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*दिनांक -- 27/03/2024*
*दिन --बुधवार*
*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*
*यति -11,13*
*लक्षण- मापनी मुक्त*
*परिचय-- अवतारी 24 मात्रा -वर्ग भेद (75025)*
*पदांत-- 22/111/112*
*सृजन शब्द-- *निराला*
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छंद निराला श्रेष्ठ, लिखें हम मिलकर आओ।
रखे गेयता ध्यान, विधा में रोला गाओ।।
चार पंक्ति का छंद, आठ चरणें है होती।
उत्तम रखें तुकांत, झरे शब्दों में मोती।।
ग्यारह मात्रा खास, विषम चरणों में होती।
तेरह मात्रा भार, यहाँ सम चरण सँजोती।।
रोला छंद विशेष, मधुरमय इसकी तानें।
गजानंद इस राग, ताल पर गाते गानें।।
विषम चरण दो एक, अंत अनिवार्य यहाँ है।
जगण तगण शुरुआत, कभी स्वीकार्य कहाँ है।।
सम चरणें प्रारंभ, त्रिकल शब्दों से करना।
हो न गेयता भंग, ध्यान इस पर तुम रखना।।
---इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 27/03/2024
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*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*
*सृजन शब्द--- बहारें*
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लेकर साथ उमंग, बहारें झूम रही है।
गीत कोयली छेड़, दिलों की बात कही है।।
आया ऋतु मधुमास, बदन में आग लगाने।
विरह लिए दिन-रात, पिया की याद दिलाने।।
लाली रंग पलास, लुभाये सबके मन को।
बौराया है आम, सुशोभित कर उपवन को।।
रंग बिरंगे फूल, खिले हैं बाग सजाने।
आया माह बसन्त, दिलों में प्रेम जगाने।।
धरा किये श्रृंगार, चुनर ओढ़े हरियाली।
डाल-डाल हर पात, खुशी में देते ताली।।
वन में तेंदू चार, पके हैं मीठ रसीले।
गजानंद उत्साह, मनाते वन्य कबीले।।
---- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 27/03/2024
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*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*
सृजन शब्द- *चलो चलें अब गाँव*
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अमराई की छाँव, पुकारे नदी किनारे।
पीपल बरगद पेड़, गाँव के मित्र हमारे।।
खेत-खार खलिहान, लगे हैं बड़ा सुहावन।
चलो चलें अब गाँव, जहाँ की मिट्टी पावन।।
गाँव सिसकती आज, पड़ा कोनें में रोते।
मुझे दिलाने मान, पास सब अपने होते।।
पढ़े लिखे इंसान, नौकरी की चाहत में।
दूर बसे परदेश, छोड़ मुझको आहत में।।
सूनी है चौपाल, अदालत डाका डाला।
अपनों में बिखराव, लगा रिश्तों में ताला।।
करें पुनः गुलजार, प्रेम की बगिया आओ।
लौट शहर से गाँव, मीत मन गाना गाओ।।
--- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/03/2024
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*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*
सृजन शब्द-- उजाला
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द्वेष द्वंद को त्याग, करो नित प्रेम उजाला।
जीत सदा हो सत्य, झूठ का हो मुँह काला।।
कर्म धर्म का मर्म, बताना गुरुवर मुझको।
इस जीवन का नाव, बनाया हूँ मैं तुझको।।
नेक भलाई राह, नित्य पग बढ़ते जाये।
अहंकार की सोच, कभी भी पास न आये।।
परहित सेवा भाव, ध्येय हो इस जीवन का।
गुरुवर दूर विकार, करो इस अंतर्मन का।।
पाकर छंद विधान, लिखूँ मैं सुंदर रोला।
चढ़े सुशोभित शीर्ष, कलम शब्दों का डोला।।
मिले कृपा गुरु छाँव, शरण में आज पड़ा हूँ।
देना आशीर्वाद, दीन बन द्वार खड़ा हूँ।।
---इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/03/2024
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*आधार छंद-- रोला छंद सममात्रिक*
*सृजन शब्द-- परम प्रेम उपहार*
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होना नहीं उदास, कभी भी तुम जीवन में।
परम प्रेम उपहार, सजाये रखना मन में।।
बनना सबका मीत, बांटना सबको सुख पल।
बातें भुला भविष्य, आज में जी ले तू कल।।
सेवा कर निःस्वार्थ, दीन दुखियों का जग में।
शूल बिछाना छोड़, फूल रखना हर पग में।।
प्रीत पीर पर ध्यान, हमेशा रखकर चलना।
दिशा दशा अनुरूप, समय साँचे में ढलना।।
संत गुणी विद्वान, जनों का संगत करना।
दिव्य अलौकिक ज्ञान, हृदय पट अपने भरना।।
ढोंग रूढ़ि पाखण्ड, बचाये खुद को रखना।
गजानंद श्रम श्रेष्ठ, सुखद फल तुम नित चखना।।
*--- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 29/03/2024
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