सोमवार, 15 अप्रैल 2024

पद्मावती छंद- आधार छंद मापनीमुक्त

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*दिनांक -- 15/04/2024*

*दिन -- सोमवार*

*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*यति - 10,8,14*

*परिचय-- लाक्षणिक 32 मात्रा*

 *वर्ग भेद -- (35,24,578)*

*पदांत--  दो गुरु आवश्यक*

*सृजन शब्द--जगदंबे सदन पधारो*

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नव ज्योति जलाऊँ, द्वार सजाऊँ, जगदंबे सदन पधारो।

गाऊँ जगराता, नौ दिन माता, ममता का हाथ पसारो।।

माँ नैन निहारो, कृपा विचारो, कर विघ्न हरण सुख देना।

शुभ भक्ति जगाओ, ज्ञान बताओ, भक्तों का नित सुध लेना।।


कर कष्ट निवारण, दो सुख धारण, भव संकट पाप उबारो।

खाऊँ मत भटका, मन में खटका, भ्रम मैं का दोष उतारो।।

जन्मों का नाता, तू है माता, मैं तेरा पुत्र कहाऊँ।

लो थाम मुझे माँ, छोड़ तुझे माँ, जीवन में चैन न पाऊँ।।


है दिव्य सिंहासन, माँ का आसन, चरणों में माथ झुकाऊँ।

इज्जत दे नारी, बन संस्कारी, बेटे का कर्ज चुकाऊँ।।

है सबसे प्यारा, देश हमारा, नित इसका मान बढ़ाऊँ।

माँ त्याग अहम को, लोभ वहम को, मानवता पाठ पढ़ाऊँ।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 15/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- माया में भूला*

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माया में भूला, भ्रम में झूला, दास अहम का मत होना।

कर याद जमाना, फिर पछताना, व्यर्थ मनुज छोड़ो रोना।।

नित मीठा बोलो, हिय पट खोलो, वाणी सम्मान दिलाता।

कर कर्म सुशासित, बोल सुभाषित, शिक्षा व्यवहार मिलाता।।


मन से मत हारो, नेक विचारो, सोच सदा रखना आगे।

रख अटल इरादा, कर दृढ़ वादा, हार उठा दुम तब भागे।।

मानों श्रम पूजा, और न दूजा, हँसी खुशी तुमको देगा।

ताकत बाहों का, दुख राहों का, जोर लगाकर हर लेगा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 16/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- सुंदर काया*

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तुमने जो पाया, सुंदर काया, छोड़ो इस पर इतराना।

कुछ काम न आया, धन पद माया, छोड़ यही पर है जाना।।

नित नेकी कर लो, खुशियाँ भर लो, हाथ बढ़ा परहित सेवा।

सुख कौर खिलाओ, मत तरसाओ, मातु पिता जग में देवा।।


प्यासे को पानी, मीठ जुबानी, साथ रखे चल सच्चाई।

मन कुंठा छाँटो, द्वेष न बाँटो, मत खोदो दुख की खाई।।

प्रभु का गुण गाओ, विघ्न हटाओ, भव सागर पार लगाना।

रख प्रेम निगाहें, चलना राहें, नाम अमर जग कर जाना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 16/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- दीप जलाओ*

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अब हर्ष मनाओ, दीप जलाओ, पर्व रामनवमीं आया।

बन पालनहारी, प्रभु अवतारी, सबके मन को हर्षाया।।

वन पात कली में, द्वार गली में, गाँव शहर खुशियाँ छाई।

सब झूम रहे हैं, बाँह गहे हैं, देते आनंद बधाई।।


प्रभु धाम सजाओ, ढोल बजाओ, आज मनाओ दीवाली।

शुभ अवधपुरी है, धर्म धुरी है, बनें धर्म का हम माली।।

मन भक्ति भरो अब, गर्व करो सब, हम सब हिन्दू कहलायें।

संस्कारित पावन, अति मनभावन, यह भारत भूमि बनायें।।


है धर्म सनातन, वेद पुरातन, सब इसकी महिमा गायें।

रख भाईचारा, जग में न्यारा, राम राज्य भारत लायें।।

पूजा दीक्षा का, जब शिक्षा का, सबको अधिकार मिलेगा।

कटुता न कभी हो, एक सभी हो, तब समता फूल खिलेगा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 17/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- मंगल गाओ*

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शुभ पर्व मनाओ, मंगल गाओ, आये प्रभु राम हमारे।

दशरथ के नन्दन, रघुपति वंदन, जग-जन के आप दुलारे।।

उर मन में रहते, घट-घट बसते, कण-कण में वास तुम्हारा।

करते हैं आदर, जीव चराचर, कर दो प्रभु नाव किनारा।।


जग पालनहारी, मंगलकारी, दुखियों के हैं रखवाले।

प्रभु आन बिराजे, शुभ सुख साजे, पथ से विपदा को टाले।।

सब खुशी मनाते, मंगल गाते, प्रभु की करते जयकारा।

गुणगान करें सब, मग्न हुए अब, पर्व रामनवमीं प्यारा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 17/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- तुम कब आओगे*

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तुम कब आओगे, मिल पाओगे, बस लगता है सपनों में।

तुम ही हो धड़कन, मेरी तड़पन, माना तुमको अपनों में।।

बन प्रेम पुजारी, सब कुछ वारी, तुझ पर होकर बलिहारी।

हूँ सब कुछ भूला, मन में झूला, बाँध रखा हूँ मैं यारी।।


सपनों की रानी, हो मस्तानी, रूप सलोना मन भाया।

कोयल सी बोली, हँसी ठिठोली, इस दिल पर तीर चलाया।।

कुंतल की छाया, जब से पाया, तब से हूँ मैं दीवाना।

बाहें लग जाओ, पास बुलाओ, छोड़ो प्रियवर तड़पाना।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 18/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- माँ की लोरी*

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ममता की डोरी, माँ की लोरी, बाँध रखे मन काया को।

विपदा हर लेती, सुख यश देती, आँचल शीतल छाया को।।

सब जीव चराचर, माँ का आदर, करते दिल गहराई से।

शुभ राह दिखाते, सीख सिखाते, माँ हमकों सच्चाई से।।


माँ प्रेम समर्पित, करके अर्पित, हुए पुत्र पर बलिहारी।

हो पुलकित माँ तन, मुदित हुए मन, भरे पुत्र जब किलकारी।।

जब देख न पाती, माँ घबराती, रखे बसाये नजरों में।।

नयनों के तारा, राज दुलारा, बेटे माँ की अधरों में।।


मुख मोड़ गई माँ, छोड़ गई माँ, पल-पल याद सताती है।

ममता की गोदी, मैंने खो दी, नींद नहीं अब आती है।।

परलोक सिधारे, पिता हमारे, प्रभु दुख दिन क्यों लाते हो।

है मृत्यु अटल पर, नैन पटल पर, क्यों तस्वीर बसाते हो।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- दिल बेचारा*

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है गम का मारा, दिल बेचारा, नाम तुम्हारा लेता है।

बन गैर अमानत, रहो सलामत, सदा दुआयें देता है।।

सब सपने तेरे, साथी मेरे, अपना मैनें माना है।

है प्यार इबादत, मेरी चाहत, रूप खुदा का जाना है।।


तुम प्रीत निभाना, छोड़ न जाना, रहना मेरे सपनों में।

तुम दिल की धड़कन, मेरी तड़पन, माना तुझको अपनों में।।

तुमसे ही आसें, चलती सांसे, माना तुमको है पूजा।

प्राणों से प्यारे, जान हमारे, और नहीं कोई दूजा।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- बहती धारा*

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कर नाव किनारा, बहती धारा, सोच यही रख चलना है।

सब सबक सिखाता, समय बताता, किस पथ कैसे ढलना है।।

सब साथी सुख में, साथ न दुख में, लोग यहाँ पर देते हैं।

रिश्तें मतलब का, लगते अब का, साँस हरण कर लेते हैं।।


पग-पग में धोखा, कष्ट झरोखा, शूल बिछा है राहों में।

अब प्रीत पराई, शक की खाई, दिखते लोभ निगाहों में।।

है सब कुछ पैसा, युग यह ऐसा, देखो कैसा आया है।

भाई से भाई, करे लड़ाई, घर-घर मातम छाया है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/04/2024

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*आधार छंद-- पद्मावती सममात्रिक मापनी मुक्त*

*सृजन शब्द-- चल आज मुसाफिर*

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चल आज मुसाफिर, सुख हित खातिर, पाँव उठा बढ़ना आगे।

खुद कर्म लगन से, ईश भजन से, दूर आपदा दुख भागे।।

यश छाँव मिलेगा, फूल खिलेगा, गुलशन और बहारों में।

तम त्याग बुराई, सोच भलाई, रखना प्रेम नजारों में।।


मन भ्रम मत पालो, प्रभु गुण गा लो, लौट नहीं कल आयेगा।

मिट्टी यह काया, धन पद माया, मिट्टी में मिल जायेगा।।

खुद का क्या खोया, क्यों तू रोया, साथ न कुछ ले जाना है।

छोड़ो पछताना, अश्रु बहाना, दो गज मिट्टी पाना है।।

🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 20/04/2024










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