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*दिनांक -- 02/04/2024*
*दिन --मंगलवार*
*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*
*यति -14,12*
*परिचय-- अवतारी 26 मात्रा -वर्ग भेद (196,418)*
मापनी:-2122- 2122, 2122- 212
*पदांत-- 12*
*सृजन शब्द-- प्रात की बेला सुहानी*
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प्रात की बेला सुहानी, आप से मुझको मिला।
इस हृदय के ताल में प्रभु, फूल खुशियों का खिला।।
आप ही करतार मेरे, आप ही भगवान हो।
बस यही चाहत रखूँ मैं, हर घड़ी प्रभु ध्यान हो।।
शक्ति दो दुख सह सकूँ प्रभु, थाम लेना हाथ को।
पाँव सच पथ में बढ़े नित, छोड़ना मत साथ को।।
माँ पिता अब आप मेरे, ज्ञात हो प्रभु आपको।
टूट जाऊँ मत कभी मैं, देख जग संताप को।।
हूँ पुजारी कर्म का मैं, सत्य की प्रतिक्रांति हूँ।
झूठ प्रति अंगार हूँ मैं, दूत मैं सुख-शांति हूँ।।
भिज्ञ हूँ दुख मर्म से मैं, हो निवारण कष्ट का।
इसलिए तो हूँ खड़ा मैं, द्वार अपने इष्ट का।।
*---इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 02/04/2024
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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*
*सृजन शब्द-- शब्द की जादूगरी है*
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शब्द की जादूगरी है, शब्द से मन बाँधना।
शब्द मर्यादा सिखाती, भूलकर मत लाँघना।।
शब्द उठती है हृदय से, भाव के झंकार से।
हैं अधूरे लोग वे जो, हो न प्रेरित प्यार से।।
जन्म माता ने दिया तो, शब्द सीखा बाप से।
सीख शुभ संस्कार सीखा, शब्द मैनें आप से।।
शब्द सागर ज्ञान का है, शब्द है सच शोध का।
शब्द है आवाज दिल की, शब्द है नवबोध का।।
शब्द को पूजा बनाओ, शब्द में प्रभु वास है।
नित्य कष्टों में घिरा वह, शब्द मैं जो दास है।।
शब्द से ही मान सबका, शब्द ही पहचान है।
शब्द दे सन्देश सबको, ग्रंथ गीता ज्ञान है।।
---इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 03/04/2024
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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*
*सृजन शब्द-- परवरिश कैसे करूँ*
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सोचता मजदूर कैसे, पेट बच्चों का भरूँ।
क्या कमाऊँ क्या खिलाऊँ, परवरिश कैसे करूँ।।
शांति सुख से दूर हूँ मैं, दूर इस परदेश में।
था बहुत खुशहाल मैं भी, गाँव की परिवेश में।।
अजनबी मैं इस शहर में, दर्द का मारा फिरा।
बेबसी लाचार मन में, माथ चिंता से घिरा।।
काल महँगाई खड़ा है, दूत बनकर सामने।
है मसीहा कौन अब जो, पास आये थामने।।
योजना सरकार की सब, कागजों तक ही मिला।
बांट नेता खा गए हक, युग-युगों का सिलसिला।।
मान पाये दाम पाये, पूज्य श्रम को हो नमन।
मिल कदम आगे बढें हम, रोकने शोषण दमन।।
🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 03/04/2024
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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*
*सृजन शब्द-- साथ तेरा जो मिले*
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मान लूँ मैं धन्य खुद को, साथ तेरा जो मिले।
दो मिटा शिकवे गिले सब, प्रीत का द्रुमदल खिले।।
आपसे चाहत भरी है, इस अधूरी रंग में।
छोड़ना मत साथ साथी, जिंदगी की जंग में।।
साथ देना हर घड़ी तुम, कामना करता रहूँ।
प्रेम में दुख इस तरह मैं, कब तलक सहता रहूँ।।
प्यार की लगती लगन जब, हूक उठती तब सनम।
आपको पाने प्रिये मैं, जी रहा हूँ सौ जनम।।
🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 03/04/2024
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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*
*सृजन शब्द-- विश्व का कल्याण हो*
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कामना करता रहूँ मैं, विश्व का कल्याण हो।
रक्त तन-मन साँस मेरी, देश हित निर्वाण हो।।
जन्म पाया इस धरा में, धन्य किस्मत को कहूँ।
लाल भारत का कहाऊँ, गोद में इसके रहूँ।।
है तिरंगा शान मेरी, आन भी सम्मान भी।
गीत जन गण मन हमारा, एकता पहचान भी।।
बोल वंदेमातरम का, गूँजता जयकार है।
है हिमालय बन खड़ा नित, देश पहरेदार है।।
सिर सिंहासन से सजा है, गर्व भारत देश का।
हर तरफ तारीफ फैला, स्वच्छ शुभ परिवेश का।।
है भरा संस्कार सब में, प्रेम है विश्वास है।
राह उन्नति का बढ़ें सब, शांति सुख उल्लास है।।
🖊️ इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 04/04/2024
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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*
*सृजन शब्द-- भाव श्रद्धा भक्ति अर्पित*
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भाव श्रद्धा भक्ति अर्पित, आपको गुरुवर करूँ।
आपकी पाकर कृपा मैं, ज्ञान का सागर भरूँ।।
कामना गुरु भावना का, ज्योति मन जलती रहे।
आपके सतद्वार में गुरु, कष्ट भक्तन मत सहे।।
है अटल विश्वास गुरुवर, इस हृदय के भाव में।
प्रेम का मरहम लगाना, भक्त के दुख-घाव में।।
हो निवारण कष्ट का गुरु, शांति -सुख का पथ मिले।
जिंदगी में हो खुशी पल, फूल अधरों पर खिले।।
बुद्धि में गुरु शुद्धि भरना, दूर रखना क्लेश से।
हो कभी मत सामना छल, द्वेष की परिवेश से।।
हो विचारों में नयापन, स्वच्छ मन काया रहे।
त्याग कटुता मीठ बोलें, बोल में गंगा बहे।।
🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/04/2024
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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*
*सृजन शब्द--प्रेम धन अनमोल प्यारे*
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प्रेम धन अनमोल प्यारे, कर जतन इसकी कदर।
प्रेम पाया जो नहीं वो, घूमते हैं दर-बदर।।
प्रेम परिभाषा समझना, हर किसी का वश नहीं।
जब खिले मन में बहारें, प्रेम का गुलशन वहीं।।
दो दिलों के मेल को ही, प्रेम कहते हैं यहाँ।
प्रेम से बढ़कर बताओ, है लगन किसमें कहाँ।।
प्रेम से परिवार घर है, प्रेम से संसार है।
प्रेम ही सुख नाव जग में, प्रेम ही पतवार है।।
बांटने से प्रेम बढ़ता, रीत है यह धर्म है।
दूसरें का दर्द समझे, प्रेम में ही मर्म है।।
प्रेम प्रभु का रूप जानें, प्रेम ही भगवान है।
प्रेम जिसके दिल समाहित, बस वही इंसान है।।
🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/04/2024
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*आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक*
*सृजन शब्द-- चैत्र का शुभ मास है*
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आ गई नवरात्रि पावन, चैत्र का शुभ मास है।
ज्योति जगमग जल रही है, हर तरफ उल्लास है।।
भक्तिमय दरबार माँ का, शुभ कलश शुभ धाम है।
भक्त आते भक्ति गाते, पूज्य माँ का नाम है।।
रूप नौ माता लिए हैं, नष्ट करने पाप को।
विघ्न हरते हैं सदा माँ, भक्त के संताप को।।
माँ जगत जननी तुम्हें सब, बोलते हैं प्रेम से।
हैं झुकाते शीश नित ही, भक्ति में सब नेम से।।
🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 06/04/2024
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