बुधवार, 20 मार्च 2024

रास छंद- सममात्रिक

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      🌀 *बिलासा छंद महालय* 🐚 

*दिनांक -- 18/03/2024*

*दिन -- सोमवार*

*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*लक्षण- मापनी मुक्त*

*परिचय-- महारौद्र वर्ग भेद (28,657)*

*यति -- 8,8,6*

*पदांत-- IIS (सगण)*

*सृजन शब्द-- *लट बलखाती*

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लट बलखाती, कमर हिलाती, राह चले।

अधर गुलाबी, नैन शराबी, शाम ढले।।

दीवानी बन, चलती बन-ठन, गाँव गली।

जब मुस्काये, तीर चलाये, प्रेम कली।।


चाँद चकोरी, लगती गोरी, रूप सजे।

छम-छम पायल, करती घायल, पाँव बजे।।

छैल छबीली, उसकी बोली, प्रीत भरे।

रूप निखरती, जब वो हँसती, फूल झरे।।


देखा जब से, कायल तब से, यार हुआ।

तूने मन को, इस जीवन को, रोज छुआ।।

चाह अधूरी, कर दो पूरी, है सपना।

मन में ठाना, तुझको माना, प्रिय अपना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 18/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *दर्शन पाऊँ*

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दर्शन पाऊँ, शीश झुकाऊँ, भाव भरो।

सतगुरु ज्ञानी, हो वरदानी, कष्ट हरो।।

शब्द सुझाओ, ज्ञान बताओ, ध्यान धरूँ।

छंद सृजन हो, पुलकित मन हो, आस भरूँ।।


शरण पड़ा हूँ, द्वार खड़ा हूँ, गुरु वर दो

मैं अज्ञानी, हूँ नादानी, कृत कर दो।।

है अभिलाषा, ज्ञान पिपासा, गुरुवर से।

मिटे निराशा, भरो दिलासा, गुण बरसे।।


कलम उदित हो, मीत मुदित हो, चाह यही।

पाँव बढ़े सच, ईर्ष्या से बच, सोच सही।।

नष्ट अहं का, क्रोध वहम का, गुरु करना।

दीन-दुखी जन, सेवा ही धन, गुण भरना।।


🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- दर्शन पाऊँ*

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दर्शन पाऊँ, शीश झुकाऊँ, भाव भरो।

मातु भवानी, हो वरदानी, कष्ट हरो।।

शब्द सुझाओ, ज्ञान बताओ, ध्यान धरूँ।

छंद सृजन हो, पुलकित मन हो, आस भरूँ।।


शरण पड़ा हूँ, द्वार खड़ा हूँ, माँ वर दो

हूँ अज्ञानी, माता रानी, कृत कर दो।।

है अभिलाषा, ज्ञान पिपासा, गुरुवर से।

छंद बिलासा, भरे दिलासा, गुण बरसे।।


कलम उदित हो, मीत मुदित हो, चाह यही।

पाँव बढ़े सच, ईर्ष्या से बच, सोच सही।।

नष्ट अहं का, क्रोध वहम का, माँ करना।

दीन-दुखी जन, सेवा ही धन, गुण भरना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *जग कल्याणी*

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जग कल्याणी, वीणापाणी, ज्ञान भरो।

शब्द भाव का, नेह नाव का, दान करो।।

राग ताल दो, भक्ति भाल दो, प्रेम सुधा।

लोभ घटे माँ, फाँस कटे माँ, प्यास क्षुधा।।


कमल विराजे, शोभा साजे, दीप्ति लिये।

सबके मन को, जन जीवन को, तृप्ति किये।।

मैं अनुरागी, दुख का भागी, दीन पड़ा।

कृपा करो माँ, ध्यान धरो माँ, द्वार खड़ा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *बिटिया बोली*

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बिटिया बोली, बन रंगोली, रंग भरूँ।

द्वार सजाऊँ, घर महकाऊँ, नाम करूँ।।

धर्म रीति का, नीति प्रीति का, पाठ पढूँ।

नित वैज्ञानिक, संवैधानिक, राह बढूँ।।


तोड़ निराशा, ज्ञान पिपासा, चाह रखूँ।

छोड़ कपट छल, सत्य कर्म फल, नित्य चखूँ।।

स्वाभिमान का, स्वयं आन का, ढाल बनूँ।

मातु पिता का, नवोदिता का, भाल बनूँ।।


बेटी से कल, देती सुख पल, मान करो।

छुए ऊँचाई, बढ़े बड़ाई, भान भरो।।

गजानंद को, रास छंद को, गर्व रहे।

हर इक बेटी, सुख की पेटी, लोग कहे।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

सृजन शब्द- विश्व विधाता

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विश्व विधाता, जन्म प्रदाता, ध्यान धरो।

शरण पड़ा हूँ, द्वार खड़ा हूँ, कष्ट हरो।।

निर्झर काया, मोह समाया, लोभ भरा।

दूर करो दुख, भर दो जग सुख, धन्य धरा।।


दर-दर भटका, गुरु बिन अटका, पथ न मिला।

बाग अचेतन, नीर न वेदन, फूल खिला।।

भक्ति मंद का, द्वेष द्वंद का, नाश करो।

मंगल सबका, सुख हर तबका आस भरो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द- रंग लगाओ*

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रंग लगाओ, खुशी मनाओ, चाह भरो।

गले लगाओ, बैर भुलाओ, प्रेम करो।।

खेलो होली, मिल हमजोली, गाँव गली।

इतराये हैं, मुस्काये हैं, फूल कली।।


कर तैयारी, ले पिचकारी, लोग चले।

हो बेताबी, गाल गुलाबी, रंग मले।

ऐ-दीवानों, बुरा न मानों, हाथ बढ़ा।

सराररा का, परम्परा का, रंग गढ़ा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 21/03/24

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *दीप जलाओ*

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दीप जलाओ, खुशी मनाओ, भान भरो

झूम उठो सब, खुशियाँ ले अब, गान करो।।

राम हमारे, द्वार पधारे, मान करो।

कर लो दर्शन, अर्पण कर मन, ध्यान धरो।।


अवधपुरी में, धर्म धुरी में, दीप जला।

पुलकित हैं सब, बोले सब अब, कष्ट टला।।

है दीवाली, की खुशहाली, झूम कहो।

हृदय हमारे, प्रभु जी प्यारे, आप रहो।।


भक्त पुकारे, राह निहारे, द्वार खड़े।

कृपा करो प्रभु, कष्ट हरो प्रभु, नैन पड़े।।

राह दिखाओ, ज्ञान लखाओ, है विनती।

इस दुनिया में, लो दुखिया में, कर गिनती।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 22/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *छोड़ बहकना*

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छोड़ बहकना, राह भटकना, ध्यान धरो।

धन्य धाम का, राम नाम का, जाप करो।।

सुख के दाता, भाग्य विधाता, सब कहते।

दया दृष्टि से, शांति वृष्टि से, सुख भरते।।


पालनकर्ता, प्रभु दुखहर्ता, नाम पड़ा।

भक्त तुम्हारे, कृपा निहारे, द्वार खड़ा।।

हमें उबारो, पार लगाओ, बैतरणी।

भटक रहा हूँ, विघ्न सहा हूँ, सुख धरणी।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 22/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक

*सृजन शब्द-- *चहके चिड़िया*

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चहके चिड़िया, उड़-उड़ बिड़िया, खेल करे।

चीं-चीं बोले, हिय पट खोले, भाव भरे।।

पंख पसारे, नीड़ निहारे, राह तके।

शाम ढले जब, लौटे घर तब, पंख थके।।


गरमी आई, प्यास बढ़ाई, भूख बढ़े।

दाना-पानी, रखना छानी, धूप चढ़े।।

फुदक-फुदक घर, उदक-उदक कर, अन्न चुगे।

पेट पले कह, उड़े चले वह, भोर उगे।।


गाँव-गली भी, फूल-कली भी, मौन हुए।

पेड़ कटे हैं, छाँव घटे हैं, स्वार्थ छुए।।

इसीलिए तो, दूर किये तो, घर अपना।

छाँव दिलाओ, नीड़ बचाओ, खग सपना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 23/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *रास रचाये*

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रास रचाये, मन हरसाये, नंद लला।

धीरे-धीरे, यमुना तीरे, कृष्ण चला।।

मदन मुरारी, हो बलिहारी, ग्वाल सखे।

खोवा-खाई, दूध मलाई, साथ चखे।।


वृंदावन में, राधा मन में, प्रीत भरा।

गोकुल पावन, अति मनभावन, धन्य धरा।।

मित्र सुदामा, तन-मन श्यामा, के रहते।

सुख में दुख में, सम सम्मुख में, सब सहते।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 23/03/2024

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*आधार छंद-- रास छंद सममात्रिक*

*सृजन शब्द-- *फागुन बीता *

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फागुन बीता, मन को जीता, रंग लिए।

सुख उत्सव का, दिन अनुभव का, संग दिए।।

इस होली में, हमजोली में, रंग उड़ा।

गले मिले सब, स्नेह मिला तब, मीत जुड़ा।।


मस्ती फागुन, फगुआ की धुन, याद रहे।

फिर से आना, धूम मचाना, लोग कहे।।

अति मनभावन, होली पावन, पर्व हुआ।

अंतर्मन को, इस जीवन को, रंग छुआ।।


🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 26/03/2024










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