सोमवार, 29 अप्रैल 2024

गणात्मक दोहे-

 शुभ गण– यमभन

अशुभ गण– सतरज 

गणात्मक दोहे

(वार्णिक गण)------

मगण (222)

*जिज्ञासा* जिंदा रखो, *अज्ञानी* अब चेत।

भटके *संसारी* यहाँ, बन *बंजारा* प्रेत।।


*यगण (122) (पूर्व में त्रिकल लगाये)*

नया *जमाना* आ गया, सभी *नशीले* लोग।

नमन *प्रभाती* भूलकर, सतत *सुहाते* भोग।।


रगण (212) (पूर्व में त्रिकल लगाये)*

सुमन *वाटिका* से भरा, करे *कामिनी* नृत्य।

मधुर सुनाती *रागिनी*, बजे *पैजनी* वृत्य।।


सगण (112)

*अपने सपने* सत्य हैं, *लगता बरसों* बाद।

*चलते चलते* आ गये, *लगता बजते* नाद।।


तगण (221)

मिलता है *संसार* में, संसारी *जंजाल*।

इसे तनिक *आभास* कर, कहता नर *कंकाल*।।


जगण (121) (पूर्व में द्विकल लगाये)*

अब *विकास* गंगा बही, हर *निकाय* आनंद।

हर्षित *किसान* लग रहे, रक्षित सिंह *गयंद*।।


भगण (211)

*पावन सावन* आ गया, *नेवर किंकिनि* शोर।

*दादुर झिंगुर* सुर षडज, *साजन आँगन* तोर।।


नगण (111)

*जनम जनम* का साथ है, *मुदित मगन* चल पंथ।

*सहज सरल* बनना *पथिक*, *परम प्रणव* उन्मंथ।।

*--- डॉ. रामनाथ साहू "ननकी"*

       *संस्थापक, छंदाचार्य* 

 *(बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)*

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- आवारा)*

आवारा पशु बन फसल, करते हैं नुकसान।

गायब चारागाह अब, देना इस पर ध्यान।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- विवेकी)*

बुद्धि विवेकी ज्ञान का, होता जग में मान।

सहज सरल व्यवहार से, बनते मनुज महान।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- मोहिनी)*

मंत्र मोहिनी जानिए, मुँह का मीठा बोल।

दुनिया को वश में करें, शब्द कहें अनमोल।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- पहुना)*

आये पहुना द्वार जब, करें मान सम्मान।

कहते बुजुर्ग हैं सभी, पहुना है भगवान।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- आराम)*

है आराम हराम यह, सूक्ति जवाहर लाल।

श्रम से ही होते सदा, जग में ऊँचा भाल।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- किसान)*

वंदन करूँ किसान को, धरती का भगवान।

भरते सबका पेट जो, बन करके वरदान।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- रावण)*

गली-गली रावण खड़ा, द्वार-द्वार पर कंस।

कौवे मोती चुग रहें, बन करके अब हंस।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- वतन)*

सबसे प्यारा है वतन, मेरा भारत देश।

जहाँ एकता प्रेम का, सुंदर है परिवेश।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/04/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- आभारी )*

छंद महालय से मिला, मुझको छंद विधान।

आभारी गुरु आपका, कर दो आप समान।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- उजाला )*

फैला है चारो तरफ, अंधकार घनघोर।

करो उजाला आप गुरु, विनती है कर जोर।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- साधना )*

सतत साधना से हुआ, सफल सभी निज काम।

कर्मशील इंसान का, होता जग में नाम।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- सजना )*

सजना मेरे हाथ में, दे दो अपना हाथ।

छूटे मत सातो जनम, तेरा मेरा साथ।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- बाजार )*

यह जीवन बाजार है, कर लो सौदा आप।

अमल करो खुद के लिए, सदा सत्य को माप।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- विकास )*

होता घोर विनाश है, नित विकास के नाम।

फैला भ्रष्टाचार है, रहा अधूरा काम।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- घायल )*

घायल है यह दिल बहुत, कौन करे उपचार।

गजानंद नित चाहता, आप सभी का प्यार।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- चमक )*

चमक कभी खोता नहीं, सोना पाकर ताप।

सोने के जैसा चमक, रखें सदा हम आप।।

----- 🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 29/04/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- आशंका)*

आशंका मन में कभी, आने मत दो आप।

आशंका से सुख नहीं, बढ़ता है संताप।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- तलाशी)*

करें तलाशी आप हम, कहाँ छुपा है चोर।

सोया चौकीदार है, रखकर हृदय कठोर।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- पैरवी)*

करो पैरवी सत्य का, झूठ न देना साथ।

हो वजूद इंसानियत, सदा बढ़ाना हाथ।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- मँहगी)*

गजानंद सच मान लो, दिल है महँगी चीज।

सभी दिलों में हम उगा, चलें प्रेम का बीज।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- जंजीर)*

बँधा प्रेम जंजीर से, हम दोनों का साथ।

जीवन जीना है हमें, रख हाथों में हाथ।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- झकास)*

लिया धरा ने आज है, मोहक रूप झकास।

स्वागत माह बसंत का, आतुर फूल पलाश।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- वादन)*

शुभ वीणा वादन करो, सरस्वती माँ आज।

देना आशीर्वाद माँ, बन जाये सब काज।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- अमर)*

सदा अमर रहता यहाँ, नेक कर्म प्रतिसाद।

गजानंद पात्रे सदा, बात रखो यह याद।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 30/04/2024

---- *बिलासा छंद महालय*

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- मेधावी)*

गुरु मेधावी शिष्य को, करते बहुत पसंद।

खोले ज्ञान कपाट को, सोच रखे स्वच्छंद।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- विधाता)*

भाग्य विधाता आप गुरु, दया कृपा का खान।

देना आशीर्वाद नित, कर लूँ कर्म महान।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- चाँदनी)*

स्वच्छ चाँदनी में खिला, उम्मीदों का फूल।

जीत मिले या हार हो, करो सहर्ष कबूल।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- सपने)*

अपने सपने को करो, पाने सदा प्रयास।

श्रम से सब संभव यहाँ, रखे चलो विश्वास।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- अंगार)*

नारी के दो रूप हैं, फूल और अंगार।

लेते पाप विनाश को, रणचंडी अवतार।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- उदार)*

जन सेवा कल्याण का, रखना भाव उदार।

वाणी से वाणी मिले, संयम हो व्यवहार।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- चंचल)*

चंचल चित्त चकोर सा, आतुर पाने प्रेम।

इसीलिए व्यवहार में, भर लें हम नित नेम।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- लगन)*

कड़ी लगन से है मिली, मंजिल अपने हाथ।

गजानंद मत भूलना, सदा बड़ों का साथ।।

---- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 01/05/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- आगामी )*

आगामी सरकार का, इंतजार है देश।

आतुर सब भय मुक्त अब, पाने को परिवेश।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- सँवारो)*

हाल सँवारो देश का, रोको भ्रष्टाचार।

पता करो किस रूप में, छुपा कहाँ गद्दार।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- शोभना )*

बेटी घर की शोभना, दो कुल की है लाज।

पाँव पड़े जिस द्वार पर, सँवरे सारे काज।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- चुपके )*

चुपके-चुपके रात दिन, बही नैन से नीर।

अपनों ने ही दे गया, अपनों को ही पीर।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- श्रृंगार )*

हरियाली तन ओढ़कर, धरा किया श्रृंगार।

आतुर गाने के लिए, कोयल गीत बहार।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- उदास )*

इस जीवन से हारकर, रहना नहीं उदास।

मन से जीते जीत है, रख चलना विश्वास।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- कंचन )*

काया कंचन की तरह, रखना हरदम शुद्ध।

काया है अनमोल धन, कहना गौतम बुद्ध।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- नकल )*

नकल करें हम सत्य का, त्यागें संगत झूठ।

कभी बोल व्यहवार से, लोग न जायें रूठ।।

----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 01/05/2024

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*(गणात्मक दोहा लिखें-----*

मगण (222) *(सृजन शब्द-- आतंकी)*

आतंकी आतंक से, होता देश तबाह।

लोग लगे संदिग्ध जो, देना नहीं पनाह।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- लुटेरे)*

चोर लुटेरे देश को, कर देंगे बर्बाद।

मूक बधिर सरकार है, कौन सुने फरियाद।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- वासना)*

प्रेम वासना के लिए, करे दुहाई लोग।

संस्कृति पाश्चात्य का, लगा हुआ है रोग।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- कपटी)*

कपटी लोगों से सदा, रखना खुद को दूर।

तीर चुभाते बोल से, देते दुख भरपूर।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- गद्दार)*

घूम रहें आराम से, होकर चोर फरार।

देश खोखला कर दिए, श्वेत पोश गद्दार।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- विचित्र)* 

स्वार्थ भरे संसार में, मिलते लोग विचित्र।

जीवन के हर मोड़ पर, साथ खड़ा है मित्र।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- ताड़न)*

नहीं किसी को है मिला, ताड़न का अधिकार।

जीव चराचर के लिए, रखो प्रेम व्यवहार।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- रुदन)*

चीख-चीखकर कर रही, जनता रुदन पुकार।

महँगाई की मार से, कौन करे उद्धार।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 02/05/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- चालाकी )*

लूट लिए इस देश को, चालाकी चल चाल।

राजनीति नेता किये, बिछा झूठ का जाल।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- निराला )*

खेल निराला आपका, कौन सका है जान।

इसीलिए तो आपको, कहते हैं भगवान।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- सांत्वना )*

दुख में देना सांत्वना, कभी न जाना भूल।

कर्म वचन व्यवहार से, नहीं चुभाना शूल।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- जलना )*

जलना दीपक की तरह, करना प्रेम प्रकाश।

लोभ घटे ईर्ष्या मिटे, होवे भ्रम भय नाश।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- व्यापार )*

रोजगार व्यापार को, लोग हुये लाचार।

झेल रहे हैं आम जन, महँगाई की मार।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- प्रसाद )*

देना भक्ति प्रसाद प्रभु, गाऊँ मैं गुणगान।

कृपा छाँव मिलता रहे, मिटे सभी अभिमान।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- व्याकुल )*

देख देश हालात को, व्याकुल मन है आज।

वंचित शोषित लोग हैं, तानाशाही राज।।


 नगण (111)  *(सृजन शब्द-- दमन)*

दमन नीति का देश में, होगा सदा विरोध।

जागरूक जनता सभी, सबको है सच बोध।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 02/05/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- कल्याणी )*

कल्याणी माँ भारती, करना जग कल्याण।

तेरी रक्षा के लिए, करूँ प्राण निर्वाण।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- हमारे )*

देव हमारे द्वार पर, आये हैं गुरु रूप।

मिला ज्ञान का छाँव सुख, मिटा तमस दुख धूप।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- आरती )*

करूँ आरती भारती, होकर भक्ति विभोर।

कृपा दृष्टि रखना बना, विनती है कर जोर।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- मिलना )*

तन का मिलना वासना, मन का मिलना प्रेम।

एक दूसरे के लिए, रखें चाह नित नेम।।


तगण (221) *(सृजन शब्द-- तूफान )*

आये दुख तूफान तो, रखना संयम धीर।

सुख आयेगा एक दिन, मिट जायेगा पीर।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- सुवास )*

जीवन में सबके लिए, रखना प्रेम सुवास।

खिलना फूल बहार बन, बनना दीप उजास।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- काजल )*

काजल से काला हुआ, मानव मन का पाप।

लोभ क्षोभ धन का भरा, बढ़ा तभी संताप।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- नयन )*

नीर नयन है पीर का, समझो भाव अथाह।

गजानंद दुख की घड़ी, चाहे प्रभु से राह।।

----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 03/05/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- वैरागी )*

वैरागी वैराग्य का, पालन करते रोज।

राग द्वेष को त्याग कर, परम मोक्ष की खोज।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- किनारा )*

वंदन दयानिधान गुरु, हर लेना संताप।

जीवन के इस नाव को, करो किनारा आप।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- वंदना )*

सुबह शाम है वंदना, विनती है कर जोर।

इस जीवन में आप गुरु, लाना सुख शुभ भोर।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- चकमा )*

चकमा देकर चल दिये, लूट खजाना चोर।

अपना चौकीदार चुप, बैठा दाँत निपोर।।


तगण (221) *(सृजन शब्द--  सत्कार )*

देव रूप माता-पिता, गुरु शिक्षा आधार।

नाम मान इनसे मिले, करो सदा सत्कार।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द-- कमाल )*

चलते चाल कमाल का, ढोंगी कपटी लोग।

देव धर्म के आड़ में, करते छप्पन भोग।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- कोयल )*

बैठ आम की डाल पर, कोयल गाये गीत।

ऋतु बसंत है आगमन, कर लो स्वागत मीत।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- सुमन )*

महका-महका मन सुमन, खींचे अपनी ओर।

गजानंद नम भाव से, हुये सुगंधित भोर।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 04/05/2024

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गणात्मक दोहा लिखें-----

मगण (222) *(सृजन शब्द-- अज्ञानी )*

अज्ञानी इस शिष्य को, देना गुरुवर ज्ञान।

कर जाऊँ जीवन सफल, पाकर गुरु वरदान।।


यगण (122) *(सृजन शब्द-- सितारें )*

चाँद सितारे रात में, चमके करे प्रकाश।

देते नित संदेश यह, रहना नहीं निराश।।


रगण (212)  *(सृजन शब्द-- रागिनी )*

राग-रागिनी की तरह, रखना मधुर मिलाप।

हँसी खुशी जीवन चले, मिट जाये संताप।।


सगण (112)  *(सृजन शब्द-- महका )*

महका-महका है बदन, बहकी-बहकी प्रीत।

लग जाओ आओ गले, बनकर मेरे मीत।।


तगण (221) *(सृजन शब्द--  विख्यात )*

नेक कर्म इंसान कर, हो जाते विख्यात।

संत गुणी विद्वान जन, देते शुभ सौगात।।


जगण (121)  *(सृजन शब्द--  विधान )*

जानो कर्म विधान को, कर लो कष्ट निदान।

कर्म बड़ा है धर्म से, कहते संत सुजान।।


भगण (211)  *(सृजन शब्द-- मानस )*

अपने इस मानस पटल, पर यह करें सवाल।

मानव-मानव भेद क्यों, रंग लहू जब लाल।।


नगण (111)  *(सृजन शब्द-- मधुर )*

तुमसे है मुझको सनम, मधुर मिलन की आस।

तड़प रहा मन बावरा, कर लो तुम विस्वास।।

-----🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 04/05/2024

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