बात।

नेता देते खोखले, जन-जन को खैरात।।


जाति-धर्म पर जो करे, राजनीति का खेल।

इन नेताओं का रहा, निज विकास से मेल।।


परम हितैषी बन खड़े, घर-घर आज जनाब।

पाँच वर्ष का माँगना, इनसे आप हिसाब।।


बिजली पानी घर सड़क, है जीवन आधार।

और चाहिए क्या भला, जनता को सरकार।।


नहीं चाहिए बोल दो, मंदिर मस्जिद चर्च।

रोजगार सुख स्वास्थ्य अरु, शिक्षा पर हो खर्च।।


गजानंद नेता चुनो, सदुपयोग कर वोट।

तेरे मत से ही तुम्हें, मत पहुँचाये चोट।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 24/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- पतवार*

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सतगुरु जीवन नाव का, बने रहो पतवार।

दया दृष्टि से आपकी, कर जाऊँ भव पार।।


करना इच्छाशक्ति को, आप सदा मजबूत।

मन में दृढ़ विश्वास हो, तन में भक्ति भभूत।।


गुरु से बढ़कर है नहीं, दुनिया में भगवान।

जिनके ज्ञान विवेक से, बनते मनुज महान।।


शिक्षा का गुरु दीप बन, करते ज्ञान उजास।

गजानंद गुरु के बिना, कौन बँधाये आस।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 24/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- वादे झूठे कर गये*

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वादे झूठे कर गए, नेता जी हर बार।

वोट माँगने आज फिर, आये हैं वे द्वार।।


बाँध पुलिंदा झूठ का, फेंक रहें हैं जाल।

करो भरोसा अब नहीं, मत गलने दो दाल।।


पाँच वर्ष तक क्या किये, इनसे करो सवाल।

भूले देश विकास को, सोये नींद निढाल।।


जाति-धर्म के नाम पर, खूब मचाये रार।

जनता की तकलीफ को, किये नहीं स्वीकार।।


भूख गरीबी है बढ़ा, महँगाई की मार।

तरस रहें सुख कौर को, कौन करे उद्धार।।


चोर लुटेरों को मिला, निस दिन छूट पनाह।

चीख रही जनता यहाँ, कौन सुझाये राह।।


वंचित दलित समाज पर, होते शोषण रोज।

नेता इससे हो परे, करते छप्पन भोज।।


सत्ता स्वयं विशेष का, पाने को है होड़।

नेता जी अब चुप रहो, चुपड़ी बातें छोड़।


समझ रहें हर बात को, समझ रहें हर चाल।

गजानंद अब तो इन्हें, बाहर फेक निकाल।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 25/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- लोकतंत्र का पर्व*

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आया मेरे देश में, लोकतंत्र का पर्व।

करके अब मतदान हम, कर लें खुद पे गर्व।।


अपने सोच विवेक से, चुनना नेता नेक।

जाति धर्म से हो परे, सबको मानें एक।।


करना वोट खराब मत, पड़ करके तुम लोभ।

वरना सहना है तुम्हें, पाँच वर्ष दुख क्षोभ।।


हक मुद्दें की बात को, रख लेना तुम ध्यान।

करने देश विकास निज, करना है मतदान।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 25/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- नर तन है अनमोल*

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पाये हो सौभाग्य से, नर तन है अनमोल।

मानवता के राह चल, बोलो मीठा बोल।।


सत्य अहिंसा प्रेम का, पाठ पढ़ो तुम नेक।

सभी जन्म से एक हैं, लहू सभी का एक।।


हाड़ मांस अरु खून से, सबका बना शरीर।

सुख भी सबका एक है, एक सभी का पीर।।


जीव चराचर के लिए, भर लो मन में नेह।

मिल जायेगा एक दिन, मिट्टी में यह देह।।


भक्ति रंग में रंग कर, कर लो प्रभु का जाप।

दया दृष्टि प्रभु का मिले, मिट जाये संताप।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 26/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- परिवर्तन का दौर है*

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परिवर्तन का दौर है, गाँव शहर में शोर।

गया सिंहासन हाथ से, छोड़ लगाना जोर।।


बहुत लिए हो लूट तुम, बहुत मचाये रार।

आपस लोगों को लड़ा, बन बैठे सरकार।।


समझदार जनता बहुत, समझ गए हर बात।

अपने मत अधिकार से, बदलेंगे हालात।।


संविधान से आप हम, संविधान से देश।

संविधान ने है दिया, सबको सुख परिवेश।।


परिवर्तन का दौर है, परिवर्तित हो देश।

सबको सुख जीवन मिले, मिट जाये हर क्लेश।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 26/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- बजरंगी गुण धाम*

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परम भक्त प्रभु राम के, बजरंगी हनुमान।

शरण पड़ा हूँ आपके, देना मुझ पर ध्यान।।


करूँ भजन मैं आरती, लेकर पूजा थाल।

श्री चरणों में आपके, झुके रहे नित भाल।।


दुख विपदा भंजन करो, बजरंगी गुण धाम।

नाम हृदय में लूँ बसा, मैं तो आठों याम।।


राम काज करने सदा, रहते आतुर आप।

माता सीता खोज में, नीरनिधि दिये नाप।।


बाहुबली हनुमान जी, देना बुद्धि विवेक।

भक्तों के रक्षक बनो, कर्म बना दो नेक।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 27/04/2024

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*आधार छंद-- दोहा अर्ध सममात्रिक छंद*

*सृजन शब्द-- जाग अरे इंसान*

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सोया वह खोया सदा, जाग अरे इंसान।

समय कभी लौटा नहीं, देना इस पर ध्यान।।


श्रम का फल मीठा मिले, इंतजार रख धीर।

श्रम से मिलता मान पद, दूर हुये हैं पीर।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 27/04/2024

सोमवार, 15 अप्रैल 2024

पद्मावती छंद- आधार छंद मापनीमुक्त

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*दिनांक -- 15/04/2024*

*दिन -- सोमवार*

*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*यति - 10,8,14*

*परिचय-- लाक्षणिक 32 मात्रा*

 *वर्ग भेद -- (35,24,578)*

*पदांत--  दो गुरु आवश्यक*

*सृजन शब्द--जगदंबे सदन पधारो*

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नव ज्योति जलाऊँ, द्वार सजाऊँ, जगदंबे सदन पधारो।

गाऊँ जगराता, नौ दिन माता, ममता का हाथ पसारो।।

माँ नैन निहारो, कृपा विचारो, कर विघ्न हरण सुख देना।

शुभ भक्ति जगाओ, ज्ञान बताओ, भक्तों का नित सुध लेना।।


कर कष्ट निवारण, दो सुख धारण, भव संकट पाप उबारो।

खाऊँ मत भटका, मन में खटका, भ्रम मैं का दोष उतारो।।

जन्मों का नाता, तू है माता, मैं तेरा पुत्र कहाऊँ।

लो थाम मुझे माँ, छोड़ तुझे माँ, जीवन में चैन न पाऊँ।।


है दिव्य सिंहासन, माँ का आसन, चरणों में माथ झुकाऊँ।

इज्जत दे नारी, बन संस्कारी, बेटे का कर्ज चुकाऊँ।।

है सबसे प्यारा, देश हमारा, नित इसका मान बढ़ाऊँ।

माँ त्याग अहम को, लोभ वहम को, मानवता पाठ पढ़ाऊँ।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 15/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- माया में भूला*

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माया में भूला, भ्रम में झूला, दास अहम का मत होना।

कर याद जमाना, फिर पछताना, व्यर्थ मनुज छोड़ो रोना।।

नित मीठा बोलो, हिय पट खोलो, वाणी सम्मान दिलाता।

कर कर्म सुशासित, बोल सुभाषित, शिक्षा व्यवहार मिलाता।।


मन से मत हारो, नेक विचारो, सोच सदा रखना आगे।

रख अटल इरादा, कर दृढ़ वादा, हार उठा दुम तब भागे।।

मानों श्रम पूजा, और न दूजा, हँसी खुशी तुमको देगा।

ताकत बाहों का, दुख राहों का, जोर लगाकर हर लेगा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 16/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- सुंदर काया*

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तुमने जो पाया, सुंदर काया, छोड़ो इस पर इतराना।

कुछ काम न आया, धन पद माया, छोड़ यही पर है जाना।।

नित नेकी कर लो, खुशियाँ भर लो, हाथ बढ़ा परहित सेवा।

सुख कौर खिलाओ, मत तरसाओ, मातु पिता जग में देवा।।


प्यासे को पानी, मीठ जुबानी, साथ रखे चल सच्चाई।

मन कुंठा छाँटो, द्वेष न बाँटो, मत खोदो दुख की खाई।।

प्रभु का गुण गाओ, विघ्न हटाओ, भव सागर पार लगाना।

रख प्रेम निगाहें, चलना राहें, नाम अमर जग कर जाना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 16/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- दीप जलाओ*

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अब हर्ष मनाओ, दीप जलाओ, पर्व रामनवमीं आया।

बन पालनहारी, प्रभु अवतारी, सबके मन को हर्षाया।।

वन पात कली में, द्वार गली में, गाँव शहर खुशियाँ छाई।

सब झूम रहे हैं, बाँह गहे हैं, देते आनंद बधाई।।


प्रभु धाम सजाओ, ढोल बजाओ, आज मनाओ दीवाली।

शुभ अवधपुरी है, धर्म धुरी है, बनें धर्म का हम माली।।

मन भक्ति भरो अब, गर्व करो सब, हम सब हिन्दू कहलायें।

संस्कारित पावन, अति मनभावन, यह भारत भूमि बनायें।।


है धर्म सनातन, वेद पुरातन, सब इसकी महिमा गायें।

रख भाईचारा, जग में न्यारा, राम राज्य भारत लायें।।

पूजा दीक्षा का, जब शिक्षा का, सबको अधिकार मिलेगा।

कटुता न कभी हो, एक सभी हो, तब समता फूल खिलेगा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 17/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- मंगल गाओ*

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शुभ पर्व मनाओ, मंगल गाओ, आये प्रभु राम हमारे।

दशरथ के नन्दन, रघुपति वंदन, जग-जन के आप दुलारे।।

उर मन में रहते, घट-घट बसते, कण-कण में वास तुम्हारा।

करते हैं आदर, जीव चराचर, कर दो प्रभु नाव किनारा।।


जग पालनहारी, मंगलकारी, दुखियों के हैं रखवाले।

प्रभु आन बिराजे, शुभ सुख साजे, पथ से विपदा को टाले।।

सब खुशी मनाते, मंगल गाते, प्रभु की करते जयकारा।

गुणगान करें सब, मग्न हुए अब, पर्व रामनवमीं प्यारा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 17/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- तुम कब आओगे*

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तुम कब आओगे, मिल पाओगे, बस लगता है सपनों में।

तुम ही हो धड़कन, मेरी तड़पन, माना तुमको अपनों में।।

बन प्रेम पुजारी, सब कुछ वारी, तुझ पर होकर बलिहारी।

हूँ सब कुछ भूला, मन में झूला, बाँध रखा हूँ मैं यारी।।


सपनों की रानी, हो मस्तानी, रूप सलोना मन भाया।

कोयल सी बोली, हँसी ठिठोली, इस दिल पर तीर चलाया।।

कुंतल की छाया, जब से पाया, तब से हूँ मैं दीवाना।

बाहें लग जाओ, पास बुलाओ, छोड़ो प्रियवर तड़पाना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 18/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- माँ की लोरी*

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ममता की डोरी, माँ की लोरी, बाँध रखे मन काया को।

विपदा हर लेती, सुख यश देती, आँचल शीतल छाया को।।

सब जीव चराचर, माँ का आदर, करते दिल गहराई से।

शुभ राह दिखाते, सीख सिखाते, माँ हमकों सच्चाई से।।


माँ प्रेम समर्पित, करके अर्पित, हुए पुत्र पर बलिहारी।

हो पुलकित माँ तन, मुदित हुए मन, भरे पुत्र जब किलकारी।।

जब देख न पाती, माँ घबराती, रखे बसाये नजरों में।।

नयनों के तारा, राज दुलारा, बेटे माँ की अधरों में।।


मुख मोड़ गई माँ, छोड़ गई माँ, पल-पल याद सताती है।

ममता की गोदी, मैंने खो दी, नींद नहीं अब आती है।।

परलोक सिधारे, पिता हमारे, प्रभु दुख दिन क्यों लाते हो।

है मृत्यु अटल पर, नैन पटल पर, क्यों तस्वीर बसाते हो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- दिल बेचारा*

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है गम का मारा, दिल बेचारा, नाम तुम्हारा लेता है।

बन गैर अमानत, रहो सलामत, सदा दुआयें देता है।।

सब सपने तेरे, साथी मेरे, अपना मैनें माना है।

है प्यार इबादत, मेरी चाहत, रूप खुदा का जाना है।।


तुम प्रीत निभाना, छोड़ न जाना, रहना मेरे सपनों में।

तुम दिल की धड़कन, मेरी तड़पन, माना तुझको अपनों में।।

तुमसे ही आसें, चलती सांसे, माना तुमको है पूजा।

प्राणों से प्यारे, जान हमारे, और नहीं कोई दूजा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- बहती धारा*

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कर नाव किनारा, बहती धारा, सोच यही रख चलना है।

सब सबक सिखाता, समय बताता, किस पथ कैसे ढलना है।।

सब साथी सुख में, साथ न दुख में, लोग यहाँ पर देते हैं।

रिश्तें मतलब का, लगते अब का, साँस हरण कर लेते हैं।।


पग-पग में धोखा, कष्ट झरोखा, शूल बिछा है राहों में।

अब प्रीत पराई, शक की खाई, दिखते लोभ निगाहों में।।

है सब कुछ पैसा, युग यह ऐसा, देखो कैसा आया है।

भाई से भाई, करे लड़ाई, घर-घर मातम छाया है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- चल आज मुसाफिर*

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चल आज मुसाफिर, सुख हित खातिर, पाँव उठा बढ़ना आगे।

खुद कर्म लगन से, ईश भजन से, दूर आपदा दुख भागे।।

यश छाँव मिलेगा, फूल खिलेगा, गुलशन और बहारों में।

तम त्याग बुराई, सोच भलाई, रखना प्रेम नजारों में।।


मन भ्रम मत पालो, प्रभु गुण गा लो, लौट नहीं कल आयेगा।

मिट्टी यह काया, धन पद माया, मिट्टी में मिल जायेगा।।

खुद का क्या खोया, क्यों तू रोया, साथ न कुछ ले जाना है।

छोड़ो पछताना, अश्रु बहाना, दो गज मिट्टी पाना है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/04/2024










मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

रुचिरा सममात्रिक छंद- आधार छंद

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*दिनांक -- 08/04/2024*

*दिन -- सोमवार*

*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*यति -14,16*

*परिचय-- महातैथिक 30 मात्रा

 *वर्ग भेद -- (13,46, 269)*

*पदांत-- एक गुरु आवश्यक*

*सृजन शब्द-- अब सिंहासन डोल रहा*

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अब सिंहासन डोल रहा, चमचों की नव चमचाई से।

गिर रही देश की हालत, सोचो दिल की गहराई से।।

अंधभक्ति की लगन लगी है, दूर सभी हैं सच्चाई से।

देश सुरक्षित कैसे हो, गद्दारों की परछाई से।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 08/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- बहकावे में मत आना*

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बहकावे में मत आना, सोच समझकर कदम बढ़ाना।

शूल बिछे मत राहों में, सदा शांति का पाठ पढ़ाना।।

द्वेष भावना को छोड़ो, आपस का तकरार हटाओ।

दूत प्रेम का बन जीना, इस जीवन से घृणा घटाओ।।


जाति-पाति के बंधन में, नहीं जकड़कर जीवन जीना।

मानवता धर्म बनाओ, सीखो दुख को हँसकर पीना।।

सभी जन्म से एक यहाँ, फिर किसने क्यों भेद किया है।

आग हवा नभ नीर धरा, सेवा एक समान दिया है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 09/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द--   कृपा करो माता रानी*

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कृपा करो माता रानी, द्वार आपके मैं आया हूँ।

भाव भक्ति को साथ लिए, चरणों में माथ झुकाया हूँ।।

दीन गरीब पुकारे माँ, शुभ सबका भाग्य बनाते हो।

अपने भक्त जनों पर नित, माँ दया प्रेम बरसाते हो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 09/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- श्री सुख समृद्धि का वर दे*

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श्री सुख समृद्धि का वर दे, हे माता रानी जगदम्बे।

कष्ट निवारण आप करो, मातु भवानी शारद अम्बे।।

करूँ जोड़ कर विनती माँ, ज्ञान पुंज की ज्योति जला दो।

लिखूँ आपकी महिमा को, ऐसी मुझको कलम कला दो।।


मत कभी निराश रहूँ मैं, पास रखो चरणों में अपने।

मन मंदिर में वास करो, पूर्ण करो माँ मेरे सपने।।

भक्ति भाव उर साज लिए, जगराता माता मैं गाऊँ।

धन्य करो इस जीवन को, सहज सरल दर्शन को पाऊँ।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 10/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द- *माता का जगराता कर लें* 

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चैत्र मास मनभावन है, माता का जगराता कर लें।

ज्योति जलायें श्रद्धा की, भक्ति भाव हम उर में भर लें।।

आये माँ नौ रूप लिए, नौ दिन पर्व सुहावन करने।

गजानंद गुणगान करे, भवसागर से खुद को तरने।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 10/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- पूर्ण साधना का पथ दो*

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पूर्ण साधना का पथ दो, गुरु उर में ज्ञान प्रकाश भरो।

राह दिखाओ सत्य सदा, गुरु मन का दूर विकार करो।।

बनकर मैं गुरु अनुगामी, सच का नित्य प्रचार करूँ।

ढोंग रूढ़ि पाखंड मिटे, शब्दों से कलम प्रहार करूँ।।


कहाँ फिरोगे दर-दर तुम, मन मंदिर देव बसा लेना।

देव असल है मातु पिता, कर सेवा भक्ति लुटा देना।। 

तथाकथित का त्याग करो, छोड़ो अंधभक्ति में जीना।

गजानंद सच कहता है, तब नहीं पड़ेगा गम पीना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 11/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- करूँ आरती नित्य तुम्हारी*

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भक्ति भाव की थाल सजा, करूँ आरती नित्य तुम्हारी।

दास बना हूँ द्वार खड़ा, करो कृपा माँ मंगलकारी।।

श्रद्धा फूल चढ़ाऊँ मैं, चरणों में माँ स्वीकार करो।

लोभ अहं से दूर रखो, नित त्याग प्रेम की भाव भरो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 11/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- पग पग पर पीड़ा देते हो*

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दीन गरीब पड़ा हूँ माँ, क्यों रोज परीक्षा लेते हो।

भूल हुई है क्या मुझसे, पग-पग पर पीड़ा देते हो।।

बिखर गया अपनों से ही, अपनों ने मुझको छोड़ दिए।

लोग जुड़े थे स्वार्थ लिए, सब दुख में नाता तोड़ दिए।।


सुन लो पुकार मेरी माँ, खुशियों की झोली भर देना।

परहित सेवा पाँव उठे, नित ऐसा मुझको वर देना।।

लोग पराये हो जाये, पर मुझे पराये मत करना।

रखूँ सभी को जोड़ सदा, माँ कृपा शक्ति मुझमें भरना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 12/04/2024


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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- भाव भजन अर्पित है तुमको*

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मन में ज्योति जला श्रद्धा, भाव भजन अर्पित है तुमको।

शरण पड़ा हूँ भक्त बने, माँ भव से पार लगा मुझको।।

विघ्न हरण करना माँ नित, दूर रखो दुख परछाई से। 

करना शांति प्रदान सदा, मन को भरना सच्चाई से।।


दयावान सागर करुणा, प्रतिमूर्ति हो माँ ममता की।

कभी परीक्षा मत लेना, दुख सहनशीलता क्षमता की।।

जन्म- जन्म का हो नाता, माँ मुझको बेटा कह देना।

भक्ति भजन में भूल हुई, तो पुत्र समझ माँ सह लेना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 12/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द--  बदल गये सब चलते- चलते*

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जो लोग करीब रहे वो, बदल गये सब चलते-चलते।

पड़ा रहा मैं स्तब्ध हुए, हाथ दुखी से मलते-मलते।।

मिला सबक अपनों से ही, किसे पराया अपना मानें।

स्वार्थ लिए हैं लोग खड़े, किसको कैसे हम पहचानें।।


धोखा इस कदर बढ़ा है, भाई ही भाई को देते।

लोग मतलबी आज हुए, बाँट पिता माता को लेते।।

गायब है सुख परछाईं, दुख ही दुख हर कोने में।

खुद ही जिम्मेदार सभी, रिश्ते- नाते को खोने में।।


समय किसी के पास नहीं, सुख-दुख में शामिल होने को।

नही मिलेगा सुन साथी, अब बाँह लिपटकर रोने को।।

दो गज बस कफ़न मिलेगा, सब धरा-धरा रह जायेगा।

गजानंद कर लो नेकी, कर याद समय पछतायेगा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 13/04/2024

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*आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द--  आज मिला आशीष तुम्हारा*

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तुम्हें पुकारूँ कर दो माँ, इस जीवन का नाव किनारा।

बसा लिया मन मंदिर में, आज मिला आशीष तुम्हारा।।

तमस मिटा काटो तम को, मन में भरना ज्ञान पिपासा।

भटक कहीं मत जाऊँ माँ, मुझको देना धीर दिलासा।।


विंध्यवासनी जगदम्बे, है माँ रूप अनेको तेरे।

छाँव कृपा हर पल देना, संकट मुझे कभी मत घेरे।।

नित्य आपसे चाह रखूँ, माँ प्रथम भक्त में हो गिनती।

कभी न टूटे उम्मीदें, सुन लो गजानंद की विनती।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 13/04/2024







गीतिका छंद (हिंदी)- सममात्रिक

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*दिनांक -- 02/04/2024*

*दिन --मंगलवार*

*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*यति -14,12*

*परिचय-- अवतारी 26 मात्रा -वर्ग भेद (196,418)*

मापनी:-2122- 2122, 2122- 212

*पदांत-- 12*

*सृजन शब्द-- प्रात की बेला सुहानी*

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प्रात की बेला सुहानी, आप से मुझको मिला।

इस हृदय के ताल में प्रभु, फूल खुशियों का खिला।।

आप ही करतार मेरे, आप ही भगवान हो।

बस यही चाहत रखूँ मैं, हर घड़ी प्रभु ध्यान हो।।


शक्ति दो दुख सह सकूँ प्रभु, थाम लेना हाथ को।

पाँव सच पथ में बढ़े नित, छोड़ना मत साथ को।।

माँ पिता अब आप मेरे, ज्ञात हो प्रभु आपको।

टूट जाऊँ मत कभी मैं, देख जग संताप को।।


हूँ पुजारी कर्म का मैं, सत्य की प्रतिक्रांति हूँ।

झूठ प्रति अंगार हूँ मैं, दूत मैं सुख-शांति हूँ।।

भिज्ञ हूँ दुख मर्म से मैं, हो निवारण कष्ट का।

इसलिए तो हूँ खड़ा मैं, द्वार अपने इष्ट का।।

*---इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 02/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- शब्द की जादूगरी है*

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शब्द की जादूगरी है, शब्द से मन बाँधना।

शब्द मर्यादा सिखाती, भूलकर मत लाँघना।।

शब्द उठती है हृदय से, भाव के झंकार से।

हैं अधूरे लोग वे जो, हो न प्रेरित प्यार से।।


जन्म माता ने दिया तो, शब्द सीखा बाप से।

सीख शुभ संस्कार सीखा, शब्द मैनें आप से।।

शब्द सागर ज्ञान का है, शब्द है सच शोध का।

शब्द है आवाज दिल की, शब्द है नवबोध का।।


शब्द को पूजा बनाओ, शब्द में प्रभु वास है।

नित्य कष्टों में घिरा वह, शब्द मैं जो दास है।।

शब्द से ही मान सबका, शब्द ही पहचान है।

शब्द दे सन्देश सबको, ग्रंथ गीता ज्ञान है।।

---इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 03/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- परवरिश कैसे करूँ*

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सोचता मजदूर कैसे, पेट बच्चों का भरूँ।

क्या कमाऊँ क्या खिलाऊँ, परवरिश कैसे करूँ।।

शांति सुख से दूर हूँ मैं, दूर इस परदेश में।

था बहुत खुशहाल मैं भी, गाँव की परिवेश में।।


अजनबी मैं इस शहर में, दर्द का मारा फिरा।

बेबसी लाचार मन में, माथ चिंता से घिरा।।

काल महँगाई खड़ा है, दूत बनकर सामने।

है मसीहा कौन अब जो, पास आये थामने।।


योजना सरकार की सब, कागजों तक ही मिला।

बांट नेता खा गए हक, युग-युगों का सिलसिला।।

मान पाये दाम पाये, पूज्य श्रम को हो नमन।

मिल कदम आगे बढें हम, रोकने शोषण दमन।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 03/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- साथ तेरा जो मिले*

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मान लूँ मैं धन्य खुद को, साथ तेरा जो मिले।

दो मिटा शिकवे गिले सब, प्रीत का द्रुमदल खिले।।

आपसे चाहत भरी है, इस अधूरी रंग में।

छोड़ना मत साथ साथी, जिंदगी की जंग में।।


साथ देना हर घड़ी तुम, कामना करता रहूँ।

प्रेम में दुख इस तरह मैं, कब तलक सहता रहूँ।।

प्यार की लगती लगन जब, हूक उठती तब सनम।

आपको पाने प्रिये मैं, जी रहा हूँ सौ जनम।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 03/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- विश्व का कल्याण हो*

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कामना करता रहूँ मैं, विश्व का कल्याण हो।

रक्त तन-मन साँस मेरी, देश हित निर्वाण हो।।

जन्म पाया इस धरा में, धन्य किस्मत को कहूँ।

लाल भारत का कहाऊँ, गोद में इसके रहूँ।।


है तिरंगा शान मेरी, आन भी सम्मान भी।

गीत जन गण मन हमारा, एकता पहचान भी।।

बोल वंदेमातरम का, गूँजता जयकार है।

है हिमालय बन खड़ा नित, देश पहरेदार है।।


सिर सिंहासन से सजा है, गर्व भारत देश का।

हर तरफ तारीफ फैला, स्वच्छ शुभ परिवेश का।।

है भरा संस्कार सब में, प्रेम है विश्वास है।

राह उन्नति का बढ़ें सब, शांति सुख उल्लास है।।

🖊️ इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 04/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- भाव श्रद्धा भक्ति अर्पित*

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भाव श्रद्धा भक्ति अर्पित, आपको गुरुवर करूँ।

आपकी पाकर कृपा मैं, ज्ञान का सागर भरूँ।।

कामना गुरु भावना का, ज्योति मन जलती रहे।

आपके सतद्वार में गुरु, कष्ट भक्तन मत सहे।।


है अटल विश्वास गुरुवर, इस हृदय के भाव में।

प्रेम का मरहम लगाना, भक्त के दुख-घाव में।।

हो निवारण कष्ट का गुरु, शांति -सुख का पथ मिले।

जिंदगी में हो खुशी पल, फूल अधरों पर खिले।।


बुद्धि में गुरु शुद्धि भरना, दूर रखना क्लेश से।

हो कभी मत सामना छल, द्वेष की परिवेश से।।

हो विचारों में नयापन, स्वच्छ मन काया रहे।

त्याग कटुता मीठ बोलें, बोल में गंगा बहे।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द--प्रेम धन अनमोल प्यारे*

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प्रेम धन अनमोल प्यारे, कर जतन इसकी कदर।

प्रेम पाया जो नहीं वो, घूमते हैं दर-बदर।।

प्रेम परिभाषा समझना, हर किसी का वश नहीं।

जब खिले मन में बहारें, प्रेम का गुलशन वहीं।।


दो दिलों के मेल को ही, प्रेम कहते हैं यहाँ।

प्रेम से बढ़कर बताओ, है लगन किसमें कहाँ।।

प्रेम से परिवार घर है, प्रेम से संसार है।

प्रेम ही सुख नाव जग में, प्रेम ही पतवार है।।


बांटने से प्रेम बढ़ता, रीत है यह धर्म है।

दूसरें का दर्द समझे, प्रेम में ही मर्म है।।

प्रेम प्रभु का रूप जानें, प्रेम ही भगवान है।

प्रेम जिसके दिल समाहित, बस वही इंसान है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/04/2024

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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- चैत्र का शुभ मास है*

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आ गई नवरात्रि पावन, चैत्र का शुभ मास है।

ज्योति जगमग जल रही है, हर तरफ उल्लास है।।

भक्तिमय दरबार माँ का, शुभ कलश शुभ धाम है।

भक्त आते भक्ति गाते, पूज्य माँ का नाम है।।


रूप नौ माता लिए हैं, नष्ट करने पाप को।

विघ्न हरते हैं सदा माँ, भक्त के संताप को।।

माँ जगत जननी तुम्हें सब, बोलते हैं प्रेम से।

हैं झुकाते शीश नित ही, भक्ति में सब नेम से।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 06/04/2024








रोला छंद (हिंदी)- सममात्रिक

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*दिनांक -- 27/03/2024*

*दिन --बुधवार*

*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*

*यति -11,13*

*लक्षण- मापनी मुक्त*

*परिचय-- अवतारी 24 मात्रा -वर्ग भेद (75025)*

*पदांत-- 22/111/112*

*सृजन शब्द-- *निराला*

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छंद निराला श्रेष्ठ, लिखें हम मिलकर आओ।

रखे गेयता ध्यान, विधा में रोला गाओ।।

चार पंक्ति का छंद, आठ चरणें है होती।

उत्तम रखें तुकांत, झरे शब्दों में मोती।।


ग्यारह मात्रा खास, विषम चरणों में होती।

तेरह मात्रा भार, यहाँ सम चरण सँजोती।।

रोला छंद विशेष, मधुरमय इसकी तानें।

गजानंद इस राग, ताल पर गाते गानें।।


विषम चरण दो एक, अंत अनिवार्य यहाँ है।

जगण तगण शुरुआत, कभी स्वीकार्य कहाँ है।।

सम चरणें प्रारंभ, त्रिकल शब्दों से करना।

हो न गेयता भंग, ध्यान इस पर तुम रखना।।

---इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 27/03/2024

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*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द--- बहारें*

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लेकर साथ उमंग, बहारें झूम रही है।

गीत कोयली छेड़, दिलों की बात कही है।।

आया ऋतु मधुमास, बदन में आग लगाने।

विरह लिए दिन-रात, पिया की याद दिलाने।।


लाली रंग पलास, लुभाये सबके मन को।

बौराया है आम, सुशोभित कर उपवन को।।

रंग बिरंगे फूल, खिले हैं बाग सजाने।

आया माह बसन्त, दिलों में प्रेम जगाने।।


धरा किये श्रृंगार, चुनर ओढ़े हरियाली।

डाल-डाल हर पात, खुशी में देते ताली।।

वन में तेंदू चार, पके हैं मीठ रसीले।

गजानंद उत्साह, मनाते वन्य कबीले।।

---- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 27/03/2024

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*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*

सृजन शब्द- *चलो चलें अब गाँव*

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अमराई की छाँव, पुकारे नदी किनारे।

पीपल बरगद पेड़, गाँव के मित्र हमारे।।

खेत-खार खलिहान, लगे हैं बड़ा सुहावन।

चलो चलें अब गाँव, जहाँ की मिट्टी पावन।।


गाँव सिसकती आज, पड़ा कोनें में रोते।

मुझे दिलाने मान, पास सब अपने होते।।

पढ़े लिखे इंसान, नौकरी की चाहत में।

दूर बसे परदेश, छोड़ मुझको आहत में।।


सूनी है चौपाल, अदालत डाका डाला।

अपनों में बिखराव, लगा रिश्तों में ताला।।

करें पुनः गुलजार, प्रेम की बगिया आओ।

लौट शहर से गाँव, मीत मन गाना गाओ।।

--- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/03/2024

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*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*

सृजन शब्द-- उजाला

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द्वेष द्वंद को त्याग, करो नित प्रेम उजाला।

जीत सदा हो सत्य, झूठ का हो मुँह काला।।

कर्म धर्म का मर्म, बताना गुरुवर मुझको।

इस जीवन का नाव, बनाया हूँ मैं तुझको।।


नेक भलाई राह, नित्य पग बढ़ते जाये।

अहंकार की सोच, कभी भी पास न आये।।

परहित सेवा भाव, ध्येय हो इस जीवन का।

गुरुवर दूर विकार, करो इस अंतर्मन का।।


पाकर छंद विधान, लिखूँ मैं सुंदर रोला।

चढ़े सुशोभित शीर्ष, कलम शब्दों का डोला।।

मिले कृपा गुरु छाँव, शरण में आज पड़ा हूँ।

देना आशीर्वाद, दीन बन द्वार खड़ा हूँ।।

---इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/03/2024

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*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- परम प्रेम उपहार*

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होना नहीं उदास, कभी भी तुम जीवन में।

परम प्रेम उपहार, सजाये रखना मन में।।

बनना सबका मीत, बांटना सबको सुख पल।

बातें भुला भविष्य, आज में जी ले तू कल।।


सेवा कर निःस्वार्थ, दीन दुखियों का जग में।

शूल बिछाना छोड़, फूल रखना हर पग में।।

प्रीत पीर पर ध्यान, हमेशा रखकर चलना।

दिशा दशा अनुरूप, समय साँचे में ढलना।।


संत गुणी विद्वान, जनों का संगत करना।

दिव्य अलौकिक ज्ञान, हृदय पट अपने भरना।।

ढोंग रूढ़ि पाखण्ड, बचाये खुद को रखना।

गजानंद श्रम श्रेष्ठ, सुखद फल तुम नित चखना।।

*--- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 29/03/2024






बुधवार, 20 मार्च 2024

रास छंद- सममात्रिक

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      🌀 *बिलासा छंद महालय* 🐚 

*दिनांक -- 18/03/2024*

*दिन -- सोमवार*

*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*लक्षण- मापनी मुक्त*

*परिचय-- महारौद्र वर्ग भेद (28,657)*

*यति -- 8,8,6*

*पदांत-- IIS (सगण)*

*सृजन शब्द-- *लट बलखाती*

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लट बलखाती, कमर हिलाती, राह चले।

अधर गुलाबी, नैन शराबी, शाम ढले।।

दीवानी बन, चलती बन-ठन, गाँव गली।

जब मुस्काये, तीर चलाये, प्रेम कली।।


चाँद चकोरी, लगती गोरी, रूप सजे।

छम-छम पायल, करती घायल, पाँव बजे।।

छैल छबीली, उसकी बोली, प्रीत भरे।

रूप निखरती, जब वो हँसती, फूल झरे।।


देखा जब से, कायल तब से, यार हुआ।

तूने मन को, इस जीवन को, रोज छुआ।।

चाह अधूरी, कर दो पूरी, है सपना।

मन में ठाना, तुझको माना, प्रिय अपना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 18/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *दर्शन पाऊँ*

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दर्शन पाऊँ, शीश झुकाऊँ, भाव भरो।

सतगुरु ज्ञानी, हो वरदानी, कष्ट हरो।।

शब्द सुझाओ, ज्ञान बताओ, ध्यान धरूँ।

छंद सृजन हो, पुलकित मन हो, आस भरूँ।।


शरण पड़ा हूँ, द्वार खड़ा हूँ, गुरु वर दो

मैं अज्ञानी, हूँ नादानी, कृत कर दो।।

है अभिलाषा, ज्ञान पिपासा, गुरुवर से।

मिटे निराशा, भरो दिलासा, गुण बरसे।।


कलम उदित हो, मीत मुदित हो, चाह यही।

पाँव बढ़े सच, ईर्ष्या से बच, सोच सही।।

नष्ट अहं का, क्रोध वहम का, गुरु करना।

दीन-दुखी जन, सेवा ही धन, गुण भरना।।


🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- दर्शन पाऊँ*

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दर्शन पाऊँ, शीश झुकाऊँ, भाव भरो।

मातु भवानी, हो वरदानी, कष्ट हरो।।

शब्द सुझाओ, ज्ञान बताओ, ध्यान धरूँ।

छंद सृजन हो, पुलकित मन हो, आस भरूँ।।


शरण पड़ा हूँ, द्वार खड़ा हूँ, माँ वर दो

हूँ अज्ञानी, माता रानी, कृत कर दो।।

है अभिलाषा, ज्ञान पिपासा, गुरुवर से।

छंद बिलासा, भरे दिलासा, गुण बरसे।।


कलम उदित हो, मीत मुदित हो, चाह यही।

पाँव बढ़े सच, ईर्ष्या से बच, सोच सही।।

नष्ट अहं का, क्रोध वहम का, माँ करना।

दीन-दुखी जन, सेवा ही धन, गुण भरना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *जग कल्याणी*

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जग कल्याणी, वीणापाणी, ज्ञान भरो।

शब्द भाव का, नेह नाव का, दान करो।।

राग ताल दो, भक्ति भाल दो, प्रेम सुधा।

लोभ घटे माँ, फाँस कटे माँ, प्यास क्षुधा।।


कमल विराजे, शोभा साजे, दीप्ति लिये।

सबके मन को, जन जीवन को, तृप्ति किये।।

मैं अनुरागी, दुख का भागी, दीन पड़ा।

कृपा करो माँ, ध्यान धरो माँ, द्वार खड़ा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *बिटिया बोली*

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बिटिया बोली, बन रंगोली, रंग भरूँ।

द्वार सजाऊँ, घर महकाऊँ, नाम करूँ।।

धर्म रीति का, नीति प्रीति का, पाठ पढूँ।

नित वैज्ञानिक, संवैधानिक, राह बढूँ।।


तोड़ निराशा, ज्ञान पिपासा, चाह रखूँ।

छोड़ कपट छल, सत्य कर्म फल, नित्य चखूँ।।

स्वाभिमान का, स्वयं आन का, ढाल बनूँ।

मातु पिता का, नवोदिता का, भाल बनूँ।।


बेटी से कल, देती सुख पल, मान करो।

छुए ऊँचाई, बढ़े बड़ाई, भान भरो।।

गजानंद को, रास छंद को, गर्व रहे।

हर इक बेटी, सुख की पेटी, लोग कहे।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

सृजन शब्द- विश्व विधाता

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विश्व विधाता, जन्म प्रदाता, ध्यान धरो।

शरण पड़ा हूँ, द्वार खड़ा हूँ, कष्ट हरो।।

निर्झर काया, मोह समाया, लोभ भरा।

दूर करो दुख, भर दो जग सुख, धन्य धरा।।


दर-दर भटका, गुरु बिन अटका, पथ न मिला।

बाग अचेतन, नीर न वेदन, फूल खिला।।

भक्ति मंद का, द्वेष द्वंद का, नाश करो।

मंगल सबका, सुख हर तबका आस भरो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द- रंग लगाओ*

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रंग लगाओ, खुशी मनाओ, चाह भरो।

गले लगाओ, बैर भुलाओ, प्रेम करो।।

खेलो होली, मिल हमजोली, गाँव गली।

इतराये हैं, मुस्काये हैं, फूल कली।।


कर तैयारी, ले पिचकारी, लोग चले।

हो बेताबी, गाल गुलाबी, रंग मले।

ऐ-दीवानों, बुरा न मानों, हाथ बढ़ा।

सराररा का, परम्परा का, रंग गढ़ा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 21/03/24

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *दीप जलाओ*

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दीप जलाओ, खुशी मनाओ, भान भरो

झूम उठो सब, खुशियाँ ले अब, गान करो।।

राम हमारे, द्वार पधारे, मान करो।

कर लो दर्शन, अर्पण कर मन, ध्यान धरो।।


अवधपुरी में, धर्म धुरी में, दीप जला।

पुलकित हैं सब, बोले सब अब, कष्ट टला।।

है दीवाली, की खुशहाली, झूम कहो।

हृदय हमारे, प्रभु जी प्यारे, आप रहो।।


भक्त पुकारे, राह निहारे, द्वार खड़े।

कृपा करो प्रभु, कष्ट हरो प्रभु, नैन पड़े।।

राह दिखाओ, ज्ञान लखाओ, है विनती।

इस दुनिया में, लो दुखिया में, कर गिनती।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 22/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *छोड़ बहकना*

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छोड़ बहकना, राह भटकना, ध्यान धरो।

धन्य धाम का, राम नाम का, जाप करो।।

सुख के दाता, भाग्य विधाता, सब कहते।

दया दृष्टि से, शांति वृष्टि से, सुख भरते।।


पालनकर्ता, प्रभु दुखहर्ता, नाम पड़ा।

भक्त तुम्हारे, कृपा निहारे, द्वार खड़ा।।

हमें उबारो, पार लगाओ, बैतरणी।

भटक रहा हूँ, विघ्न सहा हूँ, सुख धरणी।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 22/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक

*सृजन शब्द-- *चहके चिड़िया*

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चहके चिड़िया, उड़-उड़ बिड़िया, खेल करे।

चीं-चीं बोले, हिय पट खोले, भाव भरे।।

पंख पसारे, नीड़ निहारे, राह तके।

शाम ढले जब, लौटे घर तब, पंख थके।।


गरमी आई, प्यास बढ़ाई, भूख बढ़े।

दाना-पानी, रखना छानी, धूप चढ़े।।

फुदक-फुदक घर, उदक-उदक कर, अन्न चुगे।

पेट पले कह, उड़े चले वह, भोर उगे।।


गाँव-गली भी, फूल-कली भी, मौन हुए।

पेड़ कटे हैं, छाँव घटे हैं, स्वार्थ छुए।।

इसीलिए तो, दूर किये तो, घर अपना।

छाँव दिलाओ, नीड़ बचाओ, खग सपना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 23/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *रास रचाये*

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रास रचाये, मन हरसाये, नंद लला।

धीरे-धीरे, यमुना तीरे, कृष्ण चला।।

मदन मुरारी, हो बलिहारी, ग्वाल सखे।

खोवा-खाई, दूध मलाई, साथ चखे।।


वृंदावन में, राधा मन में, प्रीत भरा।

गोकुल पावन, अति मनभावन, धन्य धरा।।

मित्र सुदामा, तन-मन श्यामा, के रहते।

सुख में दुख में, सम सम्मुख में, सब सहते।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 23/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *फागुन बीता *

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फागुन बीता, मन को जीता, रंग लिए।

सुख उत्सव का, दिन अनुभव का, संग दिए।।

इस होली में, हमजोली में, रंग उड़ा।

गले मिले सब, स्नेह मिला तब, मीत जुड़ा।।


मस्ती फागुन, फगुआ की धुन, याद रहे।

फिर से आना, धूम मचाना, लोग कहे।।

अति मनभावन, होली पावन, पर्व हुआ।

अंतर्मन को, इस जीवन को, रंग छुआ।।


🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 26/03/2024










गणात्मक दोहे-

 शुभ गण– यमभन अशुभ गण– सतरज  गणात्मक दोहे (वार्णिक गण)------ मगण (222) *जिज्ञासा* जिंदा रखो, *अज्ञानी* अब चेत। भटके *संसारी* यहाँ, बन *बंजार...